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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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हृदय द्वार पर दस्तक देतीं कविताएं

एम. अफसर खान / ‘फूल, तितलियां, सपने और सीख’ एम. एन. सिन्हा ‘मुकुल’ की पहली कविता संग्रह है।

कुल छत्तीस कविताओं का यह संग्रह सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और पारिवारिक समेत अन्य तमाम विद्रुपताओं के सरोकारों को परिलक्षित करता है। मुकुल जी ने जीवन में जो सहा और भोगा है, इन्ही वास्तविक अनुभवों को कविता का रूप दिया है। सामाजिक विकृति, पाखण्ड, अन्ध विश्वास, चारित्रिक खोखलापन, आत्म-संघर्ष, राजनैतिक मूल्यों में बदलाव जैसे गम्भीर विषयों पर कवि ने अपने मनोभावों को कविता के रूप में पेश किया है।

मुकुल जी के आन्तरिक भावों की पीड़ा सहजता से उनके कविताओं में देखने को मिलती है। मातृ भूमि के प्रति प्रेम का संदेश देते हुए कवि कहता है-

गुलिस्तां उजाड़ने पर क्यों तुले हो? ठहर कर रहम जरा तू कर ले,

धर्म-मजहब के घेरे तोड़ो, पूजा इबादत जहां चाहो, कर लो।

सामाजिक मूल्यों में आयी कमी पर कवि प्रहार करते हुए लिखता है-

मन्दिर-मन्दिर घूम-घूम कर

पेट पालता, सोचा होगा, साधु बनना आसान होगा।

स्वतंत्रता के बाद भी देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, भेद-भाव, उंच-नीच, बढ़ती गरीबी बेकारी पर मुकुल जी आजादी शीर्षक से लिखते हैं-

सुना है- आजादी आयी है, आज नहीं वर्षों पीछे

जीवन के पचास बसन्त बीत गये पर देखा नहीं

सुना है केवल।

वर्तमान परिवेश में वक्त के महत्व तथा जीवन पथ पर समय की दौड़ के बाबत कवि लिखता है-

रात-दिन चक्र के दो पहिए, चलते रहते-दृश्य बदलते

काश! तुमने कदम मिलाया होता, जीवन-दौड़ में कहीं और ही होता।

देश में नक्सलवाद व माओवाद ने जिस तरह जन-धन की क्षति की है उससे व्यथित होकर कवि माओवादियों को सलाह देते हुए लिखता है-

क्या कर रहे हो तुम मन में सोचो जरा,

पाप की गठरी क्यों सिर पर ढोते सिरफिरे

किसको मारते, किसे जलाते, निर्दोषों ने क्या बिगाड़ा?

व्यक्ति के जीवन का अन्ति पडाव बुढ़ापा होता है, जिसमें उसे तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करता है बावजूद इसके मुकुल जी बुढ़ापा का स्वागत करते हुए लिखते हैं-

मस्त गज की तरह विचरना, दीन-दुखियों को मद्द है करना

प्रफुल्ल मन सदा उन सबसे मिलना, दिल-बहलावा का साधन है समझना।

राजनीति के वसूलों में आये बदलाव, लोकतंत्र की भावना से होता खिलवाड़ व जनप्रतिनिधियों के बदलते चरित्र पर हमलावर कवि मन लिखता है-

हम स्वतंत्र हैं, कुछ भी कर लें, भ्रष्टाचार जो चाहें, हम कर लें

हमें रोकने वाला संसद ही है, जनता कौन? बेमाने ही है।

मुकुल जी व्यक्तिगत जीवन में बुहत ही ईमानदारी व निष्ठा से कार्य करते रहे हैं और समकालीन माहौल से पीड़ित भी होते रहे हैं, किन्तु उन्होंने अपनी रचनाओं में अपने आक्रोश को व्यक्त किया है। इनकी कविताओं के कथ्य और विम्ब जीवन को आशा और सुख प्रदान करते हैं। काव्य-साधना भले ही निर्धारित मानदण्ड पूरे नहीं करती हो लेकिन उनमें प्रयुक्त प्रवाहमय शब्द अपनी बात कह ही जाते हैं जो हृदय तक पहुंचते-पहुंचते रचना का रस पाठक को स्वाद देता है।

पुस्तक - फूल, तितलियां, सपने और सीख            

कवि- एम. एन. सिन्हा ‘मुकुल’

प्रकाशक- पुस्तक पथ, दिल्ली                 

मूल्य- 175 रूपय (पेपर बैक संस्करण)।

समीक्षक - चन्दौली (उत्तर प्रदेश) के निवासी एम.अफसर खान सागर समाजशास्त्र में परास्नातक हैं। स्वतंत्र पत्रकार व युवा साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं । पिछले दस सालों से  पत्रकारिता में है। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लेखन के साथ ही जनहित भारतीय पत्रकार एसोसिएशन के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।

 

 

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सम्पादक

डॉ. लीना