रमाशंकर विद्रोही की स्मृति में लखनऊ में शोकसभा 13 दिसम्बर को होगी। यह सभा लेनिन पुस्तक केन्द्र, लालकुंआ में शाम 4 बजे से रखी गई है। इस अवसर पर उनकी चुनिन्दा कविताओं का पाठ भी होगा तथा उन पर नितिन के पम्नानी की फिल्म "मै तुम्हरा कवि हूँ" दिखयी जायेगी.
राजपथ को ठेंगा दिखाता जनपथ का कवि है रमाशंकर विद्रोही - जसम
लखनऊ। जनकवि रमाशंकर विद्रोही के निधन पर अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए जन संस्कृति मंच ने कहा कि जैसे क्रान्ति बूढ़ी नहीं होती, वह हमेशा नौजवान बनी रहती है, वैसे ही विद्रोह और उसका गायक व सर्जक भी हमेशा जिन्दा रहता है। रमाशंकर विद्रोही इसी विद्राह के कवि हैं। वे कविता की नई खेती करते हैं जिसमें आदि विद्रोह से लेकर आधुनिक समय के बदलाव की जबरदस्त जिजीविषा व संघर्षधर्मिता है। उन्हें याद करते हुए मंच के प्रदेश अध्यक्ष कौशल किशोर, उपाध्यक्ष भगवान स्वरूप कटियार व चन्द्रेश्वर, नाटककार राजेश कुमार तथा लखनऊ इकाई के संयोजक श्याम अंकुरम ने कहा कि विद्रोही जी ने कविता के लिए कागज व कलम को कभी जरूरी नहीं समझा।
कभी कविता लिखी नहीं। वे हिन्दी और उर्दू की कहन और वाचिक परम्परा के कवि थे। उनकी कविता दिल से, तेज धार वाली नदी की तरह अपने तट बंधों को तोड़ती हुई अन्तर्मन से फूटती है।
मंच के लेखकों ने उन्हें अपना सलाम पेश करते हुए कहा कि रमाशंकर विद्रोही करीब 35 सालों से दिल्ली में थे। देश की राजधानी के राजपथ को ठेंगा दिखाते हुए वह जनपथ का ऐसा कवि है जो इसी जनपथ पर अपनी चप्पलें घसीटता है और हर आंदोलन की अगली कतार में सशरीर मौजूद रहता है। कविता की अभिजात्य परम्परा से कोसो दूर वह कविता का खुरदुरा व कंटीला रास्ता चुनता है और कहता है ‘मैं तुम्हारा कवि हूं‘, उस जनता का जिसे सदियों से उत्पीडि़त व वंचित किया गया है, किया जा रहा है अर्थात अवंचित राष्ट्र का कवि उन लोगों का कवि जिन्हें अभी राष्ट्र बनना है। विद्रोही आज के समय का अत्यंत दुर्लभ कवि है जो कविता में बतियाता है, रोता है, गाता है। चिन्तन करता है, भाषण देता है, बौराता है, गरियाता है, संकल्प लेता है, खुद को और सबको संबोधित करता है।
रमाशंकर विद्रोही की खडी बोली की काफी कवितायेँ लिपिबद्ध कीं गई जो ‘नयी खेती’ संग्रह में छपीं.। दिल्ली में रहते हुए भी उनके अन्दर उनका गांव जीवित था। उन्होंने अवधी में भी कविताएं लिखीं। इस बात का दुख है कि उनकी ढेरों अवधी रचनाएं रिकार्ड नहीं की जा सकीं। वे विद्रोही के साथ सदा के लिए खो गयी। 2011 में जसम द्वारा आयोजित चौथे लखनऊ फिल्म समारोह में विद्रोही लखनऊ आये थे। उन्होंने अपनी कई कविताएं सुनाई थीं। उस मौके पर उनके कवि और कविता पर बनाई नितिन के पमनानी की फिल्म ‘मैं तुम्हारा कवि हूं‘ भी दिखाई गई थी।
रमाशंकर ‘विद्रोही’ का जन्म 3 दिसंबर, 1957 को ऐरी फिरोजपुर ( जिला सुल्तानपुर) में हुआ। निधन के समय उनकी उम्र मात्र 58 साल थी। 1980 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय में हिन्दी से एम. ए. करने आए। 1983 के छात्र आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने के चलते कैंपस से निकाल दिए गए। 1985 में उनपर मुकदमा चला। तबसे उन्होंने आन्दोलन की राह से पीछे पलटकर नहीं देखा। वाम राजनीति से जुड़े और विद्रोही छात्रों के हर न्यायपूर्ण आंदोलन में उनके साथ तख्ती उठाए, नारे लगाते, कविताएं सुनाते, सड़क पर मार्च करते रहे।
2008 में घूमिल के गांव खेवली में हुए जसम के आठवें राष्ट्रीय सम्मेलन में वे मंच के राष्ट्रीय पार्षद बने। उसके बाद से दिल्ली के बाहर भी उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ आदि तमाम जगहों पर आयोजनों और आन्दोलनों में बुलाए जाते। कल शाम मंगलवार को उनका निधन भी दिल्ली में उस समय हुआ जब वे छात्रों के एक प्रदर्शन में भाग लेने के लिए जेएनयू कैम्पस से जंतर मंतर की ओर जा रहे थे। रास्ते में दिल का दौरा पड़ा और उन्हें बचाया नहीं जा सका। आंदोलन के कवि विद्रोही आंदोलन के बीच ही अपनी अंतिम सांस ली।