पत्रकारिता विश्वविद्यालय तथा जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र द्वारा आयोजित "जम्मू कश्मीर की वास्तविकता एवं प्रतिमाएँ: मीडिया की भूमिका" विषयक राष्ट्रीय संविमर्श का समापन
भोपाल। जम्मू-कश्मीर के विषयों पर विशेषकर पाक अधिकृत कश्मीर के संबंध में प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया में जो भी समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित किए जाते हैं उनमें एकपक्षीय दृष्टिकोण नजर आता है। सबसे बड़ी विडंबना है यह है कि समाचार-पत्रों में इन समाचारों को विदेशों से संबंधित समाचारों के पृष्ठ पर प्रकाशित किया जाता है। आज जम्मू कश्मीर में मीडिया का विस्तार देश के अन्य प्रांतों की तरह नहीं है। लद्दाख के हिस्से में तो समाचार-पत्र है ही नहीं। जम्मू कश्मीर में मीडिया में काम करने वाले अधिकांश लोग स्थानीय हैं और वे खबरों की रिपोर्टिंग एक विशेष दृष्टिकोण से करते हुए देश-दुनिया के सामने इस क्षेत्र की ऐसी तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं जो वास्तविकता से दूर है। इसमें बदलाव की आवश्यकता है। यह विचार वरिष्ठ पत्रकार एवं इंडियन मीडिया सेंटर, नई दिल्ली के निदेशक श्री के.जी.सुरेश ने व्यक्त किए।
पत्रकारिता विश्वविद्यालय, जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र, नई दिल्ली तथा इंडियन मीडिया सेंटर, नई दिल्ली द्वारा आयोजित"जम्मू कश्मीर की वास्तविकता एवं प्रतिमाएँ: मीडिया की भूमिका" विषयक संगोष्ठी के दूसरे दिन 25 जनवरी को जम्मू कश्मीर मीडिया की भूमिका, विषयक तकनीकी सत्र में बोलते हुए श्री के.जी.सुरेश ने कहा कि जम्मू कश्मीर मीडिया में तभी दिखाई पड़ता है जब वहाँ गोलीबारी, बर्फबारी, प्रदर्शन या हिंसा की घटनाएँ होती हैं। लगातार जम्मू कश्मीर के संबंध में आ रही नकारात्मक खबरों के कारण नई पीढ़ी के मन में यह विचार पनपने लगा है कि देश के जिस हिस्से में इतनी समस्याएँ हैं उसे देश से अलग कर देने में कोई दिक्कत नहीं है, जबकि वास्तविकता यह नहीं है। मीडिया को जम्मू कश्मीर के मुद्दों पर तर्कपूर्ण, तथ्यपरक एवं सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए ताकि इस मुद्दे पर सही जनचेतना विकसित हो।
पाक अधिक्रांत जम्मू कश्मीर और चीन अधिक्रांत जम्मू कश्मीर, लद्दाख पर प्रकाशित रिपोर्ट का विवेचन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र, नई दिल्ली के सचिव श्री आशुतोष भटनागर ने बताया कि बिना युद्ध के लद्दाख हिस्से की हजारों वर्गमीटर की जमीन चीन के हिस्से में जा चुकी है। लद्दाख क्षेत्र के सीमांत इलाके के लोग भारतीय सरकार की उपेक्षा का व्यवहार झेल रहे हैं, जिसका चीन फायदा उठा रहा है। अगर वास्तविक रूप में देखा जाए तो भारत, चीन की सीमा सिंधु नदी से तय होने लगी है। जम्मू कश्मीर से पधारे श्री काशीनाथ पंडिता ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जम्मू कश्मीर की गलत तस्वीर पेश कर इस्लामिक संगठन जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने की रणनीति बना रहे हैं, जो चिंताजनक है। अटल बिहारी हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मोहनलाल छीपा ने कहा कि जम्मू कश्मीर के समस्या के समाधान के लिए इस दिशा में कार्य कर रहे विभिन्न संगठनों को एक बहुआयामी व्यूह रचना बनानी होगी। इसके लिए बौद्धिक विमर्श के साथ-साथ जनजागरण भी करना होगा।
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के वास्तविकता एवं प्रतिमा विषय पर श्री के.एल.भाटिया एवं संत कुमार शर्मा ने अपने विचार रखते हुए धारा 370 के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला। धारा 370 के कारण ही जम्मू कश्मीर में सूचना का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार जैसे कानून लागू नहीं हो पा रहे हैं। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री पुष्पेन्द्र कौरव ने कहा कि धारा 370 के कारण नीति निर्माण में जनभावनाओं को शामिल नहीं किया जा रहा है। धारा 370 की वास्तविकता एवं अब तक जम्मू कश्मीर में धारा 370 से हुए फायदे-नुकसान पर विमर्श का समय अब आ चुका है। यदि धारा 370 से जम्मू कश्मीर का विकास हो रहा है तब तो ठीक है, वरना इसमें बदलाव अनिवार्य है। रक्षा विशेषज्ञ श्री आलोक बंसल ने जम्मू कश्मीर मुद्दे को सुरक्षा परिदृश्य एवं वैश्विक चुनौतियों से जोड़ते हुए अपने विचार रखे। वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेन्द्र शर्मा ने जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप एवं मीडिया की भूमिका विषयक सत्र में अपने विचार रखे।
संगोष्ठी के प्रथम एवं द्वितीय दिवस में जम्मू कश्मीर समस्या पर विविध पक्षों पर आमंत्रित विद्वतजनों ने अपने विचार रखे। संगोष्ठी में जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र के देश के विभिन्न प्रांतों से पधारे पदाधिकारी एवं इंडियन मीडिया सेंटर, नई दिल्ली के सदस्य तथा पत्रकारिता विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी तथा विद्यार्थी शामिल थे।
(डा पवित्र श्रीवास्तव)
निदेशक, जनसंपर्क प्रकोष्ठ