Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

इंग्लैंड की साहित्यकार व 'लेखनी' की संपादक शैल अग्रवाल सम्मानित

विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर एक दिवसीय वैश्विक हिन्दी संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह 

देवी नागरानी (अमेरिका) की पुस्तक का भी विमोचन

लेफ़्टिनेंट डॉ. मोहसिन ख़ान/ यह तीसरे प्रकार का प्रवासी साहित्य ही अधिक महत्व का है। इसका कारण यह है कि अब प्रवासी सीधे वहाँ के समाज में घुल-मिल रहे हैं और अपनी स्थितियों को खुलकर कहानियों, कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त कर रहे हैं।  उन्होंने कहा कि  विदेशों में विद्यार्थियों के अभाव में हिंदी स्कूलों के बजाए  मंदिरों में पढ़ाई जा रही है । मंदिर भाषा और संस्कृति रक्षण के दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं लेकिन उस हिंदी शिक्षण की स्कूलों में कोई मान्यता नहीं है। ।

इस अवसर पर ‘वैश्विक हिंदी सम्मलेन’ द्वारा हिन्दी भाषा व साहित्य के प्रचार और प्रसार के लिए इंग्लैंड में रह रही साहित्यकार और ‘लेखनी’ की संपादक’ श्रीमती शैल अग्रवाल का सम्मान किया गया । यह सम्मान प्रत्येक वर्ष प्रवासी भारतीय रचनाकार को प्रदान किया जाता है । श्रीमती शैल अग्रवाल ने इस सम्मान के प्रति आभार व्यक्त करते हुए  कहा – ‘ एक अकेले हिंदी और भारतीय भाषाओं की लड़ाई रहे डॉ. एम. एल. गुप्ता ‘आदित्य’ को मैं यह कहने के लिए यहाँ  आई हूँ कि इस कार्य में मैं भी उनके साथ हूँ ।‘ उन्होंने  समर्थन के लिए अपने उद्गार, अनुभव एवं संवेदनाओं को उजागर किया तथा स्पष्ट किया कि मैंने जीवन में सदैव सहज बने रहने में ही जीवन की सार्थकता तलाशी हूँ, मैंने कभी राजनीति या चालाकी से काम नहीं लिया और यह सम्मान शायद उसी की बदौलत हो।

सत्याग्रह’ संस्था के अध्यक्ष माणिक मुंडे ने हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति चिंता जताते हुए भाषा के क्षरण की स्थिति से अवगत करवाया  और इसके लिए विभिन्न स्तरों पर कार्य किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि ‘सत्याग्रह’ वैश्विक हिंदी सम्मेलन के साथ मिलकर इस कार्य को आगे बढ़ाएगा ।कराची पाकिस्तान की मूल सिंधी भाषा की लेखिका अतिया दाऊद की कविताओं का श्रीमती देवी नागरानी द्वारा सिंधी भाषा से हिंदी में अनुवादित पुस्तक 'एक थका हुआ सच' का भी विमोचन इस कार्यक्रम में किया गया। इस सत्र का संचालन के. सी. महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शीतलाप्रसाद दुबे ने किया।

देवी नागरानी (अमेरिका) की पुस्तक का विमोचन

दूसरे सत्र में प्रवासी साहित्य और उसकी वैश्विक स्थिति पर चिंतन हुआ। इस सत्र में अध्यक्ष के रूप मे एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय की पूर्व आचार्या और हिन्दी विभागाध्यक्षा श्रीमती डॉ. माधुरी छेड़ा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रवासी साहित्य और उसकी संवेदना को उजागर करते हुए हिन्दी की अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति को रेखांकित किया तथा कथा, कविता एवं अन्य विधाओं के संदर्भों को दर्शाया । के.जे. सोमैया महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सतीश पाण्डेय ने प्रवासी उपन्यासों की वैश्विक स्थितियों को दर्शाते हुए प्रवासी भारतीय लेखकों के उपन्यासों पर अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. उमेश शुक्ल  ने वैश्विक पत्र पत्रिकाओं के सन्दर्भ में जानकारी प्रस्तुत की । इस सत्र में  विचारक  प्रेम अन्वेषी ने कहा कि हिंदी और भारतीय भाषाओं से कटने के साथ-साथ हम अपने प्राचीन सांस्कृतिक विरासत और अपने अमूल्य ग्रंथों और उनमें निहित ज्ञान से भी कटते जा रहे हैं । उन्होंने इसके लिए व्यापक स्तर पर कार्य करने की बात कही। 

भोजन अवकाश के पश्चात तीसरे सत्र  में जी टी.वी. के रिपोर्टर संजय सिंह ने हिंदी भाषा  के बदलते तेवर और उसकी आवश्यकताओं के मुकाबले शिक्षा-तंत्र में आवश्यक परिवर्तन न किए जाने पर चिंता व्यक्त  की और समयानुकूल परिवर्तनों को रेखांकित किया । इसी सत्र में डॉ. एम.एल.गुप्ता ‘आदित्य’ ने कहा कि हिंदी के वैश्विकरण का वास्तविक श्रेय सोशल मीडिया को जाता है,जिसके चलते विश्वभर में हिंदी का प्रसार हुआ है । उन्होंने हिंदी शिक्षा में आई .टी. के समावेश पर और विभिन्न आई.टी. प्रणालियों में हिंदी के समावेश पर जोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी के सबसे बड़ा विश्वदूत अगर कोई हैं तो वे हैं भारत के प्रधानमंत्री ‘श्री नरेंद्र मोदी’ जिन्होंने दुनिया भर में हिंदी में भाषणों से हिंदी को विश्व भाषा के रूप में पहचान प्रदान की है।

महुआ चैनल प्रमुख राघवेश अस्थाना,विचारक प्रेम अन्वेषी व प्रतिभागी

  सत्र में विशेष अतिथि और प्रवासी साहित्य के वक्ता के रूप में श्रीमती शील निगम ने ऑस्ट्रेलिया में हिंदी की स्थिति के विषय में स्पष्ट करते हुए वहां के साहित्य और उसके भाषा बोध के साथ भाव और संवेदना के पक्ष को रेखांकित किया। उन्होंने आस्ट्रेलिया में हिन्दी के प्रचार-प्रसार की स्थिति को अवगत कराते हुए हिन्दी-सेवी डॉ. उमेश मोहन श्रीवास्तव के विशेष योगदान पर भी चर्चा की । सत्र अध्यक्ष के रूप में डॉ. सतीश पाण्डेय ने प्रवासी साहित्य और भाषा के विषय में वैश्विक संदर्भों की पड़ताल की तथा प्रवासी साहित्य को हिन्दी साहित्य का एक बहुत महत्वपूर्ण अंग माना। इस सत्र का संचालन रूइया महाविद्यालय, माटुंगा-मुम्बई के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण चन्द्र बिष्ट ने किया ।

कार्यक्रम में ‘महुआ’ चैनल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राघवेश अस्थाना, इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स फॉर अफरमेटिव एक्शन के अध्यक्ष, सुनील ज़ो़ेडे  विशेष रूप से उपस्थित थे।  परिसंवाद में विभिन्न संस्थानों के विद्वानों, प्राचार्यों, प्राध्यापकों, साहित्यकारों और अनेक विद्वानों और विद्यार्थियों ने भाग लिया और अपने विचार रखे। संगोष्ठी में सभागार प्रतिभागियों से खचाखच भरा था।  आयोजन की सफलता का श्रेय के.सी.महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शीतलाप्रसाद दुबे, हिंदी के महाप्रहरी डॉ. एम. एल. गुप्ता, पत्रकार अजीत कुमार राय, डॉ. कामिनी गुप्ता को जाता है । कार्यक्रम में भारतीय भाषाओं से संबंधित डॉ. वेदप्रताप वैदिक जी की विख्यात पुस्तकों का नि:शुल्क वितरण भी किया गया  और प्रतिभागियों को हस्ताक्षर तथा निमंत्रण-पत्र आदि में स्वभाषा अपनाने की शपथ दिलवाई गई।

रिपोर्ट - लेफ़्टिनेंट डॉ. मोहसिन ख़ान

स्नातकोत्तर हिन्दी विभागाध्यक्ष 

एवं शोध निर्देशक , ( रा. कै. को. अधिकारी )

जे.एस.एम. महाविद्यालय, अलीबाग (महाराष्ट्र) 402201

09860657970 , khanhind01@gmail.com,   Blog - www.sarvahara.blogspot.com

 

Go Back



Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना