पत्रकारिता का यह कैसा दौर?
रामजी तिवारी। पत्रकारिता का यह कैसा दौर है, जिसमें आपको एक सवाल भी ढंग का 'फ्रेम' करने नहीं आता | जिसमें आपके पास इतना भी साहस नहीं है, कि सामने वाले की आँखों में आँखे डालकर उसके सामने आईना रख दे | जिसमें यह तय कर पाना अत्यंत कठिन हो रहा है कि आपकी अज्ञानता पर सिर धुना जाए या कि आपकी चापलूसी पर |
आज आप जिन 'एक्सक्लूसिव साक्षात्कारों' पर इतरा रहे हैं, आने वाले समय में आपकी पीढ़ियां उन पर शर्माती नजर आयेंगी | वे इतिहास के कूड़ेदान में दफ़न हो जायेंगे | और जब भी उनका जिक्र आयेगा, उन्हें इस 'महान लोकतंत्र' के 'महान चौथे स्तम्भ' के चेहरे पर कालिख के रूप में ही देखा जाएगा |
अभी तक आपने अपने पडोसी देश को गाली तो बहुत दी है, और चाहें तो इस पोस्ट के लिए मुझे भी दो-चार रसीद कर सकते हैं |
लेकिन सोचियेगा .....कि हमारे पास आज की तारीख में एक भी 'हामिद मीर' क्यों नहीं हैं....?