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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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मीडिया का कार्य समाज की अंतर चेतना को जगाना: प्रो. बल्देव भाई शर्मा

प्रो. संजय द्विवेदी की नई किताब 'भारतबोध का नया समय' पर ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन

नई दिल्ली। देश के प्रख्यात पत्रकार एवं भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी की नई किताब 'भारतबोध का नया समय' पर शनिवार को ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। यश पब्लिकेशंस और 'राष्ट्रवाक्' पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रो. बल्देव भाई शर्मा ने की। आयोजन में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए।

परिचर्चा के प्रमुख वक्ताओं के तौर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे, लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली के पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर डॉ. वर्तिका नंदा एवं 'राष्ट्रवाक' पत्रिका के संपादक श्री कमलेश कमल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. नागेश्वर राव, पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर. पी. तिवारी एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के सदस्य सचिव प्रो. कुमार रतनम् भी उपस्थित थे।

भारत की आत्मा को जगाने की कोशिश : प्रो. बल्देव भाई शर्मा

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रो. बल्देव भाई शर्मा ने कहा कि 'भारतबोध का नया समय' लोकजागरण का दस्तावेज है। आजादी के अमृत महोत्सव की इस बेला में नई पीढ़ी के लिए भारत को सही अर्थों में जानने और समझने का अवसर इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह किताब वास्तव में भारत की आत्मा को जगाने की कोशिश है।

प्रो. शर्मा के अनुसार मीडिया का कार्य समाज की अंतर चेतना को जगाना है। सजगता, निर्भयता, सत्यान्वेषण और मानवीय चेतना का विस्तार, पत्रकारिता के चार मूल तत्व हैं। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने इन चारों तत्वों को समेटकर भारत की बौद्धिक चेतना को हमारे सामने प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि भारत को जाने बिना हम भारत के नहीं बन सकते। इस किताब में प्रस्तुत लेखों से भारत के गौरव की अनुभूति पूरे देश को हो रही है।

पूरे देश में हो भारतबोध पर विमर्श : प्रो. के.जी. सुरेश

इस अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने कहा कि भारतीयता को हीनभावना से प्रस्तुत करने का प्रयास समाज के एक विशेष वर्ग द्वारा लगातार किया जा रहा है। यह पुस्तक ऐसे लोगों को भारतीयता और भारतबोध का सही अर्थ समझाने का प्रयास करती है। प्रो. सुरेश के अनुसार भारत के लोगों का आज भारत को समझना बेहद आवश्यक है। राष्ट्रवाद और भारतबोध जैसे विषयों पर जो गलत धारणा समाज में स्थापित करने की कोशिश हो रही है, उन भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास यह पुस्तक बखूबी करती है।

समकालीन भारत को समझने की कुंजी : प्रो. कृपाशंकर चौबे

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि हमारे देश में कुछ लोग भारतबोध की बहस को बहकाने में लगे हैं। विविधता में एकता भारत की प्रकृति है। विविधता भारत की कमजोरी नहीं, शक्ति है। उन्होंने कहा कि समकालीन भारत को समझने के लिए यह पुस्तक कुंजी का काम करेगी।

राष्ट्रीयता की अलख जगाने की कोशिश : डॉ. नंदा

लेडी श्रीराम कालेज, दिल्ली के पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर डॉ. वर्तिका नंदा ने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से न सिर्फ राष्ट्रीयता की अलख जगाने की कोशिश की गई है, बल्कि ये किताब नई पीढ़ी के पत्रकारों को हड़बड़ी की पत्रकारिता करने से रोकेगी। अमेजन की बेस्ट सेलर्स लिस्ट में इस पुस्तक का आना यह बताता है कि भारतीयता से जुड़े कंटेंट को पढ़ने में अब पाठकों की रुचि जगी है।

नए भारत से कराया परिचय : कमलेश कमल

'राष्ट्रवाक' पत्रिका के संपादक श्री कमलेश कमल ने कहा कि 'भारतबोध का नया समय' नए भारत से हमारा परिचय कराती है। एक ऐसा भारत, जिसका सपना हमारे राष्ट्रनायकों ने देखा था। अपनी संस्कृति को लेकर लोगों में जो हीनताबोध है, इस पुस्तक के माध्यम से उसे दूर करने का प्रयास किया गया है।

आत्मदैन्य से मुक्त हो रहा नया भारत : प्रो. संजय द्विवेदी

इस मौके पर पुस्तक के लेखक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि सही मायनों में आज भारत जाग रहा है और नए रास्तों की तरफ देख रहा है। आज भारत एक नेतृत्वकारी भूमिका के लिए आतुर है और उसका लक्ष्य विश्व मानवता को सुखी करना है। आज के भारत का संकट यह है कि उसे अपने पुरा वैभव पर गर्व तो है, पर वह उसे जानता नहीं हैं। इसलिए भारत की नई पीढ़ी को इस आत्मदैन्य से मुक्त करने की जरूरत है।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. विष्णुप्रिया पांडेय ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन यश पब्लिकेशंस के निदेशक श्री जतिन भारद्वाज ने दिया।

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सम्पादक

डॉ. लीना