राष्ट्रपति ने “द हिंदू” के चौथे वार्षिक विचार सम्मेलन- ‘द हडल’ को संबोधित किया
बेंगलुरु/ भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने शनिवार को बेंगलूरु में द हिंदू के चौथे वार्षिक विचार सम्मेलन 'द हडल' को संबोधित किया। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि द हिंदू द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘द हडल’ में भाग लेते हुए उन्हें प्रसन्नता हो रही है। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा नाम है जो न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है बल्कि एक इतिहास खंड को भी संजोया हुआ है जो सभ्यता के संदर्भ में दुनिया में अद्वितीय है। उन्होंने कहा कि हिंदू प्रकाशन समूह ने अपनी जिम्मेदार एवं नैतिक पत्रकारिता के माध्यम से इस महान देश के मूलतत्व को पकड़ने की कोशिश की है। उन्होंने पत्रकारिता के पांच मूल सिद्धांतों- सच्चाई, स्वतंत्रता एवं आजादी, न्याय, मानवता और सामाजिक भलाई में योगदान- पर जोर देने के लिए उनकी सराहना की।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के सामाजित मानस में बहस और चर्चा को सच तक पहुंचने का जरिया हमेशा से माना जाता रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सत्य की अवधारणा परिस्थितियों पर निर्भर करती है। बहस, चर्चा और वैज्ञानिक स्वाभाव से उत्पन्न विचार के जरिये सत्य पर छाए बादल को प्रभावी ढंग से दूर किया जाता है। पूर्वाग्रह और हिंसा सत्य की खोज को मिटा देती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि कभी-कभी हठधर्मिता और व्यक्तिगत पूर्वाग्रह भी सत्य को विकृत करते हैं। गांधीजी के जन्म के 150वें वर्ष में हमें इस प्रश्न पर विचार करना चाहिए: क्या सत्य को एक विचारधारा के रूप में आगे बढ़ाने के लिए उचित नहीं होगा? गांधीजी ने हमें सत्य की खोज में लगातार चलते हुए रास्ता दिखाया है जो अंततः इस जगत को समृद्ध करने वाले हर सकारात्मक गुण को समाहित करता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि इंटरनेट और सोशल मीडिया ने पत्रकारिता और लोकतंत्र को पुनर्जीवित किया है। यह प्रक्रिया जारी है लेकिन फिलहाल अपने आरंभिक चरण में है। साथ ही, इसने कई चिंताओं को भी जन्म दिया है। नई मीडिया काफी तेज और लोकप्रिय है और लोग वही चुन सकते हैं जो वे देखना, सुनना या पढ़ना चाहते हैं। लेकिन पारंपरिक मीडिया ने वर्षों के दौरान समाचार के सत्यापन के लिए कौशल विकसित किया है और यह काम महंगा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि हम जल्द ही सामंजस्य की स्थिति तक पहुंचेंगे। उन्होंने कहा कि इस दौरान पारंपरिक मीडिया को समाज में अपनी भूमिका पर आत्मनिरीक्षण करना होगा और पाठकों का विश्वास को फिर से हासिल करने के तरीके तलशने होंगे। जागरूक नागरिक यानी निष्पक्ष पत्रकारिता के बिना लोकतंत्र अधूरा है।