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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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एक पत्रकार के रिपोर्ताजों का कोलाज

जीवन की सच्चाई से रूबरू कराती है डॉ. दीनानाथ साहनी की पुस्तक  ‘तीसरी बस्ती’ 

संजय कुमार/ पुस्तक समीक्षा/ डॉ. दीनानाथ साहनी लम्बे समय से पत्रकारिता से जुड़े है। पत्रकारिता के साथ साथ साहित्य के विभिन्न विद्याओं पर कलम चलायी है। कविता, कहानी, उपन्यास पर खूब लिखा है। उनकी पुस्तक तीसरी बस्ती उनके पत्रकारिता जीवन को रेखांकित करती है। तीसरी बस्ती रिपोर्ताजओं का कोलाज है। डॉ. दीनानाथ साहनी ने तीसरी बस्ती में जो भी लिखा है वह पत्रकारिता की तस्वीर है। एक एंसा चित्रण है जो सच के करीब है। इसमें मिलावट नहीं है। साहित्य संसद, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित तीसरी बस्ती में 60 रिपोर्ताज है जिसे 216 पृष्ठों में समेटा गया है।

तीसरी बस्ती की शुरूआत लोकनायक जयप्रकाश नारायण से है। सांझ की बेला में जे.पी.स्मारक, सिताबदियारा में जे.पी. के पुष्तैनी घर की तलाष, कहीं घघरा लील न ले लोकनायक के गांव को, कौन थे जे.पी....नईखे मालूम रिपोर्ताज से डॉ.दीनानाथ साहनी ने भूलते जन नायक जे.पी. को सामने लाने की कोशिश की है। स्मारक से लेकर जे.पी. के गांव की तस्वीर को रेखांकित किया है। दियारा की तस्वीर भी सामने रखी है। महान जननायक के गांव की बदहाली की तस्वीर भी दिखायी है तो वहीं बेहतर कार्यो को भी बताया। आजादी के बाद जे.पी. के गांव सिताबदियारा की बदली दुनिया को समेटा है। लोकनायक ने सिताबदियारा से जाति तोड़ो अभियान की शुरूआत किया था। लेखक ने यह बात बुजुर्ग किसान त्रिलोकीनाथ सिंह की जुबानी बतायी है।

खंभा ही बिहार-यूपी सीमा की पहचान, यहाँ बोरिंग बनाम बंदूक का नियम, बिहार-उत्तर प्रदेश सीमा विवाद रिपोर्ताज से बिहार-यूपी की सीमा की तस्वीर दिखती है। जमीन पर उपजे आनाज को लूटने से बचाने के लिए अपराधियों के खिलाफ ग्रामिणों द्वारा बंदूक उठाने की कहानी रिपोर्ताज में है। रिपोर्ताज का जैसा ष्र्षीषक है ठीक वैसी ही कहानी,कहानी भी सच्ची। डॉ. दीनानाथ ने पूरी इमानदारी से लिखी है बिना किसी का पक्ष लिये। रिपोर्ताज यानी पत्रकारिता धर्म का पालन बखूबी किया है।

तीसरी बस्ती में 60 रिपोर्ताज बिहार की तस्वीर भी है। खासकर कोसी क्षेत्र की दर्दनाक कहानी है। कोसी जो बाढ़ की मार से सदियों से परेशान रहा है। कई रिपोर्ताज है पुस्तक में। कोसी का दर्द अपने आप में पीड़ादायक है। पुस्तक का शीर्षक तीसरी बस्ती भी बाढ़ की त्रासदी पर फोकस है। कोसी के आस पास के जिले भी बाढ़ की मार झेलते है। लेखक ने तीसरी बस्ती उसे बताया है जहां मुख्तलिफ हलकों से बाढ़ के मारे लोगों के आ आकर बस जाने से बनी बस्ती यानी ‘तीसरी बस्ती’ और वहां का अपना दर्द। बाढ़ पीडितों का ऐसा दर्द जिसे लेखक ने पास से महसूस किया उनके दर्द व पीड़ा को देखा। भूख से बनी पूरी देह पत्थर और सूर्ख होते चेहरे रिपोर्ताज के शब्द को जहां मजबूत बनाते हैं वहीं बाढ़ की त्रासदी झेल रहे लोगों के दर्द को जिस तरह से सामने लेखक ने लाया है वह काबिले तारीफ है।

तीसरी बस्ती में विभिन्न पहलूओं पर रिपोर्ताज है जो जीवन की सच्चाई से पाठकों को रू-ब-रू कराता है। रिपोर्ताज की अपनी कला है जो यकीनन पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले छात्रों को सीखने में मददगार साबित होगा।

पुस्तक: तीसरी बस्ती

लेखक: डॉ. दीनानाथ साहनी

प्रकाशक: साहित्य संसद, नई दिल्ली

प्रथम संस्करण: 2018

मूल्य: 525 रूपये

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सम्पादक

डॉ. लीना