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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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रवींद्र कालिया को साहित्यकारों ने याद किया

लखनऊ। प्रख्यात संपादक और चर्चित कथाकार रवीन्द्र कालिया के निधन पर सोमवार को इप्टा कार्यालय कैसरबाग में शोकसभा ‘स्मरण रवीन्द्र कालिया’ आयोजित हुई, जिसमें शहर के तमाम लेखकों ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, इप्टा, अमिट, अर्थ, साझी दुनिया, अलग दुनिया, कलम सांस्कृतिक मंच समेत कई संगठनों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ उपन्यासकार रवीन्द्र वर्मा ने 1967 से श्री कालिया से अपनी निकटता को याद किया। उन्होंने ‘गालिब छूटी शराब’ का हवाला देते हुए कहा कि रवींद्र में खिलंदड़ अंदाज के साथ ही गहरी संवेदना भी थी। नई कहानी की जो त्रयी थी, वह सिर्फ एक-दूसरे के प्रमोट करती थी, जबकि दूसरी ओर साठोत्तरी के चार यारों काशीनाथ सिंह, दूधनाथ सिंह, रवींद्र कालिया और ज्ञानरंजन में अंतर्विरोध भी था। इन यारों, खासकर रवींद्र ने नई पीढ़ी को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। इसीलिए उनमें आत्मविश्वास जागा था।

रवींद्र कालिया के काफी करीबी रहे कथाकार एवं तद्भव के संपादक अखिलेश ने अपने कई संस्मरण साझा किये और रवीन्द्र कालिया को याद करते हुए फफक कर रो पड़े। उन्होंने कहा कि श्री कालिया से उनका गहरा रिश्ता रहा है। उनका घर मेरे घर जैसा था। वे एक अभिभावक की तरह थे। इलाहाबाद आने पर उनका लेखन का मुहावरा बदला। व्यवस्था को चुनौती देने और लड़ने की बात करते थे। उन्होंने काला रजिस्टर, खुदा सही सलामत है, गरीबी हटाओ जैसी रचनाओं का हवाला भी दिया। अखिलेश ने कहा कि श्री कालिया लेखन के साथ जीवन में भी विरले थे। अपने स्वभाव और विरले अंदाज के चलते इलाज के दौरान डाक्टरों को भी चकित कर देते थे और हैरत में डाल देते थे। उन्होंने इलाज के दौरान के कई किस्से भी सुनाए। वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने सम्पादक से ले करके गालिब छुटी शराब तक की चर्चा की।

वरिष्ठ आलोचक वीरेन्द्र यादव ने उनसे जुड़े हुए इलाहाबाद, लखनऊ और कलकत्ता के संस्मरण सुनाये। साथ ही उनकी रचना धर्मिता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि रवींद्र कालिया जिंदादिल इंसान थे। महफिलों, गोष्ठियों, बैठकों में अपनी चुटीली बातों, ठहाकों, तात्कालिक प्रतिक्रियाओं से सबको प्रभावित कर देते थे। गंभीर लेखन करने वाला यह लेखक खिलंदड़ भी था। उनकी पहली मुलाकात 1980 में जबलपुर में प्रगतिशील लेखक संघ के अधिवेशन में हुई थी, लेकिन संवाद का सिलसिला काफी बाद में शुरू हुआ। उनमें दूसरों के प्रति सम्मान का भाव था। ‘खुदा सही सलामत है’ बदली हुई राजनीति और बदलते दौर में आया। यह श्री कालिया के लेखन का डिपार्चर था। ‘गालिब छूटी शराब’ में उनके लेखन की अलग विधा थी। उन्होंने नई पीढ़ी तैयार की, उन्हें प्रोत्साहित किया और आगे बढ़ाया।

संचालन कर रहे आलोचक नलिन रंजन सिंह ने जलेस द्वारा आयोजित 75 पार 60 के कथाकार कार्यक्रम की चर्चा की और रवीन्द्र कालिया के वक्तव्य के हवाले से उनके तमाम संस्मरण और उनकी रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डला। उन्होंने कहा कि 60 के बाद के कहानी अंदोलन में उनकी कहानियां अलग मुकाम रखती हैं। उन्हें इस बात का दुख था कि गालिब छूटी शराब के आगे अन्य किताबें दब गईं। उन्होंने विसंगतियों और विद्रूपताओं को भाषा के माध्यम से रखा, जो बेजोड़ है। चारों यारों में रवींद्र सबसे कम उम्र के थे। जन संस्कृति मंच के प्रदेश अध्यक्ष कौशल किशोर ने कहा कि साठोत्तरी पीढ़ी के रवींद्र कालिया ने किस्सागोई की परंपरा को बोध के स्तर पर, भाषा के स्तर पर एवं शिल्प के स्तर पर नया आयाम दिया। उन्होंने रवींद्र की सामाजिकता के कई उदाहरण दिए और उनके सरोकारों पर चर्चा की।

इप्टा के राकेश ने भी अपने संस्मरण सुनाये। साझी दुनिया की रूपरेखा वर्मा, अमिट की वंदना मिश्रा और अलग दुनिया के केके वत्स ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर शीला रोहेकर, शैलेन्द्र श्रीवास्तव, प्रताप दीक्षित, प्रियदर्शन मालवीय, अजीत प्रियदर्शी, राजेश कुमार, प्रदीप घोष, राजीव प्रकाश गर्ग ‘साहिर’, प्रज्ञा पाण्डेय, विजय पुष्पम पाठक, दिव्या शुक्ला आदि ने भी उन्हे याद किया। वक्ताओं ने एक स्वर से यह माना कि साठोत्तरी कहानी में रवीन्द्र कालिया का योगदान अविस्मरणीय है और एक सम्पादक के तौर पर नई प्रतिभाओं को सामने लाने का उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।

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सम्पादक

डॉ. लीना