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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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मीडिया की तस्वीर को आइना दिखाने की कोशिश : संजय

संजय कुमार की किताब ‘मीडिया : महिला, जाति और जुगाड़’ के बहाने हुई चर्चा

लखनऊ। जाने-माने लेखक व पत्रकार संजय कुमार की हाल में प्रकाशित किताब "मीडिया : महिला, जाति और जुगाड़" पर परिसंवाद का कार्यक्रम शुक्रवार को गोमती नगर स्थित शीरोज हैंगआउट में आयोजित हुआ। जन संस्कृति मंच लखनऊ की ओर से हुए इस कार्यक्रम में कृति का लोकार्पण जसम के प्रदेश अध्यक्ष कौशल किशोर, कवयित्री कात्यायनी, पत्रकार अजय सिंह आदि ने किया। संजय कुमार ने अपने अनुभवों के साथ ही कृति से जुड़े अहम पहलू पर अपनी बात रखी। इस दौरान उठे सवालों के जवाब भी दिए।

संजय कुमार पटना दूरदर्शन में सहायक निदेशक हैं। पिछले दिनों उनकी चर्चित किताब ‘मीडिया में दलित ढूंढते रह जाओंगे’ आई थी, जिसका लोकार्पण और उस पर परिचर्चा का आयोजन लखनऊ में किया गया था। अब तक उनकी आधा दर्जन पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें ‘तालों में ताले अलीगढ़ के ताले’, ‘पूरब का स्वीट्जरलैण्ड : नगालैण्ड’, ‘बिहार की पत्रकारिता : तब और अब’ प्रमुख हैं। अपनी नई किताब में वे मीडिया में पूंजी के बढ़ते वर्चस्व और उन कारकों की पड़ताल करते हैं, जिसकी वजह से मीडिया सच से दूर होता चला गया है और उसका ढांचा दलित व महिला विरोधी होता गया है।

बातचीत में संजय कुमार कहते हैं कि उनकी किताब का विषय ‘मीडिया : महिला, जाति और जुगाड़’ काफी बोल्ड है, जिसे सुनकर लोग चौंके भी थे। मीडिया जगत में इतने लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने मीडिया को काफी नजदीक से देखा है। मीडिया की जो तस्वीर है, उसे इस किताब के माध्यम से आइना दिखाने की कोशिश की गई है। न सिर्फ सरकारी, बल्कि निजी मीडिया दोनों में महिलाओं को लेकर कई ऐसे तथ्य सामने आएं हैं, तो चौंकाने वाले हैं और मीडिया की हकीकत उजागर करते हैं। किताब में ऐसी ही कई मामलों को बतौर उदाहरण पेश करने के साथ ही एक महिला की आपबीती भी शामिल की है। महिलाओं के साथ यौन शोषण की बात हो या फिर जाति का मामला। जुगाड़ भी कई मायनों में मीडिया संस्थाओं के भीतर काफी देखने को मिला है। इन सबके चलते गैर-प्रतिभा वाले लोगों की मीडिया में भरमार हो गई है, जबकि प्रतिभावान लोग मीडिया में अपनी जगह नहीं बना पा रहे हैं।

कौशल किशोर ने कहा कि संजय ने मीडिया की संरचना कैसी है, इसकी पड़ताल करते हुए पुस्तक लिखी है। चौथे स्तंभ की जो भूमिका निगरानी करने की थी, वह स्वयं सवालों के घेरे में आ गई है। सिस्टम में रहते हुए जो अनुभव संजय ने बटोरे, उन्हें किताब के माध्यम से सबके सामने लाने की कोशिश उन्होंने की है। यह कोशिश करनी चाहिए कि इनके वैचारिक कारणों में जाएं। नवउदारवाद के बाद मीडिया में जो प्रभाव आया, उसे भी संकेतों के माध्यम से संजय ने रखने की कोशिश की है। आज के समय में मीडिया जीवन का हिस्सा बन गया है, जहां झूठ और धोखा परोसा जा रहा है।

अरुण खोटे ने कहा कि शैक्षिक संस्थानों ने बड़ी संख्या में दलित छात्र पास होते हैं, लेकिन मीडिया घरानों में उन्होंने जगह नहीं मिल पाती है। थक-हार कर वे निजी कंपनियों में पब्लिक रिलेशन की नौकरी करते हैं। मीडिया की जवाबदेही तय करने की दिशा में भी प्रयास होना चाहिए। सामाजिक सरोकारों के लिए हर मीडिया में जगह तय होनी चाहिए. अंतर्निहित रिश्तों को भी पकड़ना चाहिए। अजय सिंह ने कहा कि महिलाओं पर हिंसा और अत्याचार की घटनाएं हर साल बढ़ी है, जबकि महिलाओं को लेकर कई नए कानून भी बने हैं। महिलाओं को लेकर जब समाज की यह स्थिति है तो मीडिया इससे कैसे अछूता रह सकता है। महिलाओं का इस्तेमाल हो रहा है और वे उपेक्षित भी हैं। इस अवसर पर राजेश कुमार, मृदुला भारद्वाज, सुभाष राय, नसीम साकेती, भगवान स्वरूप कटियार, केके वत्स, कात्यायानी, अजय सिंह,  आर के सिन्हा,  किरण सिंह,  राजीव यादव, पूजा शुक्ला, प्रताप साहनी आदि ने अपने विचार रखे। मौके पर आलोक पराड़कर , संदीप सिंह, लीना, बी एम प्रसाद, सुधान्सु वाजपेयी,संगीता,कासिम बाबा ,कप्तान कर्णधार  सहित कई बुद्धिजीवी मौजूद थे.

कार्यक्रम का संचालन जसम के प्रदेशा अध्यक्ष  कौशल  किशोर  ने किया और  धन्यवाद  ज्ञापन जसम, लखनऊ के संयोजक श्याम अंकुरम ने किया।

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सम्पादक

डॉ. लीना