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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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मीडिया भी एक खास वर्ग को ध्यान में रखकर ख़बरें गढ़ता हैं

ScSt Federation के फेसबुक से / गैंगरेप के विरोध दिल्ली में आज हुए प्रदर्शन ने एक बात साफ़ कर दी है कि एलीट क्लास द्वारा किये गए आन्दोलनों को मीडिया बढचढ कर दिखाता है या यूं कहें खुद प्रायोजित करता हैं । अंग्रेजी में नारे लगाती भीड़ और अंग्रेजी में इंटरव्यू देते प्रदर्शनकारियों की लाइव मीडिया कवरेज मुझे दिन भर मुंह चिढाती रही ।

मीडिया भी एक खास वर्ग को ध्यान में रखकर ख़बरें गढ़ता हैं । जबकि इण्डिया गेट से बमुश्किल एक किमी दूर कंपकपाती दिल्ली की थरथराती सर्दी में जंतर मंतर के निकट महीने भर से पड़े एक दर्जन से ज्यादा विभिन्न हडताली संगठन , दर्जनों अनशनकारी , सैकड़ों प्रदर्शनकारी ,जिनमे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी , बहुजन सेवा दल, नाविक निषाद आदिवासी परिषद् , फलाहे उर्दू तंजीम भारत , मजदूर संगठन , आरक्षण समर्थक और वेतन विसंगति दूर करने की मांग कर रहे लोगों को कार्पोरेट लाबिस्ट मीडिया पूछता तक नहीं ।

अखबार इनकी खबर नहीं छापता ।ऐसा लगता है शायद देश में या दिल्ली में पहली बार कोई बलात्कार हुआ है .........दिल्ली से दूर दराज के गाँवों में प्रायः रोज बलात्कार होते हैं , जो समझौते की आड़ में दबा दिए जाते हैं या जिनकी आवाज थाने की चौखट तक पहुँचते पहुँचते थम जाती है या फिर उसे न्याय पाने के लिए किसी दमदार नेता के सहारा लेना पड़ता है जो तभी मिलता है जब बिरादरी के मिलने वाले वोटों की संख्या निश्चित हो जाती है, .दिल्ली में बसने वाले टीवी पत्रकारों को दलितों पिछड़ों और आदिवासियों पर टूटते जुल्म के पहाड़ नजर नहीं आयेंगे क्योकि वहां तक आते आते उनके कैमरों की बैटरियां डिस्चार्ज हो जाती है । (http://www.facebook.com/scst.federation.5)

 

 

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना