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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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रेवान्त पत्रिका के नरेश सक्सेना विशेषांक का हुआ लोकार्पण

 लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के लोकार्पण समारोह में 11 मई 2015 को प्रदेश की राजधानी ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों और बाहर से आए वरिष्ठ रचनाकारों के बीच साहित्यिक एवं सांस्कृतिक पत्रिका रेवान्त के नरेश सक्सेना विशेषांक का लोकार्पण हुआ।

मुख्य अतिथि वरिष्ठ रचनाकार राजेश जोशी, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ रचनाकार लीलाधर मंडलोई, अध्यक्षता कर रहे हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह समेत अन्य वक्ताओं ने पत्रिका का लोकार्पण किया। साथ ही नरेश के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अलावा उनकी कविताओं पर चर्चा की। आज के हालात और कविता पर मंडरा रहे संकट का जिक्र भी हुआ।

पत्रिका के लोकार्पण के बाद नरेश सक्सेना ने कहा कि इस शहर में रहते हुए उन्हें 50 साल तीन महीने हो गए हैं। इस दरम्यान यहां उन्हें असली पहचान मिली और मित्र मिले। ‘कोई सितारे लुटा रहा था, किसी ने दामन बिछा दिए’ पंक्तियों के जरिए उन्होंने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा दामन बहुत छोटा है, लेकिन हमेशा इसे फैलाए रहता हूं कि शायद कोई सितारे लुटाते हुए निकल जाए। यह पहला अवसर है, जब उनकी किताब का लोकार्पण हुआ। अपनी कविताओं की कई पुस्तकें छपीं, लेकिन किसी का लोकार्पण नहीं हुआ। यहां तक कि एक लघु फिल्म भी बनाई, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, लेकिन इसे लखनऊ में नहीं दिखाया जा सका। इस सम्मान को लेकर सोचता हूं कि क्या में इसके लायक भी हूं, या फिर इसके लायक बनना पड़ेगा।

रेवान्त के प्रधान संपादक कौशल किशोर ने कहा कि नरेश के काव्य व्यक्तित्व में एक विशेष धातु की गूंज है। विशेषांक के माध्यम से इस धातु को परखने एवं इसकी पड़ताल करने की कोशिश की गई है। नरेश सक्सेना का जीवन बहुत बड़ा आयाम है। वह सन 60 से लिख रहे हैं और संस्कृतिकर्मी भी हैं, जिन्हें सिर्फ एक अंक में समेटा जाना मुमकिन नहीं है। आज का दौर क्षणिक सुख का दौर है, जिसे नरेश नकारते हैं।

वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि नरेश सक्सेना की कविताएं पढ़ने के बाद उनसे लगाव बढ़ा। उनका व्यक्तित्व वैविध्यपूर्ण है। उन्होंने कविता के हालात का जिक्र करते हुए कहा कि 16 मई के बाद काव्य का परिदृश्य बदला है। यह चुनौतीपूर्ण समय है। इस समय दो तरह के खतरे मंडरा रहे हैं। पहला साहित्य को संदर्भ से अलग करने का खतरा और दूसरा उसे अधिग्रहीत करने का खतरा है। यह भी  कोशिश की जा रही है कि कविता के जरिए सत्ता की आततायी और शोषक छवि को नरम किया जा सके। ऐसे हालात में अपनी कविता और खुद को बचाना है। स्वयं से सवाल करने की प्रक्रिया कवि और कविता में दूरी बना देती है। इस दूरी को खत्म करने की जरूरत है। हम सबको आत्मावलोकन करने की जरूरत है। सरोकारों तक पहुंचने के लिए नई भूमिका पर ध्यान देना जरूरी है। प्रेमचंद और मुक्तिबोध को संदर्भों से अलग किया जा रहा है, समूचे साहित्य को हाशिये पर लाया जा रहा है।

तद्भव के संपादक अखिलेश ने कहा कि नरेश की कविता के शब्द-शब्द का खास संदर्भ होता है। हर शब्द की अपनी एक जगह होती है। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी है। कविताओं में लय और संगीतबद्धता मिलती है। विजुअल भी दिखाई देता है। पूंजीवादी विकास के माडल ने प्रकृति और मनुष्य को तोड़ा है। नरेश ने अपनी कविताओं में काफी पहले इसे व्यक्त किया था।

चंद्रेश्वर ने कहा कि नरेश ने अपने कवि कर्म के दम पर पहचान बनाई। वे सामान्य बातचीत में या मंच पर बोलते, या काव्यपाठ करते समय एक लय में दिखते हैं। उनके जीवन और उनकी कविताओं पर संगीत का अद्भुत सकारात्मक प्रभाव है। सुधाकर अदीब नेकहा कि नरेश अत्यंत संवेदनशील और अनुपम कवि हैं। वह अद्भुत शब्द शिल्पी हैं। उनकी कविताएं बहुत कुछ सीखने का अवसर देती हैं। छोटी कविता के जरिए बहुत बड़ी बात कहना उनकी खासियत है। उनमें दर्शन और चिंतन नजर आता है।

चिंतक प्रो. रमेश दीक्षित ने कहा कि इस अमानवीय और बर्बर समय में नरेश की कविताएं मनुष्यता को बचाने का रास्ता दिखाती हैं। उनमें एक संकल्प नजर आता है। उन्होंने नरेश को प्रोत्साहन देने वाला रचनाकार बताया और कहा कि वह जब कविता पढ़ते हैं तो एक दृश्य उभर आता है। स्वप्निल ने कहा कि उन्होंने नरेश की कविताओं से सीखा। उनकी कविताओं लोगों तक पहुंचती हैं औरउनमें बहुत सारे बिम्बों का प्रयोग मिलता है। इसके पहले दीप प्रज्वलन और सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण से समारोह का शुभारंभ हुआ। पत्रिका की संपादक अनीता श्रीवास्तव ने आगंतुकों का स्वागत किया। उन्होंने सभी मंचासीन अतिथियों और वक्ताओं को बुकें भेंट  की, जबकि रूपल अग्रवाल ने प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया। समारोह का संचालन डा. अमिता दुबे ने किया, जबकि सीमा अग्रवाल ने आभार  जताया।

इस मौके पर शिवमूर्ति, रवींद्र वर्मा, नसीम साकेती, शीला रोहेकर, वंदना मिश्रा, राम किशोर, भगवान स्वरूप कटियार, विजय राय, जुगुल किशोर, ऊषा राय, किरन सिंह, प्रदीप घोष, अजय द्विवेदी, दीपक कबीर, राजेश कुमार, प्रज्ञा पांडेय, राकेश, लक्ष्मीकांत दुबे, डा. अनिल मिश्र, विजय पुष्पम आदि उपस्थित रहे

 

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना