बड़ा अफ़सोस होता है ये सुनकर कि मीडिया में अब वो बात नहीं वो बेबाक आवाज़ नहीं, बिक चुकी है मीडिया, बिक चुके है मीडिया कर्मी, दलाल बन चुके है प्रसाशनिक अधिकारियो के..वो बोलते है कि खबर छापो/दिखाओ तो ही काम करते है वर्ना दलाली तो है ही..जिंदाबाद, मगर मित्रो में एक बात जरुर बताना चाहूंगा - हर मीडियाकर्मी ऐसा नहीं होता, मगर कुछ के कर्मो की सजा हमें भी भुगतनी पड़ती है..आम इन्सान की नज़र में एक मिडियाकर्मी की कमाई बहुत है मगर कभी एक ऐसे पत्रकार के घर जाकर देखिये जिसकी रोजी-रोटी सिर्फ पत्रकारिता है, उस पत्रकार के घर जाकर देखिये किस तरह वो अपना घर चलता है..ख़ास कर वो जो राष्ट्रीय चैनलों से जुड़े हुए है। महीने में पाच या सात खबर कई बार तो वो भी नहीं..खबर चैनल ने ली तो ठीक नहीं तो पूरी मेहनत पर पानी..और महीने के आखिर में हिसाब हुआ 6 हज़ार उस में भी कट जाते है..कई बार पैसे आने में देरी हो जाती है..हालत खराब हो जाती है एक पत्रकार की और ऊपर से लोग कहते है ये दलाल है..में आप सभी से पूछता हूँ..ये जानने के बाद भी क्या आप ये मानते हैं कि पत्रकार दलाल है..?----- साजिद खान (ndtv)
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Corespondant at NDTV India