संचार व पत्रकारिता के सही मायनों से रूबरू कराता, पूरी की दस साल की यात्रा
डॉ. लीना/ संचार और पत्रकारिता की शोध पत्रिका जन मीडिया ने अपने तेवर और सोच को बरकरार रखते हुए अपनी यात्रा के 10 साल पूरे कर लिये हैं । जन मीडिया का 120वां, मार्च 2022 का अंक संचार व पत्रकारिता पर विमर्श पर सार्थक सोच और पारदर्शिता के साथ है।
इस अंक में, 'दिल्ली में मॉल संस्कृति', 'टेक फॉग ऐप से नकली मुद्दों की बरसात', 'डिजिटल चुनाव प्रचार और सोशल मीडिया पर राजनीतिक दलों की मौजूदगी', 'वाय आई किल्ड गांधी: झूठ का पुलिंदा', 'उत्तर प्रदेश: पत्रकारों पर हमले के विरोध समिति की रिपोर्ट', 'उत्तर प्रदेश की स्कूली शिक्षा के विज्ञापनों की पड़ताल, और '1916 से 1918 तक के समाचार पत्र' शीर्षक शोध आलेख हैं। जिसे संपादक अनिल चमडिया ने अपनी पूरी टीम के साथ पाठकों के बीच पूरी ईमानदारी के साथ रखा है ताकि पाठक पढ़ कर सार्थक सोच कायम कर सकेंगे।
'दिल्ली में मॉल संस्कृति', लेखक- डॉ शेख मुइनुद्दीन नई दिल्ली के कई मॉल का अध्ययन किया है और अपने शोध में बताने की कोशिश की है कि किस तरह से मॉल की संस्कृति नई सांस्कृतिक प्रवृत्तियों में से एक है, जहां लोग खरीदारी तो करते हैं, खाते पीते भी हैं, साथ ही मनोरंजन तक के विभिन्न उद्देश्यों के लिए मॉल का प्रयोग करते हैं। लेखक ने माल के इतिहास- भूगोल की भी खुलकर चर्चा की है। ग्राफिक्स के जरिए मॉल के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष को भी सामने रखा है। लेखक ने निष्कर्ष में बताया है कि अतीत में शहर आधुनिक और ऐतिहासिक वास्तुकला के लिए जाने जाते थे, जो पर्यटकों और आगंतुकों को आकर्षित कर सकते हैं। मॉल आगंतुकों की सूची में जुड़ गए हैं जहां लोग खरीदारी या भोजन के उद्देश्य कुछ वक्त समय बिताना चाहते हैं। आज उपभोक्ता संस्कृति में मॉल एक आकर्षण का केंद्र के रूप में उभरा है।
एनडीटीवी के चर्चित कार्यक्रम प्राइम टाइम के एंकर रवीश कुमार के 'टेक फॉग ऐप नकली मुद्दों की बरसात' को आलेख के रूप में प्राथमिकता से जगह दिया गया है। टीवी कार्यक्रम को मो आजाद ने ट्रांसक्राइब किया है। एंकर रविश कुमार तथ्यों के आधार पर बताते हैं कि देश में सोशल मीडिया यानी इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, टेलीग्राम, फेसबुक, टि्वटर जैसे प्लेटफार्म नकली मुद्दों को परोस बड़े ही सफ़ाई से लोगों के बीच नफरत फैला रहे है। उन्होंने सोशल मीडिया के खेल को उजागर किया। उन्होंने बताया कि फॉग एप से नकली मुद्दों की बरसात कर दी जाती है, चारों तरफ धुआं धुआं फैल जाता है ताकि जनता को अपना मुद्दा दिखाई नहीं दे। वही दिखाई देता है जो टेक फॉग ऐप दिखाना चाहता है। आईटी सेल के खेल को सामने लाते हुए गोदी मीडिया पर हमला करते हैं बताते हैं कैसे गोदी मीडिया भी इसमें शामिल हो जाती है और नफरत का माहौल बना देती है। तमाम चीजों की पोल खोल कर रख दी गई है।
अभिषेक त्रिपाठी का आलेख 'डिजिटल चुनाव प्रचार और सोशल मीडिया पर राजनीतिक दलों की मौजूदगी', में बताते हैं कि डिजिटल मीडिया पर मौजूदगी की बात की जाए तो सभी पार्टियों की पोजीशन एक जैसी नहीं है। बीजेपी इस क्षेत्र में पहले से चल रही है और दूसरी पार्टियों से कहीं आगे हैं। कुछ साल पहले तक बाकी पार्टियों ने डिजिटल प्रजेंस पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना बीजेपी ने दिया। लेकिन अब तमाम पार्टियां इस ओर ध्यान दे रही हैं ।
'वाय आई किल गांधी: झूठ का पुलिंदा' राम पुनियानी के अंग्रेजी आलेख को अमरीश हरदेनिया ने हिंदी में अनुवाद किया है। यह आलेख फिल्म वाय आई किल्ड गांधी की पोल खोलता है। गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करने वाले इस फिल्म में जो तथ्य दिए गए हैं उसे लेखक ने सत्य के तथ्य से उजागर करते हुए बताया है कि यह फिल्म पूरी तरह से झूठ का पुलिंदा है। इसके अलावा 'उत्तर प्रदेश: पत्रकारों पर हमले के विरोध समिति की रिपोर्ट', 'उत्तर प्रदेश की स्कूली शिक्षा के विज्ञापनों की पड़ताल, और '1916 से 1918 तक के समाचार पत्र' शोध आलेख विषय के अनुरूप हैं और विषय के साथ पारदर्शिता रखते पाठकों के लिए रखा है।
पत्रिका- जनमीडिया
संपादक- अनिल चमड़िया
अंक - 120 ,मार्च 22,
मूल्य -20₹
संपर्क- सी 2, पीपल वाला मोहल्ला, बादली एक्सटेंशन, दिल्ली 42,
मोबाइल 96543 25899