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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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पत्रकार असंगठित मजदूरों से भी गये बीते!

कभी सुना है कि प्रेस क्लब की कोई टीम श्रमायुक्त अथवा श्रम मंत्री से मिला हो ?

रमेश प्रताप सिंह / जो कार पर है वो पत्रकार नहीं हैं और जो पत्रकार है उसके पास कार नहीं हैं। कलमकार तो कबका बेकार हो चला! इन्टरनेट के आने के बाद से इस क्षेत्र में चोरी इतनी ज्यादा बढ़ गई कि संकट पैदा हो गया! पहले अखबारों में लिखने वालों को मानदेय मिलता था मगर अब तो मुफ्तखोरी हावी हो गई है! बड़े- बड़े तथाकथित सम्पादक कलमकारों की इस कमाई को भी बंद कर चुके हैं! लिखिए आप खूब मगर जैसे कुछ देने की बात आती है इनकी नानी मर जाती है! पत्रकारों को भी वेतन देने के नाम पर जो मजाक चल रहा है वो भी किसी से छिपा नहीं है। मगर ये पत्रकार नामक जीव बिलकुल असंगठित मजदूरों से भी गया बीता हो चला है! बड़े-बड़े प्रेस क्लब भी अखबार मालिकों से पंगा लेने से डरते हैं! चार साल रायपुर आये हो गया मगर आजतक नहीं सूना कि आज कोई प्रेस क्लब की टीम ने श्रमायुक्त अथवा श्रम मंत्री से मिला हो? श्रमजीवी पत्रकार संघ तो बना है मगर वो भी शर्म जीवी लगता है। अफ़सोस की इन दबे कुचले पत्रकारों को न्याय दिलाने के लिए पता नहीं किस अवतार का इंतज़ार हो रहा है? आखिर कब तक सूचना और जनसंपर्क विभाग की विज्ञप्तियां छापते रहेंगे। कब तक भैया जी के सामने दांत चियारते फिरेंगे?
Ramesh Pratap Singh @

 

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना