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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ पर ‘मीडिया की स्वतंत्रता’ विषयक संगोष्ठी

पटना/ परिवहन, सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री वृशिण पटेल ने कहा कि अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए मीडिया को संगठित होने की जरूरत है. जमाने की रफ्तार तेज है. उसके साथ चलना है, तो इस पर सोचने की जरूरत है. वह शुक्रवार को ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ पर ‘मीडिया की स्वतंत्रता’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. नौकरी व आजादी विरोधाभासी शब्द हैं उन्होंने कहा कि आज मीडिया और राजनीति की स्थिति उस बंदर की तरह हो गयी है, जो रेगिस्तान में अपने बो को लेकर चलता है और पैरों में अधिक गरमी लगने पर बो को उसी रेगिस्तान में नीचे रख कर खुद उस पर खड़ा हो जाता है.

अगर मीडिया विश्‍वसनीय नहीं होगी, तो राजनीति भरोसामंद कैसे बनेगी. मीडिया में कोई नौकरी करता है, तो वह आजाद नहीं रह सकता. नौकरी और आजादी विरआजादी मिले, पर भाषा संपादन में न हो भूल
दूरदर्शन (समाचार) के निदेशक अरुण कुमार वर्मा ने कहा कि दो-तीन बार प्रेस को कुंठित करने का प्रयास किया गया. जब-जब प्रेस की आजादी पर रोक लगायी गयी, तब-तब यह अधिक शक्तिशाली होकर निकला. प्रेस को आजादी तो मिलनी चाहिए, पर इतनी आजादी भी न हो कि भाषा संपादन में ही भूल होने लगे. मीडिया देश के लिए सकारात्मक काम कर सकती है. पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने कहा कि प्रेस की आजादी का मतलब क्या है? पत्रकारिता की आजादी या पत्रकारों की आजादी. पत्रकारिता की आजादी का मतलब है कि किसी पत्रकार ने जो कुछ सीखा है, उसके तहत काम कर सके . टाइम्स ऑफ इंडिया की वरिष्ठ उपसंपादक गायत्री शर्मा ने कहा कि मीडिया में आरंभ से अब तक कई पड़ाव आये. 1974 आंदोलन में प्रेस को कुंठित करने का प्रयास किया गया.

1980 के दशक से मीडिया में तकनीकि का प्रवेश हुआ है. वर्तमान समय में पत्रकारिता में समाज के मुख्य मुद्दे, भुखमरी, बेरोजगारी, असमानता आदि के लिए जगह कम हो गया है. यूनएनआइ की ब्यूरो चीफ रजनी शंकर का विचार था कि वर्तमान में पत्रकारिता सूटेबिलिटी की हो गयी है. खबर किसके लिए सूट कर रही है. यह राजनीति को सूट करे, कॉरपोरेट घराने को सूट करे, इस बात पर भी ध्यान रखा जाता है.परिवहन, सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री वृशिण पटेल ने कहा कि अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए मीडिया को संगठित होने की जरूरत है. जमाने की रफ्तार तेज है. उसके साथ चलना है, तो इस पर सोचने की जरूरत है. वह शुक्रवार को ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ पर ‘मीडिया की स्वतंत्रता’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे.

नौकरी व आजादी विरोधाभासी शब्द हैं उन्होंने कहा कि आज मीडिया और राजनीति की स्थिति उस बंदर की तरह हो गयी है, जो रेगिस्तान में अपने बो को लेकर चलता है और पैरों में अधिक गरमी लगने पर बो को उसी रेगिस्तान में नीचे रख कर खुद उस पर खड़ा हो जाता है.

अगर मीडिया विश्‍वसनीय नहीं होगी, तो राजनीति भरोसामंद कैसे बनेगी. मीडिया में कोई नौकरी करता है, तो वह आजाद नहीं रह सकता. नौकरी और आजादी विरोधाभासी शब्द हैं. पत्रकारिता विश्‍वसनीय बनी रहे.

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सम्पादक

डॉ. लीना