पटना/ ब्यूरो रिपोर्ट/ ‘तुरूप’ से सुलगते सवालों को उठाते और ‘अनारकली ऑफ आरा’ से बहस छेड़ते 9वां ‘प्रतिरोध का सिनेमा : पटना फिल्मोत्सव’ का पर्दा गिरा। जन्मशती वर्ष चंपारण सत्याग्रह, अक्टूबर क्रांति और मुक्तिबोध को समर्पित 9वां प्रतिरोध का सिनेमा: पटना महोत्सव में दिखायी गयी फिल्मों में सामाजिक न्याय और राजनीतिक चेतना को बढ़ाने को लेकर प्रतिरोध दिखा।
कैंपस राइजिंग: भारत के छात्र-युवाओं के विक्षोभ की वजहों की थाह लेने की कोशिश
पिछले कुछ बरस से भारत के विश्वविद्यालय सुलग रहे हैं। जहां एक ओर नियंत्रण, प्रतिबंध और सामाजिक भेदभाव की घटनाएं ज्यादा सामने आयी हैं वहीं इसके खिलाफ एक स्वतःस्फूर्त छात्र आन्दोलन भी देखने को मिला है। युसूफ सईद की नई दस्तावेजी फिल्म ‘कैंपस राइजिंग’ छात्र आंदोलन ने इस आंदोलन की वजहों को ही समझने की कोशिश की। इस फिल्म में निर्देशक ने भारत के सात मुख्य विश्वविद्यालयों का जायजा लेकर विद्यार्थियों के असंतोष की वजहों को जानने-समझने की कोशिश की है। हैदराबाद विश्वविद्यालय, रोहित वेमुला की हत्या, जेएनयू के आंदोलन सब इसके केंद्र में है।
भ्रष्ट राजनीति द्वारा मीडिया के इस्तेमाल की सच्चाई को दर्शाया ‘न्यू देहली टाइम्स’ ने
शशिकपूर की स्मृति में ‘न्यू देहली टाइम्स’ फिल्म दिखाई गई, उनकी तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की गई।
आज फिल्मोत्सव में अभिनेता शशि कपूर की याद में रमेश शर्मा निर्देशित और गुलजार लिखित फिल्म ‘न्यू देहली टाइम्स’ दिखाई गई। इस फिल्म में भ्रष्ट और तिकड़मबाज राजनीति के जरिए मीडिया के इस्तेमाल के सच का दर्शाया गया है। राजनीतिक दबाव के कारण वितरकों और टेलिविजन ने इसे दिखाने से मना कर दिया था, जबकि इस फिल्म को तीन राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे। शशि कपूर को बेहतरीन अभिनय के लिए यह पुरस्कार मिला था। शशि कपूर ने इस फिल्म में ‘न्यू देहली टाइम्स’ के ईमानदार कार्यकारी संपादक विकास पांडेय की भूमिका अदा की है। वे इसमें गैरकानूनी शराब के धंधे का पर्दाफाश करते हैं, जिससे सैकड़ों लोग जान गंवा चुके हैं। इसके पीछे वर्तमान मुख्यमंत्री चतुर्वेदी और मुख्यमंत्री बनने के लिए आतुर अजय सिंह के बीच संघर्ष की भी मुख्य भूमिका है। अजय सिंह मौजूदा राजनीति का प्रतिनिधि चेहरा है। वह खतरनाक आदमी है, जो नशीली दवाओं, तस्करी, रंगदारी वसूली और लूट जैसे कई गैरकानूनी धंधों से जुड़ा हुआ है। इकबाल उसका सबसे भरोसेमंद आदमी है, जो चतुर्वेदी समर्थक दलित विधायक भलेराम की हत्या के मामले मंे गिरफ्तार है। उसके बाद फिल्म में दंगे का भी प्रसग आता है। विकास पांडेय को धमकी मिलती है। फिल्म के अंत में उसे पता चलता है कि अजय सिंह के बजाए चतुर्वेदी ही हत्यारा था, उसने उसे नियंत्रण में रखने के लिए सारा खेल रचा था। विकास पांडेय को लगता है कि वह राजनीति के द्वारा इस्तेमाल हो गया है, जबकि उसका दोस्त कहता है कि नहीं उसने सच्चाई का पर्दाफाश किया है। शशि कपूर के साथ ओम पुरी, शर्मीला टैगोर, कुलभूषण खरबंदा, ए.के. हंगल, एम. के. रैना, मनोहर सिंह, रामगोपाल बजाज जैसे महान अभिनेताओं ने भी इसमें अभिनय किया है।
फिल्म प्रदर्शन के बाद युसूफ सईद, अविनाश दास, दिव्या भारती, कहानीकार शेखर, अधिवक्ता जावेद, शशि यादव, संतोष सहर, आशुतोष कुमार पांडेय, जितेेंद्र नाथ जितु समेत कई दर्शकों ने शशि कपूर की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की।
अनारकली आॅफ आरा के प्रदर्शन से फिल्मोत्सव का समापन हुआ
युवा कवि पत्रकार अविनाश ने यह फिल्म बनाई है, जो स्त्री विमर्श की मध्यवर्गीय चैहद्दी को तोड़ती है। इस फिल्म में सामंती मिजाज के कुलपति और इस पूरी सामाजिक-प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ एक नर्तकी अपने स्वाभिमान की लड़ाई लड़ती है। ‘‘अनारकली आॅफ आरा’ कुछ माह पहले प्रदर्शित हुई थी और फिल्म समीक्षकों के बीच काफी चर्चित रही थी। यह फिल्म सत्ता, प्रशासन, जाति के बीच के रिश्ते को भी दर्शाती है। फिल्मोत्सव की स्मारिका में संदीप सिंह ने लिखा है- ‘सत्ता, जाति और विद्वता’ का जो अदृश्य त्रिशंकु फिल्म में झलक दिखलाकर चला जाता है, उसमें कल का लम्पट सामंत कहीं आज का सम्मानित वाइस चांसलर तो नहीं हो गया है?’ दरअसल किसी समाज में बौद्धिक वर्ग का स्त्री विरोधी सामंती संस्कारों का वाहक होना बेहद चिंतनीय है। अविनाश की इस फिल्म पर एक कुलपति के लेख को लेकर हुए विवाद और 16 दिसंबर के बाद उभरे स्त्री-आजादी के आंदोलन की स्पष्ट छायाएं नजर आईं। बिहार के रंगमंच के जाने-माने चेहरों को देखने के लिए भी पटना के दर्शक आज इस फिल्म को देखने के लिए जुटे।
फिल्मकारों को राजनीतिक फिल्में बनानी होगी: प्रेस कान्फ्रेन्स में युसूफ सईद ने कहा
‘कैंपस राइजिंग’ के निर्देशक यूसुफ सईद ‘टर्निंग पाॅॅइंट’ जैसे सीरियल और ‘ख्याल दर्पण’ या ‘खुसरो दरिया प्रेम का’ जैसी दस्तावेजी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। आमतौर पर संस्कृति और विज्ञान केंद्रित फिल्में बनाने वाले सईद की नई फिल्म ‘कैंपस राइजिंग’ उनकी पिछली सारी फिल्मों से भिन्न थी। आज प्रेस कान्फ्रेन्स में उन्होंने कहा कि उन्हें कला-संस्कृति पर फिल्में बनाना अच्छा लगता रहा है। अपनी फिल्मों के जरिए उन्होंने भारत-पाकिस्तान के लोगों के दिलों को जोड़ने वाली संगीत परंपरा से लोगों को अवगत कराया। साझी संस्कृति को मजबूत बनाना उन फिल्मों का मकसद था। लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह रोहित वेमुला की हत्या हुई, जिस प्रकार जेएनयू के छात्रों का दमन किया गया, जिस प्रकार सरकार इस देश में सांप्रदायिक-वर्णवादी उन्माद भड़का रही है, मंत्री और नेता जिस तरह के फर्जी आरोप आंदोलनकारी छात्र-युवाओं पर लगा रहे हैं, उससे उन्हें लगा कि राजनीतिक फिल्म बनाना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि डा.ॅ दाभोलकर, गोविंद पानसरे, प्रो. कलबुर्गी और गौरी लंकेश जो हत्याएं हुई हैं, उसने हम फिल्मकारों की राजनीतिक जिम्मेवारी को बढ़ा दिया गया है। हमें सीधे राजनीतिक सवालों को अपनी फिल्मों का विषय बनाना होगा।
पटना फिल्मोेत्सव जैसा आयोजन बेहद महत्वपूर्ण है: अविनाश दास
बगैर किसी सरकारी या कारपोरेट स्पांसरशिप के आम लोगों के सहयोग से पटना फिल्मोत्सव का लगातार आयोजन हो रहा है, यह बेहद महत्वपूर्ण है। लोगों को इस तरह के आयोजन को लगातार सहयोग करना चाहिए। डाॅक्युमेंटरी फिल्मों के लिए भारत में बाजार नहीं है, इसके बावजूद आनंद पटवर्धन, राकेश शर्मा, सबा दिवान जैसे लोग बेहतरीन काम कर रहे है। अभी हाल में दो अच्छी डाक्यूमेंटरी बनी है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वे अगली फिल्म बिहार में बनाएंगे। अविनाश ने कहा कि ‘तुरुप’ जिससे 9वें फिल्मोत्सव की शुरुआत हुई, वैसी फिल्म का बनना बेहद जरूरी है। उन्होंने बताया कि इस फिल्म में साउंड जिसने दिया है, उसने बाहुबली फिल्म के लिए तीन करोड़ रुपये लिए थे, पर इस फिल्म में बिना पैसा लिए काम किया। अविनाश ने कहा कि अच्छी डाॅक्यूमेंटरी फिल्में बन रही हैं, जरूरत यह है कि वे लोगों के बीच पहुंचे। प्रेस कान्फ्रेन्स में फिल्मकार दिव्या भारती और कुमुद रंजन भी मौजूद थे।