एमसीयू में ‘लेखन के विविध आयामों’ पर तीन दिवसीय कार्यशाला शुरू
भोपाल। प्रख्यात रंगकर्मी, कलाकार एवं फिल्म अभिनेता श्री राजीव वर्मा ने कला के विविध आयामों को मीडिया में मिल रहे स्थान को रेखांकित करते हुए कहा कि मीडिया में सकारात्मक आलोचना कलाकार को प्रोत्साहित करती है और वह उससे सीखकर अपनी प्रतिभा में और निखार ला सकता है। उन्होंने पत्रकारों को रिपोर्टिंग करते समय अभिनय, रंगकर्म, एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की पर्याप्त जानकारी होने पर बल दिया।
श्री वर्मा शुक्रवार को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग द्वारा ‘लेखन कला के विविध आयाम’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला के शुभारंभ सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने नाटक की विधा, कला एवं संस्कृतियों के विभिन्न आयामों को समझने के लिए इन विधाओं को पढ़ने पर बल दिया और कहा कि मीडिया में जो खबरें सांस्कृतिक गतिविधियों की प्रकाशित होती हैं, वह सूचनात्मक एवं प्रसंशात्मक होती हैं, यह अच्छी बात है लेकिन गतिविधियों के नकारात्मक पक्ष को भी प्रस्तुत करना जरुरी होता है। इससे कलाकार अपनी गलती को समझता है और उसमें सुधार करता है। उन्होंने अपने जीवन के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि 1986 में दूरदर्शन के लिए चुनौती धारावाहिक में प्राचार्य की भूमिका निभाई थी। इस भूमिका ने उन्हें समाज में एक शिक्षाविद् के रूप में पहचान दिलाई। आप जैसा अभिनय करते हैं उसका प्रतिबिंब समाज में होता है, उन्होंने छात्रों से विभिन्न क्षेत्रों की जानकारियों का संकलन करने का आव्हान किया।
कार्यशाला के मुख्य वक्ता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने लेखन मनोविज्ञान व समाजशास्त्र विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि लिखना हमारा कर्म भी है और धर्म भी। यही लिखने का मनोविज्ञान है। उन्होंने छात्रों को कहा कि लिखना और बोलना आना चाहिए क्योंकि आप कम्युनिकेशन के प्रोफेशनल हैं, कुलपति ने कहा कि क्या लिखना, किसके लिए लिखना ये तय करना जरुरी है। उन्होंने कहा कि लिखना हमारी आवश्यकता है। एक उदाहरण देते हुए प्रो. कुठियाला ने कहा कि रंगमंच में तत्काल प्रतिक्रिया मिलती है लेकिन लिखने में ज्यादातर फीडबैक नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि जो सीख रहे हैं उसे व्यवहार में लाएं। उन्होंने कहा कि हमें व्यावसायिक संचारक बनना है और एक आम व्यक्ति से बेहतर संचारक बनना है। उन्होंने कहा कि लिखना हमारी प्रवृति है साथ ही उन्होंने इच्छा और आवश्यकता में अंतर भी बताया।
कार्यशाला में बंसल न्यूज के संपादक श्री शरद द्विवेदी ने टीवी समाचार लेखन विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि टीवी की भाषा अखबारों की भाषा की तुलना में बहुत सरल और सहज होती है, जितनी सरल भाषा होगी टीवी के दर्शक उतने आपसे जुड़े रहेंगे. इसके साथ ही टीवी न्यूज में दर्शकों के लिए क्यूरीसिटी होना चाहिए, किन्तु, परन्तु, यद्यपि जैसे शब्दों के प्रयोग नहीं करना है. जो बोलचाल की भाषा है उसका ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करें, श्री द्विवेदी ने छात्रों को टीवी न्यूज देखने,किताबें पढ़ने और शब्दावली को और बढ़ाने को कहा।
कार्यशाला के चतुर्थ सत्र में ‘विज्ञापन के लिए कापी’ लेखन विषय पर संवाद के सीईओ संजय धस्माना ने विज्ञापन की विभिन्न विधाओं पर प्रकाश डाला और एक अच्छा विज्ञापन के क्या गुण होते हैं समझाया। अंतिम सत्र में विभागाध्यक्ष संजय द्विवेदी ने लेखन की कला को प्रतिपादित करते हुए उसके आवश्यक तत्वों पर प्रकाश डाला।
कार्यशाला में कल (16 जनवरी)
कार्यशाला के संयोजक एवं विभागाध्यक्ष संजय द्विवेदी ने बताया कि कार्यशाला के दूसरे दिन 16 जनवरी को रंग लेखन एवं रंग समीक्षा विषय पर पंचम सत्र सुबह 11 बजे से शुरु होगा, जिसके मुख्य वक्ता रंगकर्मी शिक्षाविद् डा. सच्चिदानंद जोशी होंगे। छठवां सत्र सृजनात्मक लेखन का होगा, इसमें प्रख्यात कथाकार श्री शशांक छात्रों से रुबरु होंगे। रेडियो एफ एम के लिए लेखन पर चर्चा सातवें सत्र में होगी, इसमें बिग एफ.एम. की सुश्री आर.जे.अनादि मुख्य वक्ता होंगी। आठवां सत्र मैगजीन लेखन के लिए होगा, जिसमें इंडिया न्यूज की ब्यूरो प्रमुख सुश्री दीप्ति चौरसिया होंगी। आखिरी सत्र में पत्रकार श्री गिरीश उपाध्याय सामयिक विषयों पर लेखन पर चर्चा करेगें।