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जुमई खां आजाद से जन संस्कृति की परम्परा समृद्ध होती है:जसम

लखनऊ। ‘कथरी के कबीर’ के नाम से मशहूर अवधी के जनकवि जुमई खां आजाद की पहली बरसी पर 11 जनवरी को जन संस्कृति मंच की ओर से ‘स्मरण गोष्ठी’ का आयोजन किया गया। 29 दिसम्बर 2013 को उनका निधन हुआ था।

कार्यक्रम लेनिन पुस्तक केन्द्र, लालकुंआ में हुआ। इस मौके पर जुमई खां आजाद की करीब आधा दर्जन अवधी और खड़ी बोली में लिखी कविताओं का पाठ हुआ तथा उनके जीवन और कविताओं पर विचार प्रकट किये गये।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि-कथाकार नसीम साकेती ने जसम के द्वारा जमुई खां आजाद को याद करने को जरूरी माना और कहा कि आज ऐसे जनकवि उपेक्षित हो रहे हैं। अदम को सामने लाने में जसम की भूमिका रही है। उन्होंने जमुई खां की रचनाओं पर बोलते हुए कहा कि जहां कबीर ने सामाजिक व धार्मिक रूढि़यों व कुरीतियों पर प्रहार किया वहीं जुमई खां आजाद ने वर्तमान व्यवस्था की विद्रूपताओं और आम आदमी की व्यथा व मनोभाव को अपनी कविता में उकेरा है। उनकी बीस के आसपास कृतियां प्रकाशित हुई जिनमें कविता, नाटक, एकांकी, उपन्यास आदि प्रमुख है। लेकिन उनकी लोकप्रियता अवधी के जनकवि के रूप में ज्यादा रही।

कार्यक्रम में उनकी प्रसिद्ध कविता ‘बड़ी बड़ी कोठिया’, जो काफी लोकप्रिय भी है, का पाठ किया गया जिसमें शोषण व सामाजिक विषमता का चित्र उभरता है। अपनी इस कविता में वे कहते हैं - ‘बड़ी बड़ी कोठिया सजाया पूंजीपतिया, दुखिया कै रोटिया चोराइ-चोराइ’। इसी तरह कविता ‘कथरी’ में वे गरीबी की दारूण स्थितियों का वर्णन करते हुए कहते हैं - ‘कथरी तोहर गुन ऊ जानइ, जे करइ गुजारा कथरी मा। लोटइं लरिका सयान सारा, परिवार बेचारा कथरी मा।’ इसी भाव को खड़ी बोली में लिखी कविता ‘करुण पुकार’ में यूं व्यक्त करते हैं - ‘ढल गई जवानी नहीं मिला, भर पेट अन्न भी खाने को। दो गज भी पास जमीन नहीं, मर जाने पर दफनाने को।’ इस अवसर पर उनकी कविता ‘धनवान’, ‘रोटी’, ‘अनमोल आजादी’ आदि का भी पाठ हुआ।

जुमई खां आजाद के जीवन और रचनात्मकता पर प्रकाश डालते हुए कवि उमेशचन्द्र नागवंशी ने कहा कि जुमई खां आजाद कबीर की तरह समाज सुधारक थे। बड़ी मुश्किल से उन्होंने हाई स्कूल पास किया लेकिन उनका जीवन ज्ञान विशाल था। उन्होंने भूख, गरीबी, अशिक्षा, छुआछूत, जाति-धर्म का भेदभाव, बाल विवाह,, दहेज प्रथा, सती प्रथा, जैसी समस्याओं पर विचार किया और इसे अपने साहित्य का विषय बनाया। उनकी माने तो इनका कारण सामंती विचारधारा और पूंजीवादी व्यवस्था है। जसम के प्रदेश अध्यक्ष व कवि कौशल किशोर ने कहा कि जुमई खां आजाद की कविता की यह ताकत है कि जहां कवि नहीं पहुंच पाया, वहां उनकी कविता पहुंची। ‘बड़ी बड़ी कोठिया’ उन लोगों की जबान पर भी चढ़ गई जो यह नहीं जानते थे कि इसका कवि कौन है। यह जुमई के काव्य की खासियत है।

दलित कवि व गीतकार रामकुमार सरोज ने कहा कि उनकी रचनाएं अपने समय में हस्तक्षेप करती हैं। वे हमारे अन्दर विद्रोह की चेतना फेलाती हैं। प्रतापगढ़ के सोशल एक्टिविस्ट सूरज प्रसाद ने कहा कि जुमई खां को बनाने में प्रतापगढ़ जैसे सामंती गढ में चले सामंतवाद विरोधी किसान संघर्ष की अहम भूमिका रही है। कवि भगवान स्वरूप कटियार ने कहा कि आज साहित्य के महानगरीय व अभिजन होते जाने की वजह से जुमई जैसे रचनाकार उपेक्षित हो जा रहे हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि ऐसे जनकवि को सामने लाया जाय। ऐसे कवियों से ही जन संस्कृति की परम्परा समृद्ध होती है।

जसम लखनऊ के संयोजक व संस्कृतिकर्मी श्याम अंकुरम ने कहा कि जुमई खां आजाद ने खड़ी बोली में भी कविताएं लिखी हैं। लेकिन अपनी बात को अपने लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्होंने अवधी में रचनाएं की। इस अवसर पर बी एन गौड़, तश्ना आलमी, अनिल कुमार श्रीवास्तव, कल्पना पांडेय, विमला किशोर, के के शुक्ला, वंशीधर रावत, नीतीश कन्नौजिया, मधुसूदन मगन, अमित आदि ने भी अपने विचार प्रकट किये।

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श्याम अंकुरम, संयोजक, जसम, लखनऊ। मो - 9454514250, 8400208031

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सम्पादक

डॉ. लीना