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कार्पोरेट, जातिवादी और सांप्रदायिक मीडिया देश की एकता के लिए खतरा : रिहाई मंच

भारत छोड़ो आंदोलन की बरसी पर रिहाई मंच ने ‘3सी मीडिया क्विट इंडिया’ नारे के साथ दिया धरना

लखनऊ। ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं बरसी पर रिहाई मंच द्वारा कार्पोरेट, सांप्रदायिक और जातिवादी मीडिया के खिलाफ मंगलवार को लखनऊ के हजरतगंज स्थित गांधी प्रतिमा पर धरना दिया गया। 

कार्पोरेट, कास्टिस्ट एंड कम्यूनल मीडिया ’क्विट इंडिया’ नारे से दिए गए इस धरने को संबोधित करते हुए रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि आज हमारा मीडिया जिस तरह से फासीवादी ताकतों के पैरों में लोट रहा है वो समाज की एकता के लिए गंभीर खतरा है। उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न अस्मिताओं वाले बहुरंगी समाज में गरीबों, अल्पसंख्यकों और दलितों पर जिस तरह संघ के लंपट-गंुडों द्वारा लगातार हमले किए जा रहे हैं, वो देश की एकता और सामाजिक ताने बाने के लिए खतरा है। उनका महिमामंडन सांप्रदायिक मीडिया द्वारा किया जा रहा है। शाहनवाज आलम ने कहा कि हिन्दू राष्ट्र की संघी संकल्पना में दलितों, गरीबों और अल्पसंख्यकों के लिए कोई जगह नहीं है। चुंकि देश में मीडिया घरानों के भीतर ब्राहम्णवाद का बोल-बाला है इसलिए बीफ के नाम पर दलितों, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हालिया हिंसा मीडिया घरानों के विमर्श का हिस्सा नहीं बनी। 

धरने को संबोधित करते हुए दिल्ली से आए पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने कहा कि कार्पोरेट मीडिया में आम आदमी, दलितों और अल्पसंख्यकों की खबरें गायब हो गई हैं। मीडिया फासीवादी ताकतों का स्वयं-भू प्रवक्ता बन गया है। इसलिए एक नागरिक के बतौर हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि फासीवाद की प्रवक्ता देश विरोधी कार्पोरेट और जातिवादी मीडिया के खिलाफ एक सशक्त आवाज बुलंद की जाए। आज का मीडिया खबरें छोड़ सब कुछ दिखाता है। उसका अपना वर्ग चरित्र जन विरोधी है। उन्होंने विस्तार से बताया कि किस तरह से नीरा राडिया केस में कई पत्रकारों ने दलाली खाई थी। अभिषेक श्रीवास्तव ने जोर देकर कहा कि हमें आम जन की आवाज बनने वाला, उनकी खबरें दिखाने वाला एक वैकल्पिक मीडिया समूह खड़ा करना होगा। इसमें सोशल मीडिया हमारी सबसे बड़ी ताकत बनने जा रही है। उन्होंने कहा कि काॅरपोरेट, जातीवादी और साम्प्रदायिक मीडिया का विरोध करना सच्ची देश भक्ति है।

शरद जायसवाल ने कहा कि देश के कई समाचार पत्र आज अल्पसंख्यकों के खिलाफ मैराथन दुष्प्रचार में संलग्न हैं। उन्होंने मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के दौरान कई समाचार पत्रों, चैनलों की भूमिका का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह से उनके द्वारा हिंसा के दौरान अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसक भीड़ को उकसाया जाता था, फर्जी खबरें गढ़ी जाती थीं। उन्होंने कहा कि अगर व्यवस्था में राजनैतिक व्यक्तियों की जिम्मेदारी तय होती है तो फिर मीडिया की जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए। 

रिहाई मंच लखनऊ यूनिट के महासाचिव शकील कुरैशी ने कहा कि कार्पोरेट मीडिया का पूरा विमर्श फासीवाद और सांप्रदायिकता को भारत के भविष्य के रूप में प्रचारित करने में लगा है। कार्पोरेट और मल्टीनेशनल के हितों के लिए आदिवासियों पर किए जा रहे हिंसक दमन को वह छिपाता है। आजकल राजनीतिक और औद्योगिक घराने खबरों को दिखाने के बजाए खबरों को छुपाने के लिए मीडिया में निवेश कर रहे हैं। प्रतीक सरकार ने कहा कि मुसलमानों के धार्मिक झंडे को एक चैनल ने पाकिस्तानी झंडा बताकर बिहार में मुसलमानों के खिलाफ माहौल बना दिया लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई तक नहीं हुई। आरिफ मासूमी ने मीडिया के के लिए आचार संघिता की बनाने की मांग की। रूपेश पाठक ने कहा कि मीडिया पर कुछ ही घरानों का कब्जा लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है। लोकतंत्र विचारों की विभिन्नता पर आधारित है लेकिन जनमत बनाने वाली मीडिया में अब वैचारिक भिन्नता का गला घांेट दिया गया है। असहमत लोगों और विचारों को अब मीडिया देशविरोधी बताने लगा है।

धरने का संचालन अनिल यादव ने किया। इस मौके पर आदियोग, लालचंद, केके वत्स, मोहम्मद तारिक, मोहम्मद मसूद, एमके सिंह, कमर सीतापूरी, श्याम अंकुरम, मकसूद अहमद, मोहम्मद सुलेमान, कल्पना पांडेय, देवी दत्त पांडेय, अरविंद कुशवाहा, ज्याति राय, केके शुक्ला, शाहरूख अहमद, तनवीर मिर्जा, अमित मिश्रा, यावर अब्बास, शशांक लाल, बाबू मोहम्मद, अली, रूपेश पाठक, मोहम्मद इमरान खान, हसन, उषा विश्वकर्मा, रफीउद्दीन खान, हादी खान, अब्दुल वाहिद, नुसरत जमाल, मोहसिन एहसान, लक्ष्मण प्रसाद, नाजिम, आलोक, शबरोज मोहम्मदी, राॅबिन वर्मा, आशीष अवस्थी, रामकृष्ण, विरेंद्र गुप्ता, धनंजय चैधरी, आरिफ मासूमी आदि मौजूद रहे।

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सम्पादक

डॉ. लीना