कल मिजोरम पर पर्याप्त कवरेज का अभाव था
प्रथक बटोही/ हिंदी राष्ट्रीय भाषा तो नही बन पायी पर राजकीय भाषा के तौर पर भी दूसरे स्थान पर काम करने को अभिशप्त हिंदी में राष्ट्रीय समग्रता का अभाव है। यह अभाव उसको पूर्वोत्तर, कच्छ-मरुस्थल, उड़ीसा और दक्षिण के राज्यों से काटता हैं। कल मिजोरम पर पर्याप्त कवरेज का अभाव था।
सीएनएन- बीबीसी के वैश्विक चरित्र को देखिये उनकी कवरेज- कंटेंट को देखिये सचमुच वे वैश्विक लगते है। बंगलादेश में सिलाई कारखाने ढहने की खबर देखिये, विएतनाम के तूफ़ान 'हैयान' का जिक्र हो।
न्यूज एक प्राडक्ट है और मीडिया एक व्यवसाय है जिससे कोई दो राय नही, पर जिस तरह कल हिंदी मीडिया द्वारा मिजोरम को छोड़ा गया वह हिंदी को राष्ट्रीय की जगह क्षेत्रीय पायदान पर धकेल देती है। वैसे भी हिंदी मीडिया में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व कम ही है पूर्वांचल- बिहार के क्षेत्रीय दबदबे से यह हिंदी भाषी क्षेत्रों के सुदूर हिस्सों से भी कटा है।