हिंदी बोलने में शर्म क्यों :प्रो.भारत भाष्कर
लखनऊ। हम अपनी मातृभाषा में बात करने में शर्म महसूस करते हैं ,जबकि विदेशियों को देखिये कि वह अपने देश में हों या विदेश में,वे अपनी ही भाषा में बात करते हैं। उन्हें अपनी भाषा में बोलने में जरा सी भी शर्म महसूस नहीं होती। वहीँ हम हैं कि विदेश की छोडिये अपने देश में ही अपनी मातृभाषा में बात करने में हिचकिचाते हैं।आप चीन को देखिये केवल वे अपने व्यवसाय के लिए ही विदेशी भाषा का प्रयोग करते हैं, न कि दैनिक प्रयोग के लिए।यह बात दिव्यता पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित हिंदी मासिक 'पत्रिका दिव्यता 'के विमोचन समारोह में भारतीय प्रबंधन संस्थान , लखनऊ के प्रो.भारत भाष्कर ने मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कही।
उन्होंनें आगे कहा कि हमें अंग्रेजियत की मानसिकता से बाहर निकल कर हिंदी भाषा के उत्थान के बारे में सोचना चाहिए। तभी हमारी मातृभाषा को विश्व के पटल पर स्थापित कर पाएंगे। प्रो.भाष्कर ने आगे कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि 'दिव्यता 'हिंदी के प्रतिमान को अपने पाठकों के बीच स्थापित कर पायेगी।
इस मौके पर बोलते हुए पत्रिका के संपादक प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा सही मायने में देखा जाये तो हिंदी पत्रकारिता के विकास में गैर हिंदी भाषी लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है। आज हिंदी की पत्र पत्रिकाओं -फलने फूलने में मारवाड़ी समाज का महत्त्व पूर्ण योगदान है।देश के किसी कोने में जाएँ तो आप को वहां मारवाड़ी समाज के व्यवसायी जरुर मिलेंगे। जो कहीं से भी हिंदी अख़बार या पत्रिका को जरुर खरीद कर पढ़ते हैं। यही कारण है कि हिंदी पत्रकारिता फल-फुल रही है।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथियों में अनिल कुमार सिंह .श्रीमती दीपा सिंह और डॉ.हिमा बिंदु ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन किया लखनऊ की अनीता सहगल ने तथा धन्यवाद ज्ञापन किया युवा प्रबंधक वृतांत श्रीवास्तव ने।