यहां लिखने और दिखाने को बहुत कुछ है! थोड़ी कोशिश तो कीजिये!
उर्मिलेश/ टीवीपुरम् के एंकर-रिपोर्टर अब ‘युद्ध-युद्ध’ खेल रहे हैं! एंकर स्टूडियो से और रिपोर्टर सरहदी गाँवों-क़स्बों से! कल देखा, एक रिपोर्टर ‘बंकरों’ को दिखा रहा था! उनकी लंबाई-चौड़ाई और युद्ध के समय उनमें शेल्टर लेने वालों का गणित समझा रहा था! इनके लिए युद्ध या युद्धोन्माद भी ‘TRP-इवेंट’ जैसे हैं!
कश्मीर के लोग किस तरह एक स्वर से आतंकवाद को ख़ारिज करते हुए देश की एकजुटता को मजबूत कर रहे हैं; इस सकारात्मक पहलू को अपनी खबरों में पर्याप्त जगह देने की जगह वे युद्ध की कहानी गढने में जुट गये हैं! इनमें ज्यादातर को ये भी मालूम नहीं कि युद्ध जिस इलाके में लड़ा जाता है; वहां क्या होता है!
सन् 1999 की 'करगिल कन्फ्लिक्ट' को 'कवर' करने वाले एक रिपोर्टर के नाते कश्मीर घाटी पहुंचे टीवीपुरम् के इन रिपोर्टरों-एंकरों को इतना जरूर कहूंगा कि वे कश्मीर के हालात को कवर करें! आतंकवाद के खिलाफ फ़ौलादी एकता बनाए कश्मीर में आज बहुत कुछ ऐसा है, जिसे देश-विदेश के दर्शकों को दिखाया जा सकता है! सरहदी सूबे की ऐसी कौमी एकता हमने बीते कई दशकों में नहीं देखी! क्या आपको कश्मीर में अवामी एकता की यह शानदार तस्वीर नहीं दिख रही है? इसे दिखाने की जगह टीवीपुरम् का सारा जोर 'युद्धोन्माद' फैलाने पर क्यों है?
क्या किसी टीवी चैनल ने सिंधु जल संधि के सस्पेंड करने के संदर्भ में ऐसी एक भी रियल स्टोरी दिखाई जैसी बेहतरीन और तथ्यपरक वीडियो-रिपोर्ट अभी कुछ ही दिन पहले पूर्व टीवी पत्रकार ह्रदयेश जोशी और कुछ अन्य पत्रकारों ने अपनी न्यूज स्टोरी के जरिये पेश की थी? दोनों तरफ के डिप्लोमैट्स या उनके स्टाफ की संख्या में कटौती के फैसले को समझना सबके लिए आसान है पर अटारी-बाघा बॉर्डर बंद होने के क्या मायने हैं? क्या इस पर टीवीपुरम् ने कोई तथ्यपरक रिपोर्टिंग की? हर साल दसियों बार जो भी टीवी रिपोर्टर इस बॉर्डर जाता है,वह बस एक ही स्टोरी दिखाता है! वह है दोनों देशों के सुरक्षा बलों के कथित शौर्य-प्रदर्शन की उन्माद भरी सैन्य-कवायद!
न्यूज मीडिया का काम किसी का भोंपू बनना नहीं है. उसका काम सच और तथ्य को सामने लाना है. जम्मू-कश्मीर के लोग सुख-शांति, अमन-चैन, सूबे की प्रगति, भारत-पाक टकराव और आतंकवाद का खात्मा चाहते हैं. दोनों मुल्कों के बीच अब तक छोटे-बडे चार युद्ध हो चुके हैं. पर टकराव बरकरार है. कभी बढता है, कभी कुछ घटता है..370 भी खत्म हुआ. कहा गया, बस अब आतंकवाद खत्म समझो! पर आतंकवाद कहां खत्म हुआ!
मैं फिर कहता हूं और बार-बार कहूंगा कि टकराव और युद्ध किसी मसले का समाधान नहीं है. सियासत के खिलाड़ी जो भी कहें, हम इस सच को कहना जारी रखेंगे कि युद्ध समस्या का हल नहीं, समस्याओं की शुरुआत है! इसलिए टीवीपुरम् हो या मीडिया के दूसरे मंच; सबको अपने राष्ट्रीय और मानवीय दायित्व को समझना होगा! युद्धोन्माद का प्रचार हरगिज नहीं होना चाहिए. यह मनुष्य और समाज की सोचने-समझने की जीवंतता यानी विवेक को कुंद करता है. जम्मू कश्मीर हो या लदाख; यहां लिखने और दिखाने को बहुत कुछ है! थोड़ी कोशिश तो कीजिये!