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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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व्यंग हास्य मात्र नहीं : ज्ञान चतुर्वेदी

व्यंगयात्रा के संपादक प्रेम जनमेजय को पं. बृजलाल द्विवेदी सम्मान, समारोह में 'मीडिया और लोकजीवन’ पर भी रखे गए विचार

भोपाल। व्यंग कोई फनी गेम नहीं है। व्यंग हास्य मात्र नहीं है, यह समाज की विसंगति को दिखाता है। समाज को शिक्षित करता है। व्यंग साहित्य की गंभीर विद्या है। वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने यह विचार व्यक्त किए। वे मीडिया विमर्श की ओर से आयोजित पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यक पत्रकारिता सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। गांधी भवन में आयोजित सम्मान समारोह में दिल्ली से प्रकाशित व्यंगयात्रा पत्रिका के संपादक एवं वरिष्ठ व्यंगकार प्रेम जनमेजय को यह सम्मान दिया गया।

डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि व्यंग के बारे में कहा जाता है कि यह परसाई और जोशी पर खत्म हो गया। मानो नसबंदी कर दी गई हो। इस धारणा को बदलने के लिए व्यंगयात्रा पत्रिका ने बड़ा काम किया है। व्यंग को नए औजार और नए हथियार चाहिए ताकि हरिशंकर परसाई जी व्यंग परंपरा को जहां छोड़ गए थे, उससे आगे ले जाया जा सके। इस मौके पर डॉ. चतुर्वेदी ने 'मुख्य अतिथि’ पर व्यंग पाठ किया। इस दौरान सभागार तालियों से गूंज गया। जाने-माने व्यंगकार गिरीश पंकज ने भी व्यंग की महत्ता पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि व्यंगयात्रा पत्रिका की मदद से व्यंग्य रचना विद्या को देशभर में फिर से प्रतिष्ठा मिलना शुरू हुई है। मनोरमा ईयरबुक-2014 में व्यंगयात्रा पत्रिका का विस्तार से जिक्र किया गया है। 

लाठी-चाकू को चलने से रोकता है व्यंग :

अध्यक्षीय उद्बोदन में वरिष्ठ समालोचक विजय बहादुर सिंह ने साहित्य को समाज के लिए बहुत जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि मीडिया रहे न रहे, विज्ञान रहे न रहे लेकिन साहित्य का जिंदा रहना बहुत जरूरी है। साहित्य मनुष्यता की आत्मा है। उन्होंने साहित्यकारों के काम की महत्ता साबित करते हुए बताया कि साहित्यकारों कलम और उनके शब्द के कारण ही कोई लता मंगेसकर या जगजीत सिंह बन सकता है। समाज में व्यंग्य रचनाओं की जरूरत को उन्होंने रेखांकित करते हुए कहा कि जहां-जहां समाज में असंगति है, बेढंगापन है, विषमता है, वहीं व्यंग की तीखी प्रतिक्रिया है। व्यंग लेखन ज्यादा हो रहा है तो समझिए समाज में विसंगतियां बढ़ रही हैं। जूता, लाठी, चाकू और गोली को चलने से रोकना है तो व्यंग का चलना बेहद जरूरी है। 

मनुष्यों को जोड़ता है मीडिया : 

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने 'मीडिया और लोकजीवन’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि मीडिया और लोक जीवन आपस में इतने घुले-मिले हैं कि उन्हें अलग करके नहीं देखा जा सकता है। संवाद में मीडिया के उपयोग से मनुष्यों को जोडऩा आसान हो गया है। मीडिया के कारण सामूहिकता का विकास हो रहा है। आज स्थिति ऐसी है कि जैसा मीडिया होगा, वैसा ही समाज होगा। उन्होंने बताया कि पिछले दस वर्षों में मानव जीवन में जो परिवर्तन हुए हैं, वह हजारों सालों की तुलना में कहीं अधिक हैं। यह सब बदलाव मीडिया के कारण आए हैं। न्यू मीडिया के कारण तो मानव जीवन में परिवर्तन और तेजी से आ रहे हैं। जितना साहित्य वर्षों में मुद्रित होकर आज उपलब्ध है, उसके कहीं अधिक सामग्री दो-तीन दिन में न्यू मीडिया पर रची जा रही है। उन्होंने मीडिया को मनुष्य की पांच ज्ञानेन्द्रियों का विस्तार बताया। प्रो. कुठिलया ने कहा कि जैसे पहिए को पैर का विस्तार माना जाता है, मशीनों को हाथों का विस्तार माना जाता है, ठीक वैसे ही कैमरे को आंख का, ऑडियो यंत्रों को कान और स्वर तंत्रों का विस्तार माना जाता है। चिंता का विषय इतना है कि मीडिया का व्यापारीकरण हो गया है। पूंजी निवेश के कारण मीडिया बाजार का हिस्सा हो गया है। ऐसे में मीडिया के सामने चुनौती है कि कैसे स्वस्थ समाज का विकास करे और उसके कारण आ रहे बदलाव कैसे सकारात्मक हों। 

प्रेम जनमेजय को 6वां पं. बृजलाल द्विवेदी साहित्यक पत्रकारिता सम्मान :

कार्यक्रम में दिल्ली से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका व्यंगयात्रा के संपादक और देश के जाने-माने व्यंगकार प्रेम जनमेजय को 6वां पं. बृजलाल द्विवेदी अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान प्रदान किया गया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि व्यंग को लोग हास्य से जोड़ते हैं जबकि व्यंग हास्य नहीं वरन व्यंग ज्ञान है, बुद्धि है, विवेक है और यह गंभीर साहित्य है। व्यक्ति पैदा होते ही रोना और हंसना सीख जाता है लेकिन वह व्यंग करना नहीं सीखता। बौद्धिक क्षमता विकसित होने के बाद मनुष्य व्यंग करना सीखता है। श्रीलाल शुक्ल, हरिशंकर परसाई और शरद जोशी जैसे विख्यात व्यंगकारों की रचनाएं आज भी समाज को शिक्षित करती दिखती हैं। व्यंग समाज को गुदगुदाता नहीं है बल्कि यह समाज को शिक्षित करता है। इससे पूर्व मीडिया विमर्श के संपादक डॉ. श्रीकांत सिंह ने स्वागत भाषण दिया। मीडिया विमर्श की प्रकाशक भूमिका द्विवेदी ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंद किए। कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार डॉ. सुभद्रा राठौर और आभार व्यक्त मीडिया विमर्श के उपसंपादक हितेश शुक्ल ने किया। इस मौके पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली सहित देशभर से आए बुद्धिजीवि, साहित्यकार, मीडिया विशेषज्ञ सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

 

 

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना