विनीत कूमार/ पॉजेटिव और निगेटिव को लेकर हमारी समझ इतनी सपाट है कि कारोबारी मीडिया को सकारात्मक न्यूज के नाम पर नयी दूकान की संभावना दिखने लग जाती है.
संयोग है कि जिस दिन आजतक(टीवी टुडे समूह) की मीडियाकर्मी चित्रा त्रिपाठी को किसानों ने गोदी मीडिया बताकर रिपोर्टिंग करने नहीं दी, उसी शाम यानी आज टीवी टुडे समूह का एक नया चैनल लांच हुआ है- गुड न्यूज टुडे. चैनल का दावा है कि वो अपने दर्शकों को शुभ समाचार देगा. शुभ से उसका क्या आशय है, ये हम जल्द ही जान सकेंगे.
दैनिक भास्कर ने कुछ वर्ष पहले सोमवार को “लाइफ नो निगेटिव ”का अभियान चलाया और उस दिन ऐसी कोई ख़बर नहीं छपती जिससे कि दर्शक को लगे कि हमारे आसपास कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा. मैं जयपुर के एक मीडिया कार्यक्रम में जब शामिल हुआ तो दैनिक भास्कर की तरफ से एक पैकेट दिया गया. घर आकर खोला तो सात दिन के साथ चॉकलेट थे जिसके उपर अलग-अलग शब्दों के साथ एंटी लिखा था.
जब हम चारों तरफ कई सवालों और समस्याओं से घिरे होते हैं और बावज़ूद मीडिया उसे नकारात्मक बताकर फील गुड कराने का कारोबार करता है, उसे गुलाबी पत्रकारिता(पिंक जर्नलिज्म) कहा जाता है. संभवत:जीएनटी उसी का एक संस्करण हो. लेकिन
आप ख़ुद सोचिए कि सारी चीज़ें पॉजेटिव जीवन के लिए सही होती हैं ? कोरोना का पॉजेटिव होना सही होता है ? देश की समस्या और हक़ीकत पर बात करना यदि निगेटिविटी है तो फिर पत्रकारिता का मतलब क्या है ? क्या संस्थान यही काम ठीक से करे, दर्शकों के बीच उम्मीद बनाए रखे तो अलग-अलग नाम और दावे के साथ ऐसी दूकानें खोलने और दर्शकों को भरमाने की गुंजाईश रह जाएगी ?
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