मरने वालों की दर सिर्फ 0.53 प्रतिशत
वीरेंद्र यादव/ पटना/ कोरोना बीमारी से ज्यादा बाजार बन गया है। अखबार में कोरोना, टीवी में कोरोना, मोबाइल में कोरोना। ऑफिस में कोरोना, चाय दुकान पर कोरोना, गाड़ी में कोरोना। जिदंगी की बात छोडि़ये, मर गये तो माथे पर कोरोना की मुहर लग जायेगी। कोरोना भय का बाजार बन गया है। इस बाजार को यूट्यूब ने सबसे ज्यादा गंदा किया है। टीवी पहले खूबसूरत एंकरों के साथ बलात्कार की खबर बेचता था और अब मौत बेच रहा है। अखबार की बात ही निराली है। पहले अखबार खबरों के लिए लीडर होता था, अब फॉलोअर हो गया है।
पूरा मीडिया कोरोना को बेच रहा है। इससे उत्पन्न भय को बेच रहा है। खबरें उम्मीद नहीं, आतंक पैदा कर रही हैं। क्या यह खबरों की विफलता है या विफलता की खबर। खबर का माध्यम कोई भी हो, डरावने आंकड़े और बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था, यही केंद्रीय विषय हैं। विकास का राजमार्ग कोरोना के दलदल में फंस गया है। आगे की राह नहीं सूझ रही है। लेकिन एक बार खबरों के कारोबार में लगे व्यवसायी और कर्मचारियों को ठहर कर सोचना चाहिए कि दहशत प्रशासनिक अव्यवस्था की वजह से है या खबरों की वजह से। अव्यवस्था को बेचने वाले खबरों के कारोबारी जब खुद कोरोना की चपेट में आते हैं तो उसी अव्यवस्था की शरण में पहुंच जाते हैं और जिदंगी की उम्मीद लगा बैठते हैं। वजह साफ है कि आखिरी उम्मीद भी सरकार ही है।
बिहार में कोरोना वायरस से मरने का पहला केस पिछले साल 22 मार्च को सामने आया था। एक साल एक महीना यानी लगभग 400 दिन पहले। इन 400 दिनों में 23 अप्रेल तक उपलब्ध आंकड़ों अनुसार, कुल 2010 लोगों की मौत कोरोना संक्रमण से हुई है यानी औसतन प्रतिदिन 5 व्यक्ति इसकी चपेट में आ रहे हैं। पिछले 400 दिनों के संक्रमण के अनुपात में मौत की दर देंखे तो बहुत कम है। यह दर वैसा दहशत नहीं पैदा करता है, जैसा दिखाया जा रहा है।
23 अप्रैल तक उपलबध आंकडों के अनुसार, प्रदेश में 378442 (तीन लाख अठहतर हजार चार सौ बयालीस) लोग कोरोना संक्रमित हुए हैं। इसमें से तीन लाख बारह (300012) लोग संक्रमण से मुक्त हो चुके हैं। इस अवधि में कुल 2010 लोगों की मौत हुई है। यह आंकड़ा कुल संक्रमितों का मात्र 0.53 (आधा) प्रतिशत है। इसका मतलब है कि 99.47 प्रतिशत संक्रमित स्वस्थ होकर सामान्य जीवन जी रहे हैं। हाल के दिनों में रिकवरी रेट में गिरावट आयी है। यह सिर्फ गणितीय आंकड़ा है। संक्रमितों में तेजी से इजाफा होने के कारण स्वस्थ होने की दर गिरती दिख रही है। एक संक्रमित व्यक्ति के स्वस्थ होने में कम से कम दस दिन लग जाते हैं। ऐसे नये संक्रमितों के स्वस्थ होने की दर 10 दिन बाद ही बढ़ेगी। इसका एक पक्ष यह भी है कि संक्रमितों की संख्या में अचानक आयी तेजी ने अस्पतालों पर दबाव बढ़ा दिया है। बहुत सारे लोग घर पर रह कर ही इलाज करा रहे हैं। ऐसे संक्रमितों की गिनती जांच के दौरान हो जाती है, लेकिन स्वस्थ होने के बाद इनकी गिनती का कोई इंतजाम नहीं है। इस कारण भी रिकवरी रेट कम दिखती है।
प्रशासनिक अव्यवस्था है, यह खबर है। इससे कौन इंकार कर रहा है। लेकिन इसी व्यवस्था में सैकड़ों लोग रोज स्वस्थ हो रहे हैं। होम आइसोलेशन वालों को भी सरकारी स्तर पर परामर्श उपलब्ध कराया जा रहा है। मीडिया को बाजार के साथ सरोकार का ख्याल रखना चाहिए। खबर के नाम पर सिर्फ मौत मत बेचिये, उम्मीदों को जीवित रखिए और उम्मीद भी बांटिये।