Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

सीड’ ने बेहतर पयार्वरण के लिए ‘वायु प्रदूषण से मुक्त पटना’ रिपोर्ट जारी की

पटना।  शहर की हवा में जहरीले प्रदूषित धूलकणों की मात्रा स्वीकायर् मानक सीमा से कहीं ज्यादा इस कदर बढ़ गयी है कि लोग सांस लेते वक्त अपने फे फड़ों में प्रदूषित वायु के साथ बीमारियाँ भी खींचते हैं।

पयार्वरण को पहुँच रहे नुकसान को लेकर पिछले कई दिनों से मीडिया लगातार रपट प्रकाशित / प्रसारित कर लोगों को आने वाले खतरे से  आगाह कर रहा है । वहीं पयार्वरण व ऊजार् संरक्षण से जुड़ी संस्था ‘सेंटर फॉर एन्वॅायरोंमेंट एंड एनजीर् डेवलपमेंट’ (सीड) के द्वारा जारी एक रपट ने मीडिया और लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है ।

जारी रपट  के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन का आकलन है कि पटना देश का दू सरा सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है, जहां के वायुमंडल में  प्रदूषित धूलकणों  का जमाव बहुत ज्यादा है। यह आकलन वायु प्रदूषण के एक मानक ‘ रेसिपरेबल  संस्पेंडेड पाटीकुलेट मैटर (आरएसपीएम)’ के आधार पर है, जो हवा में व्याप्त प्रदूषित तत्वों जैसे धूल, कण की उपिस्थित को बताता है।

 पटना की हवा में उच्च स्तर के जहरीले प्रदूषित कण, खासकर PM2.5 और PM10 जैसे पाटिर्कुलेट मैटर की मात्रा क्रमशः 149 माइक्रोग्राम और 164 माइक्रोग्राम है, जो सुरिक्षत सीमा से छह गुणा ज्यादा है। अनुमान है कि शहर की ऐसी प्रदूषित हवा लाखों लोगों की सेहत को बेहद नुकसान पहुचायेगी। पटना में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर ने वक्त की नजाकत को रेखांकित किया है कि इस पर तुरंत काबू करना बेहद जरूरी है।

‘वायु प्रदूषण से मुक्त पटना’ (टुवड्र् स हल्दी एयर फॉर पटना) नामक रिपोर्ट को जारी करते हुए ‘सीड’ के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर  रमापित कुमार ने बताया कि, बिजली  की मांग व आपूर्ति में बढ़ती खाई पटना में खराब वायु स्तर का एक मुख्य कारक है। जैसे गैर घरेलू क्षेत्र द्वारा पावर बैकअप के रूप में जेनरेटर से बिजली के लिए  डीजल जलाना और औद्योिगक इकाइयों द्वारा उत्सजर्न इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार है।’ श्री कुमार ने बताया कि  पटना में डीजल का पावर बैकअप के रूप में इस्तेमाल सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण बढ़ाता है। अन्य कारणों में शहर में जरूरत से ज्यादा वाहनों व गाड़ियों का आवागमन, औद्योिगक उत्सजर्न और दूषित धूलकण आदि  हैं ।

पटना में वायु प्रदूषण की ऐसी अप्रत्याशित बढ़त से निबटने के लिए तत्काल एक ठोस योजना की जरूरत है और प्रदूषण से होनेवाले मानव स्वास्थ्य के खतरों के प्रति  व्यापक जनजागरूकता फैलाने की भी आवश्यकता है। ऐसी पिरिस्थित में बिहार सरकार को मजबूत इच्छाशिक्त दिखाते हुए इस प्रदूषण से निबटने के लिए  ठोस कदम उठाना चािहए।’

सीड की प्रोग्राम मैनेजर अंकिता ज्योति ने इस मौके पर कहा कि  ‘गैर घरेलू क्षेत्र सालाना करीब 81 लाख लीटर डीजल जलाता है,जिससे करीब 35 हजार किलोग्राम के बराबर जहरीले व हािनकारक प्रदूषित धूल-कण वायुमंडल में पैदा होते हैं  और यह सब एक घंटे की बिजली जरूरत पूरी करने के लिए किया जाता है। पटना में प्रत्येक दिन  करीब दो से नौ घंटे की बिजली कटौती होती है। अगर वायु प्रदूषण के अभी के स्तर को तत्काल रोकने के उपाय नहीं किए  गये तो अनुमान है कि वर्ष 2031  तक  पािटर् कु लेट  मैटर  205  µg/m3  से  बढ़  कर  383  µg/m3   तक  हो  जायेंगे। 

सीड ने पटना में वायु प्रदू षण के स्तर को सुधारने लिए  पंद्रह सूची कायर्क्रम को रेखांकित किया या है। ‘वायु प्रदूषण से मुक्त पटना’ नामक इस महत्वपूणर् रिपोर्ट  में स्वच्छ ऊजार्, रसोई के लिए  स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल, परिवहन  प्रणाली में सुधार, औद्योिगक इकाइयों पर उत्सजर्न के अनुरूप सख्त लक्ष्य व िनवारणकारी उपाय तय करना आिद के िक्रयान्वयन को सटीक रूप से पेश किया  गया है। ऐसे में बिहार  सरकार को यह प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए कि  वह सचमुच लोगों की चिंता  करती है, और इसके लिए  उसे वायु प्रदू षण में सुधार के लिए  तत्काल कदम उठाने होंगे।

श्री रमापित कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि  ‘वायु प्रदूषण महज पटना के भौगोिलक इलाके की समस्या भर नहीं है, इसिलए बिहार सरकार को समयसीमा आधािरत योजना को अपनाना चािहए और इसको अंतिम परिणित तक पहुचानें के लिए  क्षेत्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर गंठजोड़ करना चािहए। हालांकि इसे अपने बूते ही अल्पकािलक व मध्याविध योजना के अनुरूप स्वच्छ ऊजार्, रसोई के लिए  स्वच्छ ईंधन तक सबकी पहुँच और स्वच्छ पिरवहन प्रणाली की दिशा में आगे बढ़ना चािहए।

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना