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योग हमारे मन - मस्तिष्क और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ज़रूरी

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर राष्ट्रीय वेबिनार में विशेषज्ञों ने रखे अपने विचार

पटना/  सप्तम अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस, पटना और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, बिहार के संयुक्त तत्वाधान में सोमवार को  "योग एवं विज्ञान" विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बिहार के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से शिक्षकों, छात्रों और योग-जिज्ञासुओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

वेबिनार को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणासी के शारीरिक शिक्षा विभाग के सहायक-आचार्य डॉ. विनायक दुबे ने योगासन के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर एक अत्यंत उपादेय, विज्ञान-सम्मत व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने योगासन एवं प्राणायाम के विभिन्न पहलुओं को चिकित्सा तथा शरीर विज्ञान से जोड़ते हुए अत्यंत प्रासंगिक उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा "स्थिरसुखमासनम के अनुसार योगासन करना चाहिए। हमें स्थिरता पूर्वक प्राण-गति को ध्यान में रखते हुए कुशल निर्देशक के देखरेख में ही आसन करना चाहिए । विभिन्न प्रकार की बीमारियां हमें क्यों होती हैं, हमें इनसे कैसे बचना चाहिए, वृद्धावस्था को जल्द आने से कैसे रोका जाए और  इसके लिए हमें क्या करना चाहिए जैसे विषयों को  डॉ. दुबे ने सरल और सहज अंदाज अपने व्याख्यान में स्पष्ट किया। उनके व्याख्यान का सबसे अधिक आकर्षण विभिन्न चित्रों के माध्यम से तथ्यों को स्पष्ट करना था ।

इससे पूर्व विशिष्ट वक्ता के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में स्थित छात्र स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र में योग प्रशिक्षक की सेवा देने वाले डॉ. रविकांत तिवारी ने योग की पारंपरिक व्याख्या करते हुए अष्टांग-योग को बड़े ही सरल ढंग से सारगर्भित तथ्यों के साथ स्पष्ट किया । उन्होंने कहा - लोग आसन, प्राणायाम और ध्यान को ही योग की श्रेणी में देखते हैं लेकिन इनसे भी पहले यम और नियम हैं। यदि इनका पालन न किया जाए तो आसन, ध्यान और प्राणायाम लाभ नहीं दे सकते। यम के अंतर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य तथा नियम के अंतर्गत शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर-प्रणिधान आते हैं।

अध्यक्षीय उद्बोधन में कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस पटना के प्रिंसिपल डॉ. तपन कुमार शांडिल्य  ने योग और विज्ञान विषय पर अपना संबोधन में कहा कि योग हमारे मन - मस्तिष्क और शरीर को फिट रखता है। योग जहां एक ओर  पारंपरिक ज्ञान का स्रोत है , वहीं दूसरी ओर यह विज्ञान के विभिन्न पहलुओं को स्पर्श करता हुआ विश्व पटल पर एक खिलता हुआ अत्यंत सुंदर पुष्प है। यही कारण है कि आज सारी मानवता के लिए यह भारत की एक अमूल्य देन है और समस्त विश्व में इसे एक अत्यंत महनीय स्थान प्राप्त है । हिंदू, मुस्लिम , सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन इत्यादि विश्व के समस्त धर्मों में योग को एक महान स्थान प्राप्त है । किसी न किसी रूप में इन सभी धर्मों में योग के विभिन्न पक्षों को स्वीकार किया गया है। अपने उद्बोधन के क्रम में उन्होंने योग की उत्पत्ति काल मानव-सभ्यता की उत्पत्ति से माना। इस प्रकार जहां विशिष्ट-वक्ता योग की पारंपरिक व्याख्या की और मुख्य-वक्ता ने वैज्ञानिक संबद्ध तथ्य प्रस्तुत किए। वहीं अध्यक्ष ने दोनों पक्षों को ध्यान में रखते हुए एक अलग ही शैली में "योग और विज्ञान" पर एक बोधगम्य वक्तव्य प्रस्तुत किया ।

कार्यक्रम के प्रारंभ में विषय-प्रवेश के साथ ही वेबिनार का संचालन करते हुए  पटना-विश्वविद्यालय, पटना के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ हरीश दास ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने के पीछे जो तथ्य हैं उन्हें स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि प्रत्येक वर्ष इस योग दिवस का एक आदर्श वाक्य होता है। इस वर्ष का आदर्श वाक्य है - "योग के साथ रहें, घर पर रहे" अर्थात "स्वास्थ्य के लिए योग"।

धन्यवाद ज्ञापन आइ.क्यू.ए.सी. के संयोजक प्रो. संतोष कुमार ने  किया।

वेबिनार ओप्रारंभ में कामेश्वर सिंह दरभंगा विश्वविद्यालय की डॉ. साघना शर्मा ने सरस्वती-वंदना और अंत में कल्याण-मंत्र प्रस्तुत किया। इस अवसर पर अन्य लोगों के अलावा प्रो. बिंदु सिंह, प्रो. कीर्ति, प्रो. रश्मि अखौरी, प्रो. उमेश प्रसाद, प्रो. तारिक़ फातमी, प्रो. संजय पांडे, डॉ. संगीता सिंहा और डॉ. अदिति समेत देश और प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मचारी और छात्र - छात्राएं उपस्थित थे।

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सम्पादक

डॉ. लीना