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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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उसको बॉस को गले लगाने का मन तो करता नही होगा!

विनाश कुमार सिंह/ एक युवा रिपोर्टर पर पटना के एक न्यूज चैनल ने 10 करोड़ रुपये मानहानि का दावा किया है। वजह ये कि रिपोर्टर ने कई महीनों की तनख्वाह नहीं मिलने के एवज में कंपनी का कैमरा उठा लिया। रिपोर्टर के मुताबिक उसके साथ मारपीट भी की गई।

यह एक चैनल और एक रिपोर्टर की कहानी नहीं है। दर्जनों जूझते लड़के ऐसे होंगे जो यह सोचकर इस घटना पर चुप्पी साध लिए होंगे कि बोलने पर उन्हें नौकरी पर बनेगी। फिर तो उनको यह पेशा छोड़ देना चाहिए क्योंकि यह सिर्फ एक पेशा नहीं है। जो अपने लिए नहीं लड़ पा रहे वो दूसरे के लिए क्या लड़ेंगे? पटना में रहते हुए हमने भी ठोकरें खाई हैं। कुछ संस्थान तो हमारी मातृ संस्थान है। कुछ ऐसे लीडर भी मिले जो कर्मचारियों के हित में मालिक से बात करने में कतराते तक न थे। और कुछ ऐसे भी जिनके पास मेरा पैसा अब भी बकाया है।

पटना में ऐसे सैकड़ों छिटपुट यूट्यूब चैनल खुल गए हैं। वे 10-12 हज़ार की तनख्वाह पर लड़कों को रखते हैं। कुछ महीने बाद ही उनकी हालत ऐसी हो जाती है वे सैलरी में देरी करना शुरू कर देते हैं। पहले यह 1 महीने की देरी होती है। बाद में बढ़ती जाती है। और फिर चैनल बंद। (बंद क्यों होते हैं इसपर कभी बाद में) कुछ मठाधीश भी ऐसे ही पूंजीपतियों को झांसे में लेने की फिराक में रहते हैं जिनसे उनकी कम से कम साल भर की रोटी निकल जाए।

मैंने कहा इसके खिलाफ बोलना होगा। दोस्तों ने कहा कि पानी में रहकर मगर से बैर नहीं करते। क्या पता तुमको भी कल को यहीं काम करना पड़ जाए। खैर, ऐसे कई लोगों ने तो दरवाज़े पर बार-बार बुलाकर नौकरी वैसे भी हमें नहीं दी, जब हम पाक साफ थे। अब जब जरूरत पड़ेगी तो देखा जाएगा। सुनते हैं कि बड़े पत्रकारों की लॉबी होती है। फिर भी उम्मीद है कि इसका दूसरा खेमा भी होगा।

अब जरा सोचिए कि 12 हज़ार कमाने वाले रिपोर्टर का पटना में कम से कम 3 हज़ार रुपये का रूम तो होगा ही। आटा और चावल घर से भी लाता होगा तो साग सब्जी में उसके 3000 खर्च हो ही जायेंगे। आजादी के अमृत काल में मोटरसाइकिल पानी से तो चलती नहीं। कुल मिलाकर महीने के 8 हज़ार रुपये तो यूं खर्च हो जाते होंगे। बचत के रूप में 4 हज़ार ही है। धूम्रपान मैंने नही जोड़ा क्योंकि मैं खाता नही हूँ। 3 महीने अगर पैसे न मिले तो लेखा जोखा आप खुद लगा लीजिये। गणित मेरा उतना ही मजबूत है जितनी अंग्रेज़ी।

दोस्तों से कर्ज लेकर 3 महीने पटना में जिंदा रहने वाला रिपोर्टर क्या तनाव में नहीं आ गया होगा?

ये जानते हुए भी की ऑफिस में CCTV लगा है, बावजूद कैमरा ले जाने वाले रिपोर्टर को क्या कोर्ट कचहरी की सच्चाई नहीं ज्ञात होगा?

बार बार मैसेज और काल करने के बाद भी जवाब न मिलने पर उसके मन में बॉस को गले लगाने का मन तो करता नही होगा।

रिपोर्टर को कंपनी का अब भी शुक्रिया कहना चाहिए, जिसने 10 करोड़ का ही मानहानि ठोका, 50 करोड़ का नही। वरना वह 50 करोड़ कहाँ से लाता?

'कुछ भी हो.. कैमरा ले जाना गलत था' कहने वाले बहुत मिल जाएंगे। पर अगर यह नही होता तो शायद आपको पता भी न चलता।

रिपोर्टर मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं। तुम्हें खुद ही लड़ना होगा। तुम्हें मानसिक और आर्थिक रूप से खुद ही जूझना पड़ेगा।

नोट: फोटो बनाने वाले के लिए।

यह थंबनेल कंटेंट के आधार पर ठीक नहीं है। प्रोड्यूसर को धब्बा जैसे शब्द को डार्क रखना चाहिए। जबकि इसे रेड बैकग्राउंड पर व्हाइट कलर से लिखा गया। वैसे ही यहां कंपनी के लिए मानहानि करना किसी बड़ी उपलब्धि के रूप में दिखाया गया है। इसे ज्यादा हाईलाइट करने की जरूरत थी। कलर का भी ध्यान रखना था।

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सम्पादक

डॉ. लीना