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घरों में जैवईंधन के उपयोग से पटना में गहराता वायु प्रदूषण

“सीड” ने की सरकार से क्लीन कुकिंग के लिए तत्काल कदम उठाने की गुजारिश, मीडिया से इस संबंध में लोगों को जागरूक करने को आह्वान

साकिब जिया / पटना । पर्यावरण संरक्षण व सुरक्षित ऊर्जा विकल्पों पर काम करने वाली संस्था ‘सेंटर फॉर एन्वायरोमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट’ (सीड) ने 27 मई को पटना में खाना पकाने के तौर-तरीकों पर एक रिपोर्ट ‘घर से शुरू होता वायु प्रदूषण’ जारी की। यह रिपोर्ट शहर में खाना पकाने के दौरान जैवईंधन (बायोमास) के जलने से पैदा होनेवाले वायु प्रदूषण की गहराती समस्या के बारे में शोधपरक नतीजे प्रस्तुत करता है। रिपोर्ट पटना शहरी संकुलन क्षेत्र (पटना अर्बन एग्गलोमेरेशन एरिया-पीयूएए) में घरेलू कुकिंग और प्रकाश आदि के लिए ठोस ईंधन के हो रहे लगातार इस्तेमाल से जुड़े नये आंकड़ें भी पेश करता है। यह रिपोर्ट पटना में स्वच्छ और सततशील ऊर्जा उपायों की ओर बदलाव के लिए गंभीरता के साथ आवश्यक कोशिशों की वकालत करता है। संस्था ने सरकार से जहां पहल की मांग की वहीं मीडिया से इस संबंध में लोगों को जागरूक करने को आह्वान किया।

रिपोर्ट को रिलीज करते हुए ‘सीड’ के सीइओ श्री रमापति कुमार ने कहा कि ‘पारंपरिक चूल्हे घरों में प्रदूषित व जहरीले धुएं छोड़ते हैं, जिससे पयार्वरणीय और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम पैदा होते हैं। घरों में सबसे ज्यादा औरतें व बच्चे इन घातक व प्रदूषक तत्वों का सामना करते हैं। गोइठा, जलावन की लकड़ी आदि जैसे ठोस ईंधन के जलने से प्रदूषक तत्वों के जटिल मिश्रण उत्सर्जित होते हैं, जैसे खासकर पार्टिकुलेट मैटर या प्रदूषित धूलकण (PM2.5) और ब्लैक कार्बन वायुमंडल में छोड़े जाते हैं। यह वाकई चिंताजनक की बात है कि पटना में बड़ी संख्या में घर-परिवार अब भी ठोस ईंधन पर निर्भर हैं। बिहार सरकार को सुरक्षित व स्वास्थ्यवर्द्धक जीवनशैली के लिए स्वच्छ कुकिंग प्रैक्टिस की तरफ बदलाव के लिए कड़े कदमों को क्रियान्वित करना चाहिए।’

इस मौके पर रिपोर्ट के निष्कर्षों को पेश करते हुए ‘सीड’ की प्रोग्राम मैनेजर अंकिता ज्योति ने बताया कि ‘पटना में करीब 1.38 लाख घर-परिवार की विशाल संख्या घर में खाना बनाने के लिए पारंपरिक चूल्हों और ठोस ईंधन पर आश्रित है, जबकि ये स्वास्थ्य संबंधी नकारात्मक प्रभाव पैदा करते हैं। ठोस ईंधनों पर इस निर्भरता का परिणाम यह निकल रहा है कि प्रदूषित धूलकणों यानी पार्टिकुलेट मैटर्स के वायुमंडल में लगातार उत्सर्जन से लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। स्वास्थ्य संबंधी प्रमुख समस्याओं में आंखों में जलन, दृष्टिदोष, आंखों में पानी आना, शारीरिक थकान और श्वास संबंधी कई समस्याएं अनुभव की गयी हैं।’ अंकिता ज्योति ने आगे यह भी बताया कि अध्ययन के दौरान यह भी पाया गया कि 72 प्रतिशत औरते और बच्चे इन स्वास्थ्य संबंधी जोखिम का सामना कर रहे हैं।

यह रिपोर्ट दरअसल पटना के घरों में रसोई के दौरान जैवईंधन जैसे खलिहान के अवशेष, गोइठा, जलावन की लकड़ी आदि के इस्तेमाल के कारण शहर में वायु प्रदूषण की बदतर स्थिति को सामने लाती है। आकलन यह है कि वर्ष 2016 में करीब 831.54 टन का जहरीला प्रदूषित धूलकण और करीब 232 टन ब्लैक कार्बन वायुमंडल में छोड़ा जायेगा। रिपोर्ट का भविष्य के बारे में आकलन यह है कि वर्ष 2051 में बतौर वायु प्रदूषण करीब 1.32 लाख टन का प्रदूषित धूलकण (PM2.5) केवल पटना में उत्सर्जित होगा।

श्री रमापति कुमार ने राज्य में ऊर्जा की वर्तमान स्थिति के बारे में अवगत कराते हुए कहा कि ‘बिहार के पास ऐतिहासिक मौका है, क्योंकि राज्य सरकार ने ऊर्जा निर्धनता को वर्ष 2017 तक खत्म करने का वायदा किया है। लेकिन खाना पकाने के लिए जरूरी स्वच्छ और सुरक्षित तरीकों पर राज्य में बहुत कम ध्यान दिया गया है। राज्य में खतरनाक स्तर को छूते प्रदूषण की वर्तमान स्थिति स्वच्छ और सततशील ऊर्जा तरीकों की तरफ बदलाव की तत्काल आवश्यकता की मांग करती है। हमें महिलाओं की सेहत की सुरक्षा के लिए खाना पकाने के पारंपरिक तरीकों के खिलाफ युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है। जैव ईंधन से क्लीन कुकिंग की ओर बदलाव के लिए एक सिस्टम की जरूरत है, जो घरेलू कुकिंग के लिए जरूरी एक कार्यक्रम के तहत तकनीकी अपग्रेडेशन, क्रियान्यवन योजना, मानिटरिंग स्ट्रेटेजी और समुचित समयसीमा पर फोकस हो, ताकि प्रदूषणकारी जैवईंधन का इस्तेमाल को खत्म किया जा सके।’

सीड संस्था बिहार सरकार से मांग करती है कि प्रदूषित ईंधन को खत्म करने और औरतों व बच्चों की सेहत की सुरक्षा के लिए जरूरी तकनीक की स्वीकार्यता, वहन संबंधी क्षमता और संभावनाओं पर निर्भर एक समायोजन की नीति को वह अविलंब प्रोत्साहित करे, ताकि राज्य बेहतर बदलाव की ओर कदम बढ़ा सके।

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सम्पादक

डॉ. लीना