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‘लोकमत’ को एक और बड़ा झटका

सुप्रीम कोर्ट ने लोकमत में प्लानर के रूप में कार्यरत श्री साकुरे को मजीठिया वेतन आयोग के अनुसार वेतन देने और 1998 से लेकर अब तक वेतन आयोगों की सिफारिशों के अनुसार ब्याज के साथ एरियर्स देने का फैसला सुनाया है

नागपुर। दो साल पहले 61 कर्मचारियों को बिना किसी कारण के अवैध रूप से टर्मिनेट करने वाले लोकमत समाचार पत्र समूह को सुप्रीम कोर्ट से फिर एक बड़ा झटका लगा है. लोकमत के भंडारा कार्यालय में प्लानर के रूप में कार्यरत महेश मनोहरराव साकुरे को सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया वेतन आयोग के अनुसार वेतन देने और 1998 से लेकर अब तक पालेकर, बछावत, मणिसाना एवं मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार ब्याज के साथ एरियर्स देने का फैसला सुनाया है. इस आदेश के अनुसार साकुरे का वेतन अब करीब रु. 40 हजार हो जाएगा और उन्हें एरियर्स के रूप में करीब 50 लाख रुपए मिलेंगे. कांग्रेस सांसद और कोयला घोटाला के आरोपी विजय दर्डा एवं महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री राजेंद्र दर्डा के लोकमत समूह को पिछले कुछ महीनों में विभिन्न अदालतों से ऐसे कई झटके लगे हैं, मगर कर्मचारियों के साथ उनके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है.

महेश साकुरे लोकमत भंडारा में 1.10.96 से टेलीप्रिंटर आपरेटर के पद पर कार्यरत थे. श्री साकुरे प्रति माह 300 रु., 500 रु., 1000 रु. व 2000 रु. पर काम करते रहे हैं. 1.4.1998 को उन्हें टेलीप्रिंटर आपरेटर से प्लानर बना दिया गया, मगर वेतन वही प्रति माह रु. 2000/- ही रहा. उल्लेखनीय है कि समाचारपत्र में प्लानर के पद पर कार्यरत कर्मचारियों को मणिसाना सिंह और मजीठिया अवार्डस् के मुताबिक पत्रकारों की श्रेणी में रखा गया है और उसी के अनुसार उनका वेतन तय किया गया है. वर्किंग जर्नालिस्ट एक्ट की धारा 6 के अनुसार पत्रकारों के लिए हर सप्ताह 36 घंटे काम निर्धारित है, मगर श्री साकुरे से साप्ताहिक 48 घंटे काम लिया जाता था, लेकित वेतन प्रति माह केवल रु. 2000/- ही दिया जाता था.

बार-बार ज्ञापन देने, अनुरोध करने पर भी जब न्याय नहीं मिला तो श्री साकुरे ने वर्ष 2001 में औद्योगिक न्यायालय, भंडारा में अनफेयर लेबर प्रैक्टिस एक्ट के तहत शिकायत दर्ज कराई. करीब 11 साल के संघर्ष के बाद 18.10.11 को न्या. श्री वी. पी. कारेकर ने साकुरे के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें निम्न लाभ देने का आदेश दिया-

1) 31.5.1997  से श्री साकुरे को टेलीप्रिंटर आपरेटर के रूप में स्थायी मानते हुए अवार्ड के मुताबिक वेतन और अन्य लाभ दिए जाएं.

2) 1.4.1998 से श्री साकुरे को स्थायी प्लानर मानते हुए अवार्ड के अनुसार वेतन और अन्य लाभ दिए जाएं. 

3) प्लानर के रूप में कार्यरत श्री साकुरे को 1.4.1998 से 12 घंटे अतिरिक्त काम का वेतन के डबल रेट के हिसाब से ओवरटाइम दिया जाए. चूंकि वर्किंग जर्नालिस्ट एक्ट की धारा 6 के अनुसार साप्ताहिक 36 घंटे काम तय होने के बाद भी उनसे 48 घंटे काम लिया जा रहा था.

