बाल विवाह एवं दहेज प्रथा है एक अभिशाप, मिडिया के माध्यम से जागरुक करने की जरूरत, युवाओं तक संदेश पहुंचाने में सोशल मीडिया की भी अहम भूमिका
साकिब ज़िया / पटना। बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के विरुद्ध राज्यव्यापी अभियान के अन्तर्गत मीडियाकर्मियों के साथ उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन राजधानी पटना में कल किया गया। कार्यशाला का आयोजन बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग के महिला विकास निगम और जेन्डर रिसोर्स सेन्टर तथा यूनिसेफ़ के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्य सरकार के महिला विकास निगम की प्रबंध निदेशक डॉ.एन विजयलक्ष्मी ने कहा कि लोगों तक ऐसे सामाजिक कुरीतियों के बारे में जागरूकता लाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आम लोगों को बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के खिलाफ पत्रकारों को विशेष रुचि लेते हुए समाचारों के माध्यम से समाज को जागरूक करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बाल विवाह के खिलाफ और दहेज प्रथा के विरोध में आवाज उठाने वाले लोगों को रोल मॉडल बनाकर दुनिया के सामने लाने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए ताकि समाज से सकारात्मक परिणाम आ सके। डॉ.विजयलक्ष्मी ने मौके पर मौजूद पत्रकारों को यह भी जानकारी दी कि इन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ने वाले पत्रकारों के द्वारा प्रकाशित या प्रसारित समाचार को निगम की ओर से सम्मानित भी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर बनाए गए विडियो फिल्म, पोस्टर, कार्टून के लिए भी पत्रकारों को सम्मान दिया जाएगा। उन्होंने लड़का-लड़की में भेदभाव नहीं करने की बात पर बल देते हुए कहा कि इस अभियान से बालिकाओं की संख्या में वृद्धि होगी।उन्होंने कहा कि आज नए विचारों पर काम करने की जरूरत है ताकि अशिक्षा, दहेज हत्या और घरेलू हिंसा जैसी समस्याओं पर काबू पाया जा सके।
कार्यशाला में अपने संबोधन के दौरान दिल्ली से आई जेन्डर विशेषज्ञ ज्योत्सना रॉय ने कहा कि बाल विवाह एवं दहेज प्रथा एक अभिशाप है। अब वक्त आ गया है कि इन बुराईयों को जड़ से समाप्त करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए कानून का प्रचार-प्रसार हर स्तर पर गंभीरता से किया जाए और पुलिस नियमों का सख्ती से पालन कराए दोषियों को सजा दिलाने में त्वरित कार्रवाई करे ताकि लोगों के बीच ऐसा कदम न उठाने का संदेश पहुंच सके। उन्होंने कहा कि मीडिया की भूमिका ऐसे सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने में काफी मददगार साबित हो सकती है। आज की युवा पीढ़ी रेडियो और एफएम चैनल तथा सोशल नेटवर्किंग साइट से काफी जुड़ाव रखती है। सुश्री ज्योत्सना ने कहा कि जागरूकता अभियान को बदलते वक्त के साथ नए-नए प्रचार माध्यमों से भी प्रकाशित और प्रसारित करना चाहिए क्योंकि एक युवा कई लोगों तक इन बातों को बड़ी ही आसानी से पहुंचा सकता है। अपने संबोधन के क्रम में उन्होंने समाज और उसकी संरचना एवं नागरिकों के दायित्वों के कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की।
इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत उपस्थित गणमान्य लोगों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया। अपने स्वागत भाषण में यूनिसेफ़, बिहार शाखा की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बाल विवाह जैसी समस्या से निपटने के लिए बच्चों के कोमल मन को समझते हुए उनकी भावनाओं का आदर करना चाहिए ताकि यही मासूम बड़े होकर दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद कर सकें। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि सभी प्रकार की मीडिया अन्य खबरों के अलावा ऐसे गंभीर विषयों पर विशेष कवरेज करे ताकि समाज के अंतिम पाठक या श्रोता को जागरूक किया जा सके। कार्यशाला में इसके अलावा कई विषय विशेषज्ञों ने भी अपनी बातें रखीं। इस मौके पर राज्य के कई प्रमुख मीडिया संस्थानों के संपादक, उनके प्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता भी मौजूद रहे। कार्यशाला के अंतिम क्षण में खुला सत्र के दौरान मीडिया द्वारा मुद्दे को संदर्भित करने की रणनीति पर चर्चा की गई।