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आईआईएमसी मनाएगा असम मीडिया की 175वीं वर्षगांठ

प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा 'देश की प्रगति में है असम की मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान

नई दिल्ली। ''असम मीडिया की परंपरा बेहद समृद्ध है। वर्ष 1846 से उसने एक लंबा सफर तय किया है। असम मीडिया के 175 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर आईआईएमसी द्वारा नई दिल्ली में एक भव्य समारोह का आयोजन किया जाएगा।'' यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने गुवाहाटी में असम मीडिया की 175वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित समारोह में व्यक्त किये। कार्यक्रम का आयोजन 'महाबाहु' संस्था एवं 'मल्टीकल्चरल एजुकेशनल डेवलपमेंट ट्रस्ट' द्वारा किया गया। समारोह में प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ. सुनील पवन बरुआ, एसटीपीआई के निदेशक श्री प्रबीर कुमार दास, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, गुवाहाटी के आयुक्त श्री हेमन दास एवं आध्यात्मिक गुरु डॉ. पीताबंर देव गोस्वामी भी मौजूद थे।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि यह असमिया साहित्य और पत्रकारिता के उन दिग्गजों के बलिदान को याद करने का अवसर है, जिन्होंने असम में मीडिया की नींव रखी। जनवरी 1846 में 'अरुणोदय' का प्रकाशन शुरू हुआ था और वहां से असम का मीडिया आज काफी आगे निकल चुका है।

प्रो. द्विवेदी ने कहा कि आज का दिन हेमचंद्र बरुआ, राधानाथ चांगकोकोटी, कीर्तिनाथ शर्मा, निलामोनी फुकन और बेनुधर शर्मा जैसे लोगों को याद करने का दिन है, जिन्होंने आजादी से पहले असम में प्रेस की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि जब हम असम में मीडिया के 175 वर्ष पूरा होने का जश्न मना रहे हैं, तब भारत की हिंदी पत्रकारिता 195 वर्ष पूरे करने जा रही है।

प्रो. द्विवेदी के अनुसार समय के साथ मीडिया की भूमिका भी बदली है। संचार क्रांति का इसमें सबसे ज्यादा योगदान रहा है। आज सुशासन में मीडिया ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इस अवसर पर प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ. सुनील पवन बरुआ ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में 'अरुणोदय' के प्रकाशन को एक क्रांति करार दिया। उन्होंने कहा कि 'अरुणोदय' एक साधारण अखबार नहीं था। इसने पूर्वोत्तर क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पेश किया और समाज में पुनर्जागरण की शुरुआत की।

कार्यक्रम में ''हिस्ट्री ऑफ 175 ईयर्स ऑफ मीडिया इन असम एंड बियॉन्ड'' तथा ''प्रेस इन असम : ऑरिजिन एंड डेवलपमेंट'' नामक दो पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना