नरेन्द्र नाथ मिश्रा / इन दिनों मेनस्ट्रीम मीडिया खासकर टीवी के सामने यू ट्यूब और अल्टरनेटिव मीडिया के अधिक तेजी से पसरने पर बहस हो रही है। वहां विपक्षी स्पेस से जुड़े आवाज के अधिक मजबूत होने पर बहस हो रही है। इसके लिए लंबी-लंबी दलील दी जा रही है। जबकि इसका बहुत आसान स्पष्ट कारण है।
मेनस्ट्रीम मीडिया ने खुद को विपक्ष के विरुद्ध खड़ा कर दिया। उन्हें स्पेस नहीं दिया। दिया तो उन्हें टारगेट करने के लिए। इसका नुकसान खुद मेनस्ट्रीम मीडिया और सत्ता पक्ष को हुआ।
अगर कंज्यूमर-मार्केट प्रोडक्ट की बात करें तो देश में लगभग 40-45 करोड़ लोग (वोटर के हिसाब से ) से ऐसे थे जो विपक्षी तर्क सुनना चाहते थे। मार्केट के हिसाब से यह बहुत बड़ा स्पेस था। मेनस्ट्रीम मीडिया ने ऐसे सारे कंज्यूमर को खुद से अलग कर लिया। उनके पास फिक्स आडियेंस रहे। जो स्थिर थे। बाद में मोनोटोनी होने के बाद सत्ता पक्ष से जुड़े लोगों ने वहां जाना बंद कर दिया। इधर लगभग 50 करोड़ के बाजार में सभी को दर्शक मिला। अभी भी वहां स्पेस खाली है। लोगों ने भरा। जो आये, सफल हुए। यह सिंपल भाषा में डिमांड-सप्लाई का मसला था। मेनस्ट्रीम मीडिया ने खुद से यह बाजार गिफ्ट किया। यही कारण है कि अगर सत्ता पक्ष के कंटेट यू ट्यूब पर उतने सफल नहीं होंगे। क्योंकि उनका बाजार पहले से व्यवस्थित था। और अगर वहां भी इस पक्ष ने अपना बाजार बनाया तो समझ लीजिये कि वह रही-सही मेनस्ट्रीम मीडिया के स्पेस की कीमत पर ही होगा।