विनीत कुमार/ जी मीडिया समूह और एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन सुभाष चन्द्रा इन दिनों बहुमत की सत्ता से नाराज़ चल रहे हैं. वह सत्ता जिसका कभी उन्होंने हिस्सा होना चाहा और इसके लिए अपने समाचार चैनल जी न्यूज को भी इस काम पर लगा दिया, भले ही इससे चैनल की साख मिट्टी में क्यों न मिल गयी हो. चन्द्रा की यह नाराज़गी काग़जी या हवा-हवाई है, यह आनेवाले दो-चार दिन में और स्पष्ट हो जाएगा. फ़िलहाल तो यह कि उन्हें एक बार फिर पत्रकारिता की स्वतंत्रता और उसकी साख की चिंता सता रही है और उन्हें इस बात का एहसास हो रहा है कि इस बहुमत की सत्ता के तहत जो कुछ भी चल रहा है, वो लोकतंत्र के अनुकूल नहीं है.
यदि आप जी न्यूज की कवरेज पर नज़र रख रहे होंगे तो देख पा रहे होंगे कि कल पूरे दिन चैनल ने बहुमत की सत्ता के दोनों बड़े चेहरे को स्क्रीन से दूर रखा. चैनल न भी देखते हों तो ट्विटर पर जाकर चैनल की टाइमलाइन से गुज़रेंगे तो भी अंदाज़ा लग जाएगा कि कैसे दर्जनों थम्बनेल के बीच ये दोनों चेहरे ग़ायब है बल्कि इंडि एलांयस को कहीं ज़्यादा महत्व दिया गया है. यह सिलसिला संभवतः आगे भी चले.
दूसरी तरफ चन्द्रा ने अन्तर्राष्ट्री पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर अपने ट्विटर हैंडल अकाउंट से चैनल की लोगो के साथ जो वीडियो जारी किया है, उसमे साफ़ है कि वो बहुमत की सत्ता से न केवल नाराज़ चल रहे हैं बल्कि आनेवाले दिनों में उन्हें लेकर कुछ खुलकर भी बोलें. इसके संकेत वीडियो में तो है ही, साथ ही आज सुबह जो ट्वीट किया है, वो इस संकेत को एक वक्तव्य में बदल देता है. वो लिखते हैं-
"Saw the play ‘Mere Ram’ a powerful line by dying Ravan “मेरे पतन का कारण मुझे अपने ज्ञान का अहंकार था और राम को अहंकार का ज्ञान था” हमे इसे समझ कर अपने व्यवहार में बदलाव करने में ही लाभ है। जय भारत"
बहुमत की सत्ता से चन्द्रा की नाराजग़ी की वज़ह क्या है, यह देर-सबेर तो हमारे सामने आएगा ही लेकिन इसे समझने के लिए उनकी लिखी आत्मकथा "The Z Factor: My Journey as the wrong man at the right time"(2016) किताब के "Stabbed in the Back: Steelin myself as the system turns against me" शीर्षक अध्याय पढ़ना ज़रूरी है. इस अध्याय में चन्द्रा ने जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड समूह के अध्यक्ष नवीन जिंदल, कोयला घोटाला और जी न्यूज के संपादकों की ओर से ली जानेवाली सौ करोड़ की कथित दलाली मामले को लेकर अपना पक्ष बयान किया है. इस अध्याय में चन्द्रा ने जिंदल पर एक के बाद एक गंभीर आरोप लगाते हुए अपने संपादक समीर आहलूवालिया और सुधीर चौधरी को क्लीन चिट देने का काम किया है. इस अध्याय के आख़िर में चन्द्रा लिखते हैं कि कैसे यूपीए-टू की सरकार और उनकी मशीनरी उनके पीछे बुरी तरह पड़ गयी और मैंने तय किया कि मुझे क्या करना है ? वो लिखते हैं- "This was an unjust act by the UPA. In response, I personally supported Narendra Mosi's campaign for prime ministership." पृष्ठ संख्या- 264.
