संतोष मानव/ आप नहीं जानते, मीडिया मुगल कितनी कमाई करते हैं? किन-किन रास्तों से करते हैं? सरकारों से किस-किस तरह के लाभ लेते हैं। कभी पुचकार और कभी दबाकर। कहां-कहां फंड डाइवर्सिफाइ करते हैं। कल का खाकपति आज खरबपति हैं। साइकिल पर अखबार बेचने वाले, मिठाई बेचने वाले, केरोसिन बेचने वाले, बलात्कारी अखबार निकालने लगे,और आज पचास हजार-एक लाख करोड़ दबाए बैठे हैं। सौ तरह के धंधे हैं इनके। और ये अखबारनवीसों को पैर की जूती से ज्यादा इज्ज्त नहीं देते। मैंने एक बार प्रख्यात संपादक विश्वनाथ सचदेव से पूछा था- संपादक और अखबार मालिक में कैसा संबंध होना चाहिए? सचदेवजी ने कहा-जैसा मालिक और नौकर में होता है। समझिए क्या हाल है मीडिया का? और यह अठारह साल पहले की बात है। आज तो खबरनवीस बंधुआ मजदूर है-कृतदास। मीडिया की इज्ज़त जनता बचाए। पत्रकार और पत्रकार संगठन तो कायर हैं। जनता के लिए अखबार नवीस ही लड़ता है, मीडिया मुगल नहीं। इसलिए जनता आगे आए। माना कि समय खराब है, तो क्या समय सिर्फ मीडिया मुगलों के लिए खराब है? क्या वे घाटा बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं? मैंने नहीं सुना कि कोई मीडिया मुगल कभी दिवालिया हुआ है? दस-बीस वर्ष की सेवा के बाद किसी को सड़क पर लाना पाप है।
# जो पत्रकारों को हटाए, उस अखबार को पढना बंद कीजिए, विज्ञापन न दीजिए। देखिए, इनकी हेकड़ी गुम हो जाएगी # सेव मीडिया ।