औद्योगिक न्यायालय भंडारा के 18.10.2011 के इस आदेश को लोकमत प्रबंधन ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और स्टे मांगा. मा.न्यायमूर्ति श्रीमती वासंती नाईक ने कुछ शर्तों के आधार पर 09.02.2012 को इस आदेश पर स्टे दे दिया. ये शर्तें थी-

अ) फरवरी 2012 से श्री साकुरे को रु. 10,000 प्रति माह वेतन दिया जाए.

     ब) श्री साकुरे को एरियर्स के रूप में फिलहाल रु. 10 लाख दिए जाएं. 

इस अंतरिम आदेश को प्रबंधन ने डबल बेंच में चुनौती दी. मा. न्या. श्री एस. सी. धर्माधिकारी व न्या. एम. टी. जोशी की पीठ ने प्रबंधन की अपील को खारिज करते हुए मा. न्या. श्रीमती वासंती नाईक के अंतरिम आदेश को कायम रखा. 

डबल बेंच के आदेश के विरुद्ध प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया, मगर सुप्रीम कोर्ट ने श्री साकुरे का वेतन अस्थायी रूप से रु. 10,000/- करने के आदेश को कायम रखते हुए रु. 10 लाख बतौर एरियर्स श्री साकुरे को देने के आदेश में सुधार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, वर्तमान में श्री साकुरे को रु. 5 लाख नगद दिए जाएं और बाकी रु. 5 लाख हाईकोर्ट में फिक्सड् डिपॉजिट में जमा किया जाए एवं मामले का अंतिम फैसला आने के बाद वह राशि उन्हें दी जाए. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का निपटारा 6 महीने के भीतर करने का निर्देश भी हाईकोर्ट को दिया.

24.07.2015 को प्रबंधन की मूल रिट पिटीशन मा. न्या. हक साहब के समक्ष सुनवाई के लिए आई. मा. न्यायमूर्ति ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद औद्योगिक न्यायालय, भंडारा के फैसले को कायम रखा और हाईकोर्ट में जमा रु. 5 लाख ब्याज सहित श्री साकुरे को देने का आदेश सुनाया. साथ ही मुकदमे के खर्च के रूप में साकुरे को रु. 10,000/- देने का आदेश भी दिया. हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध प्रबंधन ने फिर सुप्रीम कोर्ट में दौड़ लगाई. मगर मा. सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रबंधन की याचिका ठुकरा दी. इस तरह मा. सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले के बाद अब मा. औद्योगिक न्यायालय, भंडारा का 18.10.2011 का आदेश व मा. हाईकोर्ट का 24.07.2015 आदेश अंतिम हो गया है. 

1.10.1996 से साकुरे को पालेकर, बछावत, मणिसाना व अब मजीठिया अवार्ड के लाभ और क्लासीफिकेशन के आधार पर लागू वेतन श्रेणी व अन्य लाभों से उन्हें जानबूझकर वंचित रखा गया. साकुरे को अब करीब 50 लाख रु. की राशि का भुगतान लोकमत प्रबंधन को करना होगा. श्री महेश साकुरे की ओर से नागपुर के विख्यात कामगार वकील अधिवक्ता श्री एस. डी. ठाकुर ने पैरवी की. 

सुप्रीम कोर्ट में भी हारने के बाद जब लोकमत प्रबंधन के पास कोई विकल्प नहीं बचा है तो अब साकुरे को मनाने की कोशिशें होने लगी हैं. उन पर विभिन्न तरह से दबाव बनाया जा रहा है. अभी पिछले महीने ही प्रबंधन की ओर से दो वरिष्ठ अधिकारियों ने भंडारा जाकर साकुरे से मुलाकात की और उन्हें  वेतन आयोग के अनुसार तय वेतन के अलावा एरियर्स के रूप में 25-30 रुपए लेकर मामला निपटाने की अपील की. बताते हैं कि साकुरे ने प्रबंधन के अनुरोध को खारिज कर दिया है.

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सम्पादक

डॉ. लीना