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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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रिपोर्टिंग के संबंध में उच्चतम न्यायालय का अहम फैसला

विचाराधीन मामलों की रिपोर्टिंग के बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश देने से इनकार

लेकिन कहा- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं और खास मामलों मे की जा सकती है पाबंदी की माँग

मीडिया विचाराधीन मामलों की रिपोर्टिंग कैसे करें, इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट दिशा-निर्देश निर्धारित करने से मना कर दिया है। लेकिन कहा है कि, मूल अधिकारों में निहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है और पत्रकारों को अपनी लक्षमण रेखा मालूम होनी चाहिए, ताकि किसी तरह की अवमानना न होने पाएं। साथ ही , न्यायालय ने  संवैधानिक सिद्धांत निर्धारित किया है, जिसके अंतर्गत पीड़ित पक्ष अदालती सुनवाई का प्रकाशन स्थगित करा सकते हैं। इससे खास मामलों में पाबंदी लगाए जाने की मांग की जा सकती है।

प्रधान न्यायाधीश एस.एच. कापड़िया की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने व्यवस्था दी है कि मूल अधिकारों में निहित, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है और पत्रकारों को अपनी लक्षमण रेखा का ज्ञान होना चाहिए, ताकि किसी तरह की अवमानना न होने पाएं। न्यायालय ने कहा कि वे संवैधानिक सिद्धांत इसलिए निर्धारित कर रहे हैं ताकि पीड़ित पक्ष अदालती सुनवाई के प्रकाशन को स्थगित कराने के लिए उपुयक्त न्यायालय में अपील कर सके। उन्होंने कहा कि कोई भी संतृप्त व्यक्ति अपने मामले की सुनवाई की रिपोर्टिंग करने से मीडिया को रोकने के लिए किसी उपयुक्त अदालत में जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान के तहत मीडिया रिपोर्टिंग सहित अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार कोई पूर्ण अधिकार नहीं है और यह वर्गीकरण व औचित्य की जांच पर निर्भर करता है। पीठ ने यह भी कहा कि सम्बद्ध न्यायालय अदालती सुनवाई की रिपोर्टिंग स्थगित करने के बारे में फैसला हर मामले के गुण-दोष के आधार पर करेगा।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस तरह का कोई भी दिशा-निर्देश अल्पकालिक होगा और यह अनिवार्यता व अनुरूपता के सिद्धांत पर निर्भर करेगा। न्यायालय ने कहा कि संतृप्त वादी अलग-अलग मामलों में सुप्रीम कोर्ट या किसी हाईकोर्ट जाकर आदेश या स्थगन की मांग कर सकता है, जिसमें किसी खास मामले में एक सीमित अवधि के लिए मीडिया को रिपोर्टिंग करने से रोका जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि यह आदेश निवारक होगा, दंडात्मक नहीं।

न्यायालय ने आगे कहा कि यह केवल न्यायालय की अवमानना के मामलों से मीडिया कर्मियों को बचाने के लिए है। न्यायालय ने कहा कि मीडिया के रिपोर्टिंग के अधिकार और वादी के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को संतुलित करने के लिए ये निर्देश जारी किए जा रहे हैं।

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सम्पादक

डॉ. लीना