लखनऊ, 13 दिसम्बर। जनकवि रमाशंकर विद्रोही सीमान्त पर खड़े बड़े फलक के कवि है। हमारा अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी यहां है। वे समय के साथ चलते हुए सुख को देखते हैं, तो दुख को भी। वे उजाला और अंधेरा दोनों को देखते हैं। इसीलिए वे इतना सार्थक रच पाते हैं। निराला ने कहा था कि करो शक्ति की मौलिक कल्पना वैसा ही भाव इनकी कविताओं में हैं। इनकी कविताओं के शीर्षक हटा दीजिए, सारी कविताएं मुक्तिबोध की लम्बी कविता ‘अंधेरे में‘ की तरह लम्बी कविता लगती है जिसे वे लगातार रच रहे हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि वह जहां छोड़ गये हैं, उसे हम आगे बढ़ायें। ऐसा करना ही उनके प्रति हमारी श्रद्धांजलि हो सकती है।
रमाशंकर विद्रोही की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए यह बात कवि व ‘जनसंदेश टाइम्स‘ के प्रधान संपादक सुभाष राय ने कही। इसका आयोजन जन संस्कृति मंच की ओर से लेनिन पुस्तक केन्द्र में किया गया। विद्रोही का निधन बीते 8 दिसम्बर को दिल्ली में हुआ। इस मौके पर विद्रोही की ‘मोहनजोदडो....‘ का पाठ भी हुआ। कार्यक्रम का संचालन मंच की लखनऊ इकाई के संयोजक श्याम अंकुरम ने की। उन्होंने कहा कि अमतौर कहा जात है कि नारे कविता नहीं होते लेकिन विद्रोही जी ने तमाम नारों को कविता में बदल दिया। यह उनकी खासियत है।
कवि भगवान स्वरूप कटियार ने रमाशंकर विद्रोही पर अपना लिखित अलेख पस्तुत करते हुए कहा कि विद्रोही कविता लिखते नहीं कविता कहते हैं एक खास अन्दाज में एक सार्थक बयान के बतौर द्य स्त्री के दुःख और उत्पीड़न के प्रति जितनी गहरी संवेदना विद्रोही की कविताओं में मिलती है इतनी कहीं अन्यत्र नहीं मिलती है द्य विद्रोही की कविता के भुखाली हरवाहा एकन्हई कहारए नूर मियां तथा नानी दृदादी के अद्भुत चरित्र हैं जो आत्मीयता और जीवटता से भरे हैं द्य वे जनता के राष्ट्र के निर्माण की बेचैनी और फ़िक्र के कवि हैं द्य फ़िलहाल उन्हें अपना देश कालिंदी की तरह लगता है और सरकारें कालिया नाग की तरह जिससे देश को मुक्त कराना उनकी कविता का जरुरी कार्यभार है ।
इप्टा के महासचिव राकेश ने कहा कि वे आंदोलन के कवि थे। उसी से वे अनुप्राणित थे। वाम राजनीति और आंदोलन से उनका रिश्ता था। ऐसे रचनाकार का जाना रिक्तता पैदा करता है और हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। जनवादी लेखक संघ के सचिव नलिन रंजन सिंह ने जेएनययू में जाते हुए उन मुलाकातों का जिक्र करते हुए कहा कि उनका छात्रों के साथ गहरा जुड़ाव था। उन्हीं में वे रचे बसे थे। उन्होंने अवधी में भी महत्वपूर्ण रचा। हमारी जिम्मेदारी बनती है कि उन्होंने हिन्दी व अवधी में जो रचा उसे संग्रहीत कर सामने लायें।
नाटककार राजेश कुमार ने कहा कि उन्होंने अपने को डी क्लास किया था। यह उनके अन्दर का यह सर्वहारा संस्कार था जिसकी वजह से वे उन चिन्ताओं से मुक्त थे जो माध्यवर्गीय कवियों की आम प्रवृति देखी जा रही है। वे जिस तरह कविताएं पढ़ते थे, उससे पता चतला है कि उनकी कविताओं में नाटकीयता मौजूद थी। उन्हें अभिनेता कवि भी कहा जा सकता है। इस मायने में वे वे बड़े और महान कवि है। उनके इस गुण को ग्रहण करने, उनसे हमें सीखने की जरूरत है। जसम उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष व कवि कौशल किशोर ने कहा कि वे अपने जीवन और कविताओं में विद्रोह को जीते थे। वे कबीर की तरह फक्कड़, बेलौस और अक्खड है जहां पाने की नहीं खोने की इच्छा है। इसके केन्द्र में वह इन्सान है जिसे सदियों से वंचित किया गया। वह औरत है जिसे जलाया जाता रहा है। वे जब कहते हैं कि ‘मै ऐसा हरगिज नहीं होने दूंगा’ तो इसमें आदि विद्रोह से लेकर आज की सभी सत्ताओं के प्रति विद्रोह की भावना है।
स्मृति सभा को कवि बीएन गौड़ व ब्रजेश नीरज, रामायण प्रकाश, आइसा के प्रदेश अध्यक्ष सुधांशु बाजपेई ने भी संबोधित किया। कर्यक्रम में कल्पना पाण्डेय, विमला किशोर, बंधु कुशावर्ती, आर के सिन्हा, जयराम, राजीव गुप्ता, सूरज प्रसाद आदि भी उपस्थित थे।