विनीत कुमार/ दिल्ली से छपनेवाले अख़बारों में शायद ही ऐसा कोई दिन हो कि किसी कोचिंग संस्थान का पूरे पेज में विज्ञापन न हो. जैसे ही ये कोचिंग संस्थान विज्ञापनदाता हो जाते हैं, मीडिया का ध्यान इस बात से हट जाता है कि इनके भीतर कोई गड़बड़ी भी हो सकती है ? लिहाजा, ये कोचिंग संस्थान इनके लिए स्टोरी/रिपोर्ट के विषय नहीं रह जाते.
दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर लोग खुलेआम वीडिया बनाकर, मीडिया संस्थान का नाम लेकर लिख रहे हैं कि वो इंटरव्यू शूट करने और दिखाने के लाखों रूपये लेते हैं. ऐसे में किसी कोचिंग संस्थान के मालिक ने पैसे पर इंटरव्यू दिया तो उनके लिए भी कोचिंग संस्थान कोई ख़बर करने का विषय नहीं है. मीडिया का मुँह सिर्फ सेंसरशिप लागू करके बंद नहीं किया जाता, भारी-भरकम विज्ञापन देकर भी किया जा सकता है.
पीटीआई की इस ख़बर में कोचिंग संस्थान के जिन छात्रों की मौत हुई है, उन तीन छात्रों के बारे में सोचिए कि वो हजारों रूपये देकर यहां अपना भविष्य बनाने आए थे और ज़िंदगी ही चली गयी. बेसमेंट में चलनेवाले कोचिंग में पानी के निकास की कोई व्यवस्था ही नहीं, ड्रेनेज सिस्टम ही नहीं. ये संस्थान तैयार करते हैं देश के प्रशासनिक अधिकारी. बारिश हुई और बेसमेट में बारह फीच तक पानी भर गया. बेंचें तैरने लगीं और फेंकी गयी रस्सी तक छात्रों का सहारा न बन सका.
एक बार भी किसी अख़बार या चैनल इस बात को लेकर तब तक स्टोरी नहीं करते जब तक कि कोई हादसा न हो जाय. लाखों के विज्ञापन देनेवाले कोचिंग संस्थान किन हालात में कोचिंग चला रहे हैं, छात्रों की ज़िंदगी किस हद तक दांव पर लगी होती है, ये ख़बर का हिस्सा ही नहीं बन पाता. सोचकर देखिए तो देश के कितने हजार युवा और उनके सपने मौत की आशंका के बीच पल रहे होते हैं.