ओम थानवी/ आख़िर NDTV भी क़ब्ज़े कर लिया गया। मसालों के नाम पर स्पाइस-जेट हवाई कम्पनी चलाने वाले अजय सिंह अब यह तय करेंगे कि एनडीटीवी के चैनलों पर क्या दिखाया जाए, क्या नहीं। इसका मुँह-चाहा फ़ायदा उन्हें सरकार से मिलेगा। इस हाथ दे, उस हाथ ले। एक मसाला-छाप व्यापारी को और क्या चाहिए?
इस ख़रीदफ़रोख़्त के बीच कुछ पत्रकार तो पहले ही एनडीटीवी छोड़कर जा चुके हैं। कुछ चले जाएँगे। कुछ को चलता कर दिया जाएगा। फिर एक संजीदा सच दिखाने वाले चैनल में बचा क्या रह जाएगा? हींग-जीरा, लौंग-इलायची?
मैंने कुछ ही रोज़ पहले एक विश्वविद्यालय में बोलते हुए कहा था कि यह दौर मीडिया को मैनेज करने का उतना नहीं, जितना उसे अपने लोगों द्वारा ख़रीदवा लेने का है। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। ससुरी बजेगी तो बेसुरी बजेगी। जब इस सरकार के लिए इतनी पहले से बज रही हैं - Zee News, CNN-IBN, ETV, RepublicTV आदि - तो एक और सही। उन्हें भी ख़रीद कर पीछे से क़ब्ज़े किया गया था। एनडीटीवी भी उसी गति को प्राप्त हुआ। उम्मीद है अब उसे छापों आदि से शांति नसीब होगी। नए ज़माने में चैन से ज़िंदा रहना ज़रूरी है, जूझते रहने से।