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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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कहा जा सकता है पंजीयन -संख्या घोटाला भी!

दैनिक हिन्दुस्तान सरकारी विज्ञापन फर्जीवाड़ा केस की सुनवाई, आर्थिक अपराध उजागर

काशी प्रसाद/ नई दिल्ली। भारत की  सर्वोच्च अदालत ‘सर्वोच्च न्यायालय‘ में विश्वस्तरीय 200 करोड़ के दैनिक हिन्दुस्तान सरकारी विज्ञापन फर्जीवाड़ा से जुड़े जिस  स्पेशल लीव पीटिशन (अपील।  संख्या -1603 ।2013)  शोभना भरतिया बनाम स्टेट आफ बिहार) में सुनवाई चल रही है, उस मुकदमे में मुंगेर (बिहार) के पुलिस उपाधीक्षक ए0के0 पंचालर ने जो पर्यवेक्षण टिप्पणी जारी की है! पर्यवेक्षण टिप्पणी ने देश के शक्तिशाली मीडिया हाउस मेसर्स द हिन्दुस्तान टाइम्स लिमिटेड, मेसर्स एच0टी0 मीडिया लिमिटेड और मेसर्स हिन्दुस्तान मीडिया वेन्चर्स लिमिटेड] नई दिल्ली के सनसनीखेज आर्थिक अपराध को उजागर किया है।

पर्यवेक्षण टिप्पणी के अध्ययन से यह पता चलता है कि देश का शक्तिशाली मीडिया हाउस, जो नित्य प्रथम पृष्ठ पर न्यायिक पदाधिकारियों, राजनेताओं और आई0ए0एस0 और आई0 पी0 एस0 पदाधिकारियों के आर्थिक भ्रष्टाचार की खबरों को प्रमुखता के साथ  प्रकाशित करता है, किस प्रकार मीडिया हाउस स्वयं किस हद तक  आर्थिक अपराध की गंगा में गोता  लगा रहा है और देश के खजाना को  खोखला कर रहा है ? पर्यवेक्षण टिप्पणी ने उजागर किया है कि आखिर  मीडिया समूह ने आर्थिक अपराध क्यों किया ? पर्यवेक्षण टिप्पणी उजागर करता है कि इस मीडिया हाउस ने कागजातोंमें हेराफेरी  और जालसाजी इस कारण की कि  कानून की प्रक्रिया से गुजरने पर दैनिक हिन्दुस्तान अखबार के भागलपुर और मुंगेर संस्करण को नए मुद्रण स्थल से प्रकाशन के तुरंत बाद सरकारी विज्ञापन केन्द्र और राज्य सरकारों से किसी भी कीमत पर प्राप्त नहीं हो सकता था । सरकारी विज्ञापन के करोड़ों और अरवों  की लूट की मंशा से मीडिया हाउस ने बिना निबंधित अखबार को निबंधित अखबार सरकारों के समक्ष लिखित रूप में पेश कर लगभग दो सौ करोड़ रूपए का सरकारी विज्ञापन अवैध ढंग से एक दशक में उठा  लिया। इस मीडिया हाउस के इस आर्थिक घोटाले को ‘‘पंजीयन -संख्या घोटाला” की भी संज्ञा दी जा सकती है।

 

 

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सम्पादक

डॉ. लीना