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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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मीडिया लिटरेसी कैंपेन चलाने की जरूरत

जागरूक समाज आगे आए

संतोष सारंग/ सामाजिक संस्थाओं, नागरिक संगठनों के लिए अनाज बांटने से अधिक आमलोगों के बीच मीडिया लिटरेसी कैंपेन चलाने की जरूरत है। वर्तमान परिस्थिति के लिए अगर सबसे अधिक जिम्मेदार है, तो वह मनुवादी मीडिया है। लोकतंत्र को मजबूत बनानेऔर समरस समाज के निर्माण के लिए स्वार्थी व सत्तालोलुप नेताओं से भी ज्यादा खतरनाक ये विलेन मीडिया है। यदि एक महीने भी मीडिया निष्पक्ष व जनपक्षी होकर सच दिखाने-लिखने लगे, तो सभी सरकारों की पोल खुल जाए। उसके झूठ और पाखंड की पोल खुल जाए, मगर अभी ऐसा होना संभव नहीं दिख रहा है। पूंजी के रथ पर सवार ये वेश्या मीडिया सत्ता के गुलाम बन गया है। इसी का नतीजा है कि देश में झूठ का पिरामिड खड़ा करके सच को दबाया जा रहा है। भोली जनता हर उस झूठ को सच मान बैठती है, जिसे मीडिया मिर्च-मसाला लगा कर परोसता है। हर उस धार्मिक उन्माद को छद्म राष्ट्रवाद और कथित देशभक्ति का अनिवार्य तत्त्व मान बैठता है, जिसे बहादुर एंकर चिल्ला-चिल्ला कर पेश करता है। आज मीडिया का मतलब हो गया है अभिजात्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करनेवाला और वंचित वर्ग को कठघरे में खड़ा करनेवाला।

आज जरूरत है कि मीडिया लिटरेसी कैंपेन चला कर आम लोगों को बताया जाये कि लोकतंत्र का चौकीदार यानी अखबार व चैनल कैसे सरकारों की चौकीदारी कर रहा है ? कैसे धार्मिक उन्माद फैला कर नागरिकों को गुमराह कर रहा है ? कैसे गरीब मजदूर-किसानों की आवाज को दबा रहा है? मीडिया घरानों में किस सोच के तहत कुछ खास जातियों का ही वर्चस्व है? कैसे कमजोर तबकों की बातों को चालाकी से गुम कर दिया जा रहा है? किस षड्यंत्र के तहत आपके समाज के लोगों को प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं दिया जा रहा है? सर्वहारा के आंदोलन को कुचलने में कैसे मीडिया सरकारी कुचक्र का हिस्सा बन जाता है? 

अब समय आ गया है कि कमजोर तबका अपनी आवाज मुखर करके मीडिया मालिकों से सवाल करे। लोकतंत्र का प्रखर प्रहरी बन कर संगठनकर्ता व प्रबुद्धजन आम लोगों को मीडिया साक्षर बनाने में अपनी भूमिका तय करे। इसकी शुरुआत अपने मोहल्ले से कर सकते हैं। लोकतंत्र व संविधान की यदि फिक्र है, तो आवारा पूंजी के पथरीले मार्ग पर भटक रहे मीडिया संस्थानों को पत्रकारिता के एथिक्स के प्रति उसे संवेदनशील बनाने को जागरूक समाज आगे आएं।

(संतोष सारंग के फेसबुक वाल से साभार )

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना