मौके पर गोवा की राज्यपाल और लेखिका डा मृदुला सिन्हा ने कहा, साहित्य संस्कृति का वाहक है पुस्तक
पटना। साहित्य संस्कृति का वाहक है। यदि साहित्य नहीं होता तो बिहार के लोग बुद्ध, अशोक और चाणक्य जैसी महान विभूतियों की बातें भी गर्व से नहीं कर पाते। हमने उन्हें साहित्य के माध्यम से जाना। पुस्तकों के माध्यम से जाना। यदि इतिहास का लेखन नही होता, पुस्तकें नहीं आती तो हम उन्हें कैसे जानते? पुस्तक गुरु हैं और मित्र भी। पुस्तकों का महत्त्व हमे समझना चाहिए तथा यह घर-घर पहुँचे कुछ ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए। ऐसा एक अभियान चलाया जाना चाहिए। यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आज से आरंभ हुए ‘पुस्तक चौदस मेला’ का उद्घाटन करती हुईं, गोवा की राज्यपाल और लेखिका डा मृदुला सिन्हा ने कही। उन्होंने कहा कि, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन को एक अभियान आरंभ करना चाहिए, जिससे प्रदेश के प्रत्येक घर में पुस्तकें पहुँचे और सम्मान पाए। अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि, हिन्दी दिवस को ‘पुस्तक-चौदस के रूप में मनाने का साहित्य सम्मेलन का यह आह्वान बहुत हीं आनंद-प्रद है और उन्हें विश्वास है कि सम्मेलन यह कार्य करने में सफ़ल होगा।
डा सिन्हा ने वरिष्ठ पत्रकार और कथाकार रामनाथ राजेश के कथा-संग्रह ‘वाट्स ऐप’ का लोकार्पण भी किया और लेखक को बधाई दी।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित प्रसिद्ध चिकित्सक और सांसद पद्मश्री डा सी पी ठाकुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए हिन्दी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा भारत की भाषा हिन्दी है। हमने देश की स्वतंत्रता की लड़ाई और जीत हिन्दी के माध्यम से प्राप्त की। हिन्दी के विकास में सबकी भूमिका होनी चाहिए। उन्होंने साहित्य सम्मेलन में हो रहे कार्यों की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए सम्मेलन अध्य्क्ष को बधाई दी।
लोकार्पित पुस्तक के लेखक रामनाथ राजेश ने पुस्तक के लोकार्पण के लिए साहित्य सम्मेलन तथा महामहिम के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की तथा कहा कि, हम रोज बदल रहे हैं। बदलाव प्रकृति का नियम है। जो इसकी गति के साथ नहीं चलते वे टूट जाते हैं। किंतु यह परिवर्तन सकारात्मक होना चाहिए। हम कई मर्तबा ऐसा पाते हैं कि समाज में कुछ ऐसा हो रहा है जो नही होना चाहिए। किंतु हम प्रतिकार नहीं कर पाते। ऐसे में अपने मनोभाव को व्यक्त करने का बड़ा जरिया लेखन है। रचनात्मक लेखन, जिससे एक परितोष और सांत्वना मिलती है। हम भींड़ में खोते जा रहे हैं। हमें चाहिए कि अपने स्वय से जुड़ें।
अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, हिन्दी दिवस को ‘पुस्तक-चौदस’ के रूप में मनाने के इस संकल्प और अभियान का उद्देश्य समाज में पुस्तकों के प्रति प्रेम को बढाना है। हम पुसकों से दूर होकर स्वयं से दूर होते जा रहे हैं। हमारे घरों से प्रज्ञा की देवी रूठती जा रही है। इसीलिए हमने यह आह्वान किया है कि, जिस प्रकार भारतीय परिवार में, ‘धन-त्रयोदशी’ के दिन धन की कुछ न कुछ वस्तु क्रय कर घर लाने की प्रथा है, इस भाव के साथ कि इसके आने से घर में ‘श्री’ की वृद्धि होगी, उसी प्रकार हिन्दी दिवस अर्थात 14 सितम्बर को हम ‘पुस्तक चौदस के रूप में मनाएं, इस भाव के साथ कि, इससे घर में ‘प्रज्ञा और श्री’ की वृद्धि होगी।
इस अवसर पर आयोजन के स्वागताध्यक्ष डा कुमार अरुणोदय,सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्रनाथ गुप्त तथा प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद तथा योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया। धन्यवाद ज्ञापन किया पुस्तक-मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष नरेन्द्र झा ने।
समारोह में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र, बलभद्र कल्याण, डा शांति जैन, डा वासुकीनाथ झा, डा मेहता नगेन्द्र सिंह, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, शंकर शरण मधुकर, कवि रवि घोष, डा अर्चना त्रिपाठी, राज कुमार प्रेमी, कृष्ण रंजन सिंह, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, ई चन्ददीप प्रसाद, आनंद किशोर मिश्र समेत सैकड़ों की संख्या में साहित्यसेवी व प्रबुद्धजन उपस्थित थे।