कार्यक्रम भड़ास का
मुकेश भारतीय / मेरा नई दिल्ली जाने का मकसद कोई पुरस्कार का लालसा नहीं था। भड़ास कार्यक्रम में शामिल होकर एक आम नागरिक(कथित पत्रकार) की रोजमर्रा की सच्चाई को रखना था। मीडिया-भ्रषटाचार-कॉरपोरेट पर कई दिग्गजों ने बहस की। जितने भी वक्ता थे, उनकी बातें एसी कमरे में ही शोभा देती है। उसके बाहर खुले गर्म थपेड़ों में नहीं।
किसी भी वक्ता ने यह स्पष्ट करने की कोशिश नहीं की कि आखिर मीडिया-भ्रषटाचार-कॉरपोरेट दौर में मीडिया से जुड़े आम लोग के पास विकल्प क्या है। यशवंत जी हों या मैं रहूं या कोई और...अनिरुद्ध बहल जी, मनीस शिशोदिया जी, राम बहादुर राय जी हों या अन्य। संकट की घड़ी में उन जैसों की भूमिका क्या होती है। बेशक सम्मानित किये जाने का गर्व मुझे है। यशवंत जी का मैं आभारी हूं। लेकिन मन में एक टीस रह गई कि जिन बातों पर सकारात्मक चर्चा मेरी राय में होनी चाहिये थी...नहीं हो सकी। सभी वक्ताओं ने खुद के चारो ओर ही समेट कर इति श्री कर ली। और सारे सवाल अनुत्तरित रह गये। मेरा स्पष्ट मानना है कि उंचाई से जमीन की चीजें साफ नहीं दिखाई देती है। मकसद अधूरा रह जाता है कार्यक्रम का..उनमें शामिल हाशिये पर खड़े कुछ लोगों का। मेरा यह भी मानना है कि यदि रंगदारी के पांच साल की जगह संपूर्ण पत्रकारिता के पांच साल होते तो बेहतर संदेश जाते। अब जरा गौर कीजिये कि स्वं प्रभाष जोशी और आलोक तोमर सरीखे पत्रकारिता के मील के पत्थर की स्मृति में कोई रंगदारी के पांच साल वाली टीसर्ट पहन कर लोगों के बीच जायेगा तो सामने वाले के क्या भाव उमड़ेगें। यशवंत जी काफी संघर्षशील और उर्जावान हैं। मुझे लगता है कि उनमें काफी संभावनायें हैं। और उन्हे इसे आगे भी बनाये रखना चाहिये।
मुकेश भारतीय @ http://www.facebook.com/nidhinews11?hc_location=stream