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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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हाहाकार और जय-जयकार से बचें पत्रकार : न्यायमूर्ति चंद्रमौली

पटना/ भारतीय प्रेस परिषद् (पीसीआई) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति चंद्रमौली के. प्रसाद ने आज कहा कि पत्रकारों को अपनी निष्पक्षता बरकरार रखने के लिए ‘हाहाकार’ और ‘जय-जयकार’ से बचना चाहिए।

पीसीआई की जाँच समिति यहां दो दिनों तक मामलों की सुनवाई कर रही थी। अध्यक्ष ने बताया कि सुनवाई के दौरान उनके समक्ष प्रेस की आजादी के उल्लंघन के 41 मामले आये जबकि एक पत्रकारिता के मूल्यों से संबंधित मामला आया। उन्होंने बताया कि इन 41 मामलों में से 18 बिहार के हैं। इनमें से 14 मामले पत्रकारों ने दर्ज कराये हैं जबकि 27 ऐसे मामले हैं, जो प्रेस के खिलाफ दर्ज कराये गये हैं।

न्यायमूर्ति श्री प्रसाद ने यहां मीडिया संस्थान एवं पत्रकारों की शिकायतों की दो दिन चली सुनवाई के समापन के बाद संवाददाताओं से कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा किसी भी कीमत पर की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को हाहाकार और जय-जयकार की मानसिकता बदलनी चाहिए क्योंकि यह दोनों उनके हित और पेशे के लिए ठीक नहीं है।

पीसीआई अध्यक्ष ने कहा कि प्रेस की आजादी के खिलाफ किसी भी खतरे का सामना करने के लिए पत्रकारों को एकजुट होकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सच है कि पत्रकारों को नौकरी समाप्ति समेत कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाये गये हैं। उन्होंने कहा कि यदि पत्रकारों की नौकरी ही सुरक्षित नहीं रहेगी तो वह भयमुक्त होकर कैसे काम कर पाएंगे।

न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है लेकिन दूसरी ओर यह भी सच है कि पत्रकारिता किसी व्यक्ति की जैविक आवश्यकता है। हालांकि जैविक आवश्यकता की अभिवक्ति की व्याख्या करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि इसके व्यापक अर्थ हैं। उन्होंने कहा कि प्रेस की आजादी को कायम रखने के उद्देश्य से जिम्मेवारियों का निर्वहन करने के लिए पीसीआई को और अधिक अधिकार दिये जाने चाहिए। पीसीआई ने इस संबंध में सरकार को 50 से अधिक पत्र लिखे हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है।

 

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सम्पादक

डॉ. लीना