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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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ज़बान से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है कंटेंट

'उर्दू पत्रकारिता  के 200 वर्ष' पर  ए. एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट में दो दिवसीय सेमिनार सम्पन्न 

साकिब ज़िया /पटना :"उर्दू पत्रकारिता के 200 वर्ष" विषय पर राजधानी में आयोजित दो दिवसीय सेमिनार रविवार को संपन्न हो गया। यह आयोजन भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद्, नई दिल्ली की ओर से किया गया था।

पहले दिन के उद्घाटन सत्र के बाद रविवार को अंतिम दिन देश और प्रदेश के कई  पत्रकार, लेखक और उर्दू भाषा से जुड़े मशहूर हस्तियों ने भाग लिया। पटना के ए. एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट में दूसरे दिन भी उर्दू पत्रकारिता के अनछुए पहलुओं पर विचार विमर्श किया गया।

इस अवसर पर परिषद् के निदेशक प्रो. इर्तजा करीम ने बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति के लिए धन्यवाद दिया। सेमिनार में उर्दू पत्रकारिता के माध्यम से अपनी अलग पहचान रखने वाले पत्रकारों ने इस विषय पर अपने विचारों से लोगों को अवगत कराया।

उर्दू के प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्र कौमी तंजीम के समाचार संपादक राशिद अहमद ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उर्दू पत्रकारिता के 200 वर्ष विषय पर चर्चा करते हुए खुशी हो रही है। उन्होंने कहा कि हमें गुजरे हुए वक्त से सीख लेनी चाहिए  ताकि भविष्य में जब उर्दू पत्रकारिता के 300 वर्ष पूरे होने पर ऐसे ही सेमिनार का आयोजन हो तो 100 सालों के बाद देश और दुनिया की तरक्की में उर्दू पत्रकारिता का लोहा सभी लोग मान सकें। राशिद अहमद ने यह भी कहा कि समाचार में कंटेंट महत्वपूर्ण होता है। आज की नई पीढ़ी के पत्रकारों के संबंध में विशेष रूप से कहा कि उन्हें यह बताना जरूरी है कि खबर कैसे लिखी जाती है और एक समाचार में किन- किन बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है। उन्होंने सेमिनार में कहा कि अगर हम लोग इस ज्ञान को बांटने में कामयाब हो गए तो भाषा का चयन वह नौजवान स्वंय ही कर लेगा।

इस कार्यक्रम में  प्रो. अलीमुल्ला हाली, वरिष्ठ पत्रकार अशरफ फरीद, रेहान गनी, अशरफ अस्थानवी सहित कई लोगों ने अपने वक्तव्य दिए। समारोह में लोगों ने इस बात पर बल दिया कि ऐसे आयोजनों से भाषा की उम्र और लंबी हो जाती है। कार्यक्रम में पत्रकारों  बुद्धिजीवियों के साथ - साथ पत्रकारिता  के छात्र-छात्राओं ने भी भाग लिया।

मीडियामोरचा के ब्यूरो प्रमुख साकिब ज़िया की रिपोर्ट। 

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सम्पादक

डॉ. लीना