पत्रिका का नया अंक ‘शब्द सत्ता की शताब्दी’
भोपाल। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा संपादित ‘कर्मवीर’ के प्रकाशन के सौ वर्ष 17 जनवरी को पूर्ण हो रहा है और 31 जनवरी को डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा प्रकाशित-सम्पादित पत्रिका ‘मूक नायक’ के सौ वर्ष पूर्ण हो जाएंगे। ‘शब्द सत्ता की शताब्दी’ शीर्षक से दोनों महत्वपूर्ण प्रकाशनों को केन्द्र में रखकर मीडिया एवं सिनेमा की सुपरिचित शोध पत्रिका ‘समागम’ का जनवरी 2020 अंक तैयार किया गया है। निरंतर 19 वर्षों से प्रकाशित शोध पत्रिका ‘समागम’ फरवरी 2020 में अपने प्रकाशन के 20वें वर्ष में प्रवेश करेगी। संपादक मनोज कुमार ने बताया कि लगातार प्रयास रहा है कि मीडिया एवं सिनेमा में गंभीर शोध प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जाए। देशभर से शोधार्थी एवं शिक्षकों के साथ वरिष्ठ पत्रकारों का सहयोग मिलता रहा है।
वर्ष 2000 में शोध पत्रिका ‘समागम’ का प्रकाशन आरंभ हुआ और तब से लगातार पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है। देशभर के सुपरिचित विश्वविद्यालयों से पत्रिका ‘समागम’ को मान्यता प्राप्त है। मासिक कालखंड में प्रकाशित होने वाली शोध पत्रिका ‘समागम’ मीडिया एवं सिनेमा पर केन्द्रित है। मीडिया जगत में पारम्परिक पत्रकारिता एवं मीडिया में हो रहे नवाचार पर विविध दृष्टि से शोध लेखों का प्रकाशन किया जाता है। मीडिया शिक्षा एवं पत्रकारिता के बड़े हस्ताक्षरों का समय-समय पर सुझाव एवं लेखकीय सहयोग मिलता रहा है। शोध पत्रिका ‘समागम’ ने इन 19 वर्षों में कई विशिष्ट अंकों का प्रकाशन किया जिसमें सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में ‘सिनेमा के सौ साल’ और ‘महात्मा गांधी : साद्र्धशती’ अंक रहे। इसके अलावा रेडियो की वापसी, महिला सशक्तिरण के सौ साल, चंपारण आंदोलन के सौ साल, कैफी आजमी एवं नौशाद की जन्मशती पर केन्द्रित अंक की भी चर्चा रही। राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी सहित दर्जनों पत्रकारों और सम्पादकों पर एकाग्र सामग्री का प्रकाशन किया गया।
संपादक मनोज कुमार बताते हैं कि आगे आने वाले समय में देश के प्रथम पंक्ति के सम्पादकों पर केन्द्रित अंक के प्रकाशन की योजना है। साथ ही उन अखबारों पर भी विशिष्ट अंक का प्रकाशन किया जाएगा जिनका स्वाधीनता संग्राम में विशेष योगदान है। साथ में सिनेमा पर नियमित सामग्री का प्रकाशन किया जाता है। फरवरी 2020 के अंक में मध्यप्रदेश में सिनेमा को लेकर जो हलचल है, उस पर सामग्री का प्रकाशन किया जा रहा है। श्री कुमार बताते हैं कि मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में सिनेमा केवल मनोरंजन लेकर नहीं आती है बल्कि रोजगार के अवसर भी उत्पन्न करती है। संपादक को कसक इस बात की है कि सीमित संसाधनों में उडऩे की क्षमता कम हो जाती है लेकिन वे इस प्रकाशन को संकल्प के तौर पर लेते हैं और कहते हैं कि आखिरी दम तक कोशिश होगी कि शोध पत्रिका ‘समागम’ का प्रकाशन की निरंतरता बनी रहे।