ये वही सुभाष चन्द्रा हैं जिन्होंने एक समय कहा कि भारत और पाकिस्तान दो अलग देश होते हुए भी सांस्कृतिक रूप से एक ही देश है और हमारा काम इसकी साझी विरासत को आगे ले जाना है. उन्हें तब पाकिस्तानी टीवी चैनल पीटीवी के कार्यक्रम का अपने नए चैनल जी ज़िंदगी पर प्रसारण करना था और जो व्यावसायिक तौर पर सफल भी हुआ. अपने राजनीतिक आकाओं को ख़ुश करने के लिए फिर 04 जून 2017 को चन्द्रा ने ट्वीट किया कि जी न्यूज, जी हिन्दुस्तान, विऑन,डीएनए और जी मीडिया के दूसरे सभी चैनल भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच से जुड़ी किसी भी ख़बर का प्रसारण नहीं करेंगे.यदि सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि टेरर एण्ड टॉक एक साथ नहीं चल सकते तो फिर टेरर एण्ड क्रिकेट एक साथ कैसे चल सकते हैं ? यह अलग बात है कि चन्द्रा ने वीडियो ऑन डिमांड के तहत OZEE पर ज़िंदगी के सारे पाकिस्तानी टीवी सीरियल की उपस्थिति बनाए रखी. इतना ही नहीं ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ZEE5 को नए ठिकाने के तौर पर विकसित किया. इस मामले में 10 दिसंबर 2021 को सुपर्णा शर्मा ने अल ज़जीरा के लिए एक लंबी स्टोरी की है और बताया कि कैसे चन्द्रा की रणनीति है कि इस ठिकाने को पाकिस्तानी वेब सीरीज के सबसे प्रमुख ठिकाने के तौर पर विकसित किया जाय. मेरी किताब "मीडिया का लोकतंत्र" में इन सब पर विस्तार से चर्चा शामिल है.
सुभाष चन्द्रा के पास अपने पक्ष में तर्क गढ़ने की एक ख़ास कला है. इस कला के नमूने भारत सरकार के डाउनलिंग-अपलिंकिंग प्रावधानों की धज्जियां उड़ाकर चैनल लॉन्च करने से लेकर अलग-अलग समय में अलग-अलग राजनीतिक दलों का खुलकर समर्थन करने के तौर पर उनके ही लिखे-कहे शब्दों में दिखाई देती ही है, साथ ही यह भी नज़र आता है कि वो पत्रकारिता का इस्तेमाल कैसे अपने कारोबार को ब़रकार रखने के लिए करते हैं.
अपने संपादक-मीडियाकर्मी सुधीर चौधरी की मदद से चन्द्रा ने पत्रकारिता की आज़ादी के समय से बनी परिभाषा को ध्वस्त करने की कोशिश करते हुए जो सत्ता के साथ है वही पत्रकारिता है और वही राष्ट्रवाद भी है, स्थापित करने की कोशिश की, आज वो यह परिभाषा उलटना चाहते हैं. आज वो फिर चाहते हैं कि बहुमत की इस सत्ता से असहमत होना ही असल पत्रकारिता है. उन्हें अब इस बात की चिंता सताने लगी है कि विश्व स्तर पर भारतीय पत्रकारिता की साख तेजी से गिर रही है, वो इसे बचाना चाहते हैं. जिस संपादक-मीडियाकर्मी ने ऐसा डंके की चोट पर करने की कोशिश की, वो अब इनका साथ छोड़कर सबसे तेज हो गया है और वो इस बात पर क़ायम है कि जो सत्ता के साथ है, वही राष्ट्रवादी है और उसी की बात पत्रकारिता है. वो अपनी किताब में जिस नवीन जिंदल पर आरोपों की झड़ी लगा चुके हैं, वो इस सत्ताधारी दल का चुनावी प्रत्याशी है. चन्द्रा के पास शब्द है, तर्क है और अभी तक एक बड़ा मीडिया नेटवर्क है तो जब चाहें, जैसे चाहें, अपने पाठकों को भरमाए रख सकते हैं लेकिन इनमें से कुछ तो एक दिन साथ छोड़ देगा और वक़्त के साथ एक-एक करके सारी चीज़ें भी. क्या तब उन्हें लिखे-कहे से पाठक-दर्शक कुछ तय नहीं कर सकेंगे और क्या यह सिलसिला अभी से शुरु नहीं हो गया है ?
स्क्रीनशॉट साभारः https://twitter.com/subhashchandra