क्या गलती उस पत्रकार की जो बहुत ईमानदारी से रिपोर्ट दिखाता है?
रितिक चौधरी। इस वक़्त हमारी पत्रकारिता बहुत अच्छे दौर में नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में इसने बहुत कुछ खो दिया है। इसने अपनी मजबूती खोयी है। अपना उद्देश्य खोया है। अपना विश्वास खोया है। आज आम से आम आदमी भी यह कहता है कि पता नहीं टीवी में क्या-क्या चलता रहता है। भले ही वे वही कंटेंट देखें, लेकिन एक समय के लिए सोचते और कहते जरूर हैं।
पत्रकारिता का मुख्य रूप से आज दो धड़ा है। एक जो सरकार का मुखपत्र का काम कर रही है और दूसरा वह जो सरकार से सवाल पूछ रही है।
स्थिति ऐसी हो गयी है कि सरकार की पिछलग्गू मीडिया, जिसे हम 'गोदी मीडिया' कहते हैं। उसके पत्रकार लोगों से पिट रहे हैं। जो मीडिया कल तक दूसरों की खबरें दिखाता था, वह आज अपनी खबर दिखाता है कि कैसे लोग उसका बहिष्कार कर रहे हैं। उसके खिलाफ नारे लगा रहे हैं। उसके रिपोर्टर्स से धक्का-मुक्की कर रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ जो पत्रकार सरकार से सवाल पूछते हैं। उन्हें हर दिन कोई न कोई नोटिस मिल जाता है। देश के किसी हिस्से में उनपर मुकदमा हो जाता है। उन्हें पुलिस उठा ले जाती है।
एक पत्रकार आखिर क्या करे? और क्या करे हमारी पत्रकारिता? कहां आ गए हैं हम? कौन है इसका जिम्मेदार? क्या पत्रकार का काम अब बस मार खाना रहा गया है? वह जहां भी रिपोर्टिंग करने जाए, लोग या फिर पुलिस उसे पीटना शुरू कर दे। उसे अपना काम नहीं करने दे। क्या इतनी गिर चुकी है हमारे देश की पत्रकारिता? यदि ऐसा ही है, तो फिर पत्रकारों को किस बात का घमंड है? जब उनकी दो कौड़ी की इज्जत भी नहीं है।
क्यों चला यह प्रचलन कि एक पत्रकार को बड़ी आसानी से पुलिस उठा ले? और क्यों चुप हैं, खुद को बड़ा पत्रकार कहने वाले लोग? भुगतना तो ग्राउंड पर रहने वाले पत्रकारों को पड़ता है।
क्या उस रिपोर्टर की गलती है, जो लोगों से मार खाता है या फिर उस चैनल पर प्राइम टाइम में आने वाले बड़े पत्रकारों की, जो बस सरकार की चमचई करते हैं। क्या गलती है, उस पत्रकार की जो बहुत ईमानदारी से, सही रिपोर्ट दिखाता है और सरकार से सवाल करता है, और उसे पुलिस उठा लेती है?
जरूर सोचिये! वरिष्ठ, बड़े और 'सेलिब्रिटी पत्रकार' तो जरूर सोचें कि उन्होंने अपने स्वार्थ में पत्रकारिता को कहां खड़ा कर दिया है? कितने ध्रुवों में बांट दिया है?