उर्मिलेश/ इसीलिए मैं टीवी चैनलों को ‘गोदी मीडिया’ तक नहीं सीमित रखता. यह एक ख़ास क़िस्म का मीडियापुरम् है! इसमें टीवी चैनलों की दुनिया तो और भी ‘हिन्दू अपर कास्ट अफ़ेयर’ है! (अगर किसी को मेरी बात पर संशय हो तो वह टीवीपुरम् में काम करने वाले, ख़ासकर इसके निर्णयकारी पदों पर आसीन लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि का सर्वेक्षण कराकर देख लें या ऐसे संस्थानों से स्वयं ही इस आशय का आँकड़ा सार्वजनिक करने को कहें)
पहले से चले आ रहे इस सिलसिले में 2019 के बाद कुछ नये पहलू जुड़े हैं. चैनलों के संचालकों और कार्यपालकों आदि ने अपने-अपने संस्थानों में ‘वर्णाश्रमी वर्चस्व और उसकी वैचारिक उग्रता’ का और सुदृढ़ीकरण किया है. इस बीच, ‘उच्च वर्णीय’ पृष्ठभूमि से आये कथित लिबरल्स भी हाशिये पर चले गये. कुछ बाहर हो गये.
राजनीति में ‘कारपोरेट-हिन्दुत्वा गठबंधन’ के सुदृढ़ीकरण के बाद अधिसंरचनात्मक दायरे में इसकी अभिव्यक्ति होना लाज़िमी था. महज़ संयोग नहीं कि नये शासकों ने टीवी चैनलों और हिन्दी अख़बारों पर सर्वाधिक ज़ोर दिया. उत्तर और मध्य के हिन्दी भाषी क्षेत्रों में समाज का मानस जो बदलना था!
इसलिए हमें मीडियापुरम् या टीवीपुरम् की ऐसी किसी घटना या किसी विस्मयकारी प्रसंग(जैसा पिछले दिनों एक चैनल पर योगेन्द्र यादव जैसे प्रखर और प्रख्यात बुद्धिजीवी के साथ देखने को मिला )पर अब कोई अचरज नहीं होता!