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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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एक सिलसिले का समापन

मेरी प्रस्तुति में ‘मीडिया मंथन’ के आखिरी एपिसोड का प्रसारण

उर्मिलेश/ सन् 2010 में राज्यसभा टीवी(RSTV)के कार्यकारी संपादक के रूप में काम शुरू करते हुए हमने संसदीय चैनल के संभावित कार्यक्रमों पर कई महीने विचार किया। प्रशासन हमारे चैनल के लिये आधारभूत ढांचा मुहैय्या करने में जुटा था। हम और हमारी संपादकीय टीम के वरिष्ठ सदस्य कार्यक्रमों की सूची, कंटेट और उसके प्रस्तुतीकरण की रूपरेखा बनाने में लगे थे। चैनल के सीईओ गुरदीप सिंह सप्पल और राजेश बादल सहित कई वरिष्ठ सहकर्मियों का सुझाव था कि चैनल पर मुझे भी एक कार्यक्रम पेश करना चाहिये। उन्हीं दिनों मेरे दिमाग में ‘मीडिया मंथन’ का विचार आया। और इस तरह ‘मीडिया मंथन’ राज्यसभा टीवी के शुरुआती दौर से ही चैनल की कार्यक्रम-सूची में शामिल हो गया। जहां तक याद आ रहा है और दिलीप खान इसकी पुष्टि कर रहे हैं कि सितम्बर, 2011 में इसका पहला एपिसोड प्रसारित हुआ। तबसे यह लगातार प्रसारित होता रहा है। मई, 2012 में ही मैंने राज्यसभा टीवी(RSTV) के कार्यकारी संपादक पद से इस्तीफा दे दिया और किसी संस्थान से जुड़े बगैर स्वतंत्र ढंग से पत्रकारिता करने का फैसला किया। राज्यसभा टीवी से मेरे अलग होने के बावजूद चैनल के प्रशासन ने एक फ्रीलांस-एंकर के तौर पर ‘मीडिया मंथन’ कार्यक्रम जारी रखने का अपनी तरफ से प्रस्ताव किया। संभवतः हर टीवी-प्रस्तोता का अपने कार्यक्रम से एक तरह का रिश्ता हो जाता है, मोह और मोहब्बत का रिश्ता। इसके अलावा अपने दर्शकों-श्रोताओं के बीच हर सप्ताह किसी न किसी नये विषय को लेकर पहुंचने का अपना ही सुख और संतोष होता है। शायद, इन्हीं कारणों से मैं ‘मीडिया मंथन’ जारी रखने के चैनल के प्रस्ताव पर तत्काल सहमत हो गया।---और इस तरह ‘मीडिया मंथन’ आज तक जारी है। इस दरम्यान देश के अनेक प्रबुद्ध मीडिया हस्तियों, समीक्षकों और आलोचकों ने कार्यक्रम के 'सकारात्मक-नकरात्मक' पक्षों पर लिखा या बोला। लेकिन सबने एक बात जरूर मानी कि ‘मीडिया मंथन’ देश के टीवी जगत में अपने ढंग का एक मात्र कार्यक्रम है, जो हर सप्ताह मीडिया के अंदर की हलचलों, उसके विचार-पक्ष, प्रस्तुति और परिप्रेक्ष्य की बेबाक समीक्षा करता है। इस कार्यक्रम में मीडिया की तमाम नामी गिरामी हस्तियां शामिल होती रहीं। हर धारा और हर विचार के लोगों को चर्चा में सम्मान के साथ आमंत्रित किया जाता रहा। हमने इस बात का भी ध्यान रखा कि हमारी चर्चा में शामिल होने वाले विशेषज्ञों के विचारों और सामाजिक-लैंगिक पृष्ठभूमि में विविधता भी हो। सहयोग-समर्थन के लिये राज्यसभा टीवी के प्रशासकीय और संपादकीय नेतृत्व का खास तौर पर आभारी हूं। मुझे खुशी है कि देश के महत्वपूर्ण संसदीय चैनल पर लगभग साढ़े पांच साल ‘मीडिया मंथन’ पेश करता रहा। विषय-निर्धारण, विचार व बहस की दिशा से लेकर अतिथियों के चयन में कभी किसी ने हस्तक्षेप नहीं किया। प्रसारण के दौरान पर्दे पर अच्छा या बुरा जो कुछ दिखा, वह सब मेरा और RSTV द्वारा मुहैय्या कराई ‘मीडिया मंथन’ की छोटी सी टीम का था। RSTV के वरिष्ठ संपादकीय पदाधिकारी ओमप्रकाश चैनल और मेरे बीच संवाद सूत्र रहे। शुरुआत में हमारी टीम में प्रोड्यसर के रूप में अमन चोपड़ा रहे। उसके बाद लंबे समय तक दिलीप खान, बीच में जैगम मुर्तजा, फिर ममता सिद्धार्थ और इस वक्त कुंदन कुमार और अंकिता रहे। इन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद और स्नेह। कैमरापर्सन्स, पीसीआर के साथियों, मेक-अप स्टॉफ, अतिथि समन्वयक और परिवहन व्यवस्थापक, सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। आज, शनिवार(27 मई,2017), सायं 7.30 बजे मेरी प्रस्तुति में ‘मीडिया मंथन’ के आखिरी एपिसोड का प्रसारण है। इसका पुनर्प्रसारण सोमवार को 11 बजे सुबह भी होगा। आज का विषय हैः ‘सवाल उठाने के बजाय स्वयं मीडिया पर क्यों उठ रहे हैं सवाल!’ आज की चर्चा में शामिल हैं-चार खास मेहमानः देश की वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी, ‘द वॉयर’ के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन, जाने-माने टीवी पत्रकार राहुल देव और सुप्रसिद्ध दलित कार्यकर्ता अशोक भारती।

